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दूसरा अध्याय / बयान 6

तेजसिंह चंद्रकान्ता और चपला का पता लगाने के लिए कुंअर वीरेन्द्रसिंह से बिदा हो फौज के हाते के बाहर आये और सोचने लगे कि अब किधर जायं,कहां ढूंढें? दुश्मन की फौज में देखने की तो कोई जरूरत नहीं क्योंकि वहां चंद्रकान्ता को कभी नहीं रखा होगा, इससे चुनार ही चलना ठीक है। यह सोचकर चुनार ही की तरफ रवाना हुए और दूसरे दिन सबेरे वहां पहुंचे। सूरत बदलकर इधर-उधर घूमने लगे। जगह-जगह पर अटकते और अपना मतलब निकालने की फिक्र करते थे मगर कुछ फायदा न हुआ, कुमारी की खबर कुछ भी मालूम न हुई। रात को तेजसिंह सूरत बदल किले के अंदर घुस गये और इधर-उधर ढूंढने लगे। घूमते-घूमते मौका पाकर वे एक काले कपड़े से अपने बदन को ढांक कमंद फेंक महल पर चढ़ गये। इस समय आधीी रात जा चुकी होगी। छत पर से तेजसिंह ने झांककर देखा तो सन्नाटा मालूम पड़ा मगर रोशनी खूब हो रही थी। तेजसिंह नीचे उतरे और एक दलान में खड़े होकर देखने लगे। सामने एक बड़ा कमरा था जो कि बहुत खूबसूरती के साथ बेशकीमती असबाबों और तस्वीरों से सजा हुआ था। रोशनी ज्यादे न थी सिर्फ शमादान जल रहे थे, बीच में ऊंची मसनद पर एक औरत सो रही थी। चारों तरफ उसके कई औरतें भी फर्श पर पड़ी हुई थीं। तेजसिंह आगे बढ़े और एक-एक करके रोशनी बुझाने लगे, यहां तक कि सिर्फ उस कमरे में एक रोशनी रह गई और सब बुझ गईं। अब तेजसिंह उस कमरे की तरफ बढ़े, दरवाजे पर खड़े होकर देखा तो पास से वह सूरत बखूबी दिखाई देने लगी जिसको दूर से देखा था। तमाम बदन शबनमी से ढंका हुआ मगर खूबसूरत चेहरा खुला था, करवट के सबब कुछ हिस्सा मुंह का नीचे के मखमली तकिए पर होने से छिपा हुआ था, गोरा रंग, गालों पर सुर्खी जिस पर एक लट खुलकर आ पड़ी थी जो बहुत ही भली मालूम होती थी। आंख के पास शायद किसी जख्म का घाव था मगर यह भी भला मालूम होता था। तेजसिंह को यकीन हो गया कि बेशक महाराज शिवदत्त की रानी यही है। कुछ देर सोचने के बाद उन्होंने अपने बटुए में से कलम-दवात और एक टुकड़ा कागज का निकाला और जल्दी से उस पर यह लिखा- “न मालूम क्यों इस वक्त मेरा जी चंद्रकान्ता से मिलने को चाहता है। जो हो, मैं तो उससे मिलने जाती हूं। रास्ते और ठिकाने का पता मुझे लग चुका है।”

बाद इसके पलंग के पास जा बेहोशी का धतुरा रानी की नाक के पास ले गये जो सांस लेती दफे उसके दिमाग पर चढ़ गया और वह एकदम से बेहोश हो गई। तेजसिंह ने नाक पर हाथ रखकर देखा, बेहोशी की सांस चल रही थी, झट रानी को तो कपड़े में बांधा और पुर्जा जो लिखा था वह तकिए के नीचे रख वहां से उसी कमंद के जरिए से बाहर हुए और गंगा किनारे वाली खिड़की जो भीतर से बंद थी, खोलकर तेजी के साथ पहाड़ी की तरफ निकल गये। बहुत दूर जा एक दर्रे में रानी को और ज्यादे बेहोश करके रख दिया और फिर लौटकर किले के दरवाजे पर आ एक तरफ किनारे छिपकर बैठ गये।

चंद्रकांता दूसरा अध्याय

देवकीनन्दन खत्री
Chapters
दूसरा अध्याय / बयान 1 दूसरा अध्याय / बयान 2 दूसरा अध्याय / बयान 3 दूसरा अध्याय / बयान 4 दूसरा अध्याय / बयान 5 दूसरा अध्याय / बयान 6 दूसरा अध्याय / बयान 7 दूसरा अध्याय / बयान 8 दूसरा अध्याय / बयान 9 दूसरा अध्याय / बयान 10 दूसरा अध्याय / बयान 11 दूसरा अध्याय / बयान 12 दूसरा अध्याय / बयान 13 दूसरा अध्याय / बयान 14 दूसरा अध्याय / बयान 15 दूसरा अध्याय / बयान 16 दूसरा अध्याय / बयान 17 दूसरा अध्याय / बयान 18 दूसरा अध्याय / बयान 19 दूसरा अध्याय / बयान 20 दूसरा अध्याय / बयान 21 दूसरा अध्याय / बयान 22 दूसरा अध्याय / बयान 23 दूसरा अध्याय / बयान 24 दूसरा अध्याय / बयान 25 दूसरा अध्याय / बयान 26 दूसरा अध्याय / बयान 27