इतिहास के सबसे परेशान करने वाले मानव प्रयोग २
१६ नवजातों पर शोध
१९६० में कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने रक्तचाप और रक्त का प्रवाह में बदलाव के विश्लेषण को समझने के लिए एक शोध की शुरुआत की | परिक्षण वस्तुओं की तरह शोधकर्ताओं नें १ घंटे से ३ दिन के ११३ नवजातों को चुना | एक शोध में उम्बिलिकल आर्टरीज के रस्ते से एओर्टा तक एक कैथेटर डाला गया | नवजात के पैरों को फिर बर्फ के पानी में डाला गया अओर्टिक दबाव को जांचने के लिए | दुसरे शोध में करीब ५० नवजातों को खतना बोर्ड से बाँध उसे उल्टा कर दिया गया ताकि खून उनके सर तक पहुँच जाए और वह उसके रक्तचाप को नाप सके |
१५ घृणा परियोजना
१९६९ में साउथ अफ्रीका के अपार्थीड के समय में कई सम्लेंगिक लोगों को डॉ ऑब्रे लेविन,एक आर्मी कर्नल और मनोवैज्ञानिक ये सोच सौंप दिए गए की वह उनका इलाज कर देगा | प्रीटोरिया के पास वूरट्रेक्केरहूगटे आर्मी अस्पताल में लेविन ने अपने मरीजों का इलाज करने के लिए विद्युत-घृणा चिकित्सा का इस्तेमाल किया | मरीज़ के उपरी हाथ में एलेक्ट्रोदेस बांधे गए जिनके तार एक 1 से 10 की शक्ति वाले डायल से जुड़े थे | सम्लेंगिक पुरुषों को एक नग्न पुरुष की तसवीरें दिखाई गयीं और उत्तेजित होने के लिए कहा गया, और ऐसा करने पर मरीज़ को गंभीर रूप से शॉक दिए गए | जब लेविन को धमकाया गया की उसे मानवाधिकारों के उल्लंघक के रूप में नामांकित किया जाएगा तो वह कनाडा चला गया जहाँ वह एक शिक्षण अस्पताल में काम करता है |
१४. जेल के कैदीयों पर चिकित्सिक शोध
शायद कैलिफ़ोर्निया के सेन क़ुएन्तिन जेल के कैदी होने का सबसे बड़ा फायदा है प्रसिद्द बे एरिया के डॉक्टरों द्वारा अपना इलाज करवा पाना | पर इसका एक नुक्सान ये भी है की इन डॉक्टरों की कैदीयों तक पहुँच आसान हो जाती है | १९१३ से १९५१ तक डॉ लियो स्टैनले, सेन क़ुएन्तिन के मुख्य सर्जन ने अजीब चिकित्सक शोधों के लिए इन कैदीयों का इस्तेमाल किया | स्टेनली के प्रयोगों में नसबंदी और स्पेनिश फ्लू के लिए संभावित उपचार ढूंढना शामिल था | विशेषकर एक विशुब्ध परिक्षण में कुछ जीवित कैदीयों के अन्डकोशों का प्रत्यरोपण स्टैनले ने मरे हुए कैदीयों के और कई बार बकरे और सूअरों के अन्डकोशों से किया गया |
१३.यौन पुनः समनदेशन
१९६५ में कनाडा के निवासी डेविड पीटर रेइमेर का जैविक रूप से पुरुष की तरह जनम हुआ | पर ७ महीने के उम्र में उनका लिंग दागने के दौरान लगी एक खतना की वजह से नष्ट हो गयी | जॉन मनी एक मनोवैज्ञानिक और इस विचार की लिंग पता चलता है के प्रस्तावक ने रेइमेर्स को समझाया की उनका बेटा एक लड़की की तरह से सफल, कार्यात्मक यौन परिपक्वता हासिल कर पायेगा | हांलाकि मनी ने आगे आने वाले सालों में अपने को सफल बताया लेकिन डेविड का कहना है की उसने कभी लड़की की तरह अपने को नहीं पहचाना | उसका पूरा बचपन बहिष्कृत और मानसिक तनाव में गुज़रा | ३८ की उम्र में उन्होनें अपने को गोली को मारकर ख़ुदकुशी कर ली |
१२ अन्डकोशों पर विकिरण का असर
१९६३ से १९७३ में अन्डकोशों पर विकिरण का असर देखने के लिए आयोजित एक शोध के लिए दर्जनों वाशिंगटन और ऑरेगोन के जेल कैदियों का इस्तेमाल किया गया | रिश्वत में पैसा और पैरोल पर छोड़ दिए जाने की बात सुन १३० कैदी अमेरिकन सरकार के कहने पर वाशिंगटन विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित इन शोधो का हिस्सा बनने को तैयार हो गए | अधिकतर व्यक्तियों को १० मिनट के अन्तराल में विकरण की ४०० रड्स ( २४०० छाती के क्स रे के बराबर ) से ज्यादा के झटके दिए गए | लेकिन काफी बाद में इन कैदीयों को पता चल गया की ये शोध जितने बताये गए थे उससे बहुत ज्यादा खतरनाक थे | 2000 में इन भागीदारों ने विश्वविद्यालय से २.४ मिलियन डॉलर का खामियाजा वसूला |
११ स्तान्फोर्ड जेल शोध
१४-२० अगस्त १९७१ के बीच में आयोजित स्तान्फोर्ड जेल शोध एक जांच थी सैनिकों और कैदीयों की बीच की तकरार को समझने का | 24 पुरुष छात्रों को चुना गया और सैनिकों और कैदीयों की भूमिका सौंपी गयी | फिर उन्हें स्तान्फोर्ड मनोविज्ञानी विभाग के तहखाना में बनाई गयी एक नकली जेल में रखा गया | जो छात्र सैनिक बने थे वह अधिकारिक तरीक अपना कर कैदीयों को मानसिक रूप से प्रताड़ित करने लगे | हैरानी की बात है की कई कैदीयों ने दी सजाओं को माना भी | हांलाकि इस शोध ने सब शोधकर्ताओं की हर उम्मीद को
१०. ग्वाटेमाला में सिफलिस प्रयोग
१९४६ से १९४८ तक अमेरिकन सरकार,ग्वाटेमाला के राष्ट्रपति जुआन जोसे अरेवालो और कुछ गुअतेमालन सवास्थ्य मंत्रियों ने ग्वाटेमाला के निवासियों पर मिल कर एक चौंकाने वाला शोध किया | डॉक्टर्स ने जान भूझ कर सैनिक, वेश्याओं, कैदीयों और दिमागी रूप से बीमार लोगों को सिफिलिस और अन्य यौन संचारित रोगों से संक्रमित किया ताकि इन बिमारियों के इलाज की प्राकृतिक प्रगति को समझा जा सके | सिर्फ प्रतिजिवी दवाइयों से ठीक होने वाली ये बीमारियाँ इस शोध के चलते ३० प्रलेखित मौतों की वजह बनी | २०१० में अमेरिका ने ग्वाटेमाला से इस शोध में भागीदारी करने के लिए माफी मांगी |
९. टुस्केगी सिफिलिस प्रयोग
१९३२ में अमेरिका की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा ने अनुपचारित सिफलिस की प्राकृतिक प्रगति समझने के लिए टुस्केगी संसथान के साथ हाथ मिलाया | मैकॉन काउंटी, अल्बामा में से ६०० गरीब, अनपढ़, पुरुष किसानों को ढूँढ कर इस काम के लिए चुना गया | इन ६०० में से सिर्फ ३९९ को पहले से सिफिलिस था और इनमें से किसी को ये नहीं बताया गया की उन्हें एक जानलेवा बीमारी है | इसके बजाय उन्हें भागीदारी के लिए मुफ्त इलाज,खाना और दफ़नाने का इन्शुरन्स देने का वादा किया गया | १९४७ में पेनिसिलिन की सिफिलिस के प्रभावी इलाज के अविष्कार के बाद भी ये प्रयोग १९७२ तक चलता रहा | मूल भागीदारों के इलावा इस शोध में उनकी पत्नियाँ जिन्हें भी ये बीमारी हो गयी थे और जन्मजात सिफिलिस के साथ पैदा हुए उनके बच्चे भी शामिल हो गए | १९९७ में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने इस "अमेरिका के इतिहास में सबसे कुख्यात जैव चिकित्सा प्रयोग" से प्रभावित हुए लोगों से क्षमा मांगी |
८ मिल्ग्राम शोध
१९६१ में स्टैनले मिल्ग्राम, येल विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक ने सामाजिक मनोविज्ञान प्रयोगों की एक श्रृंखला शुरू की जिसमें वो व्यक्तियों की एक अधिकारी की बात मानने की इच्छा को मापना चाहते थे | जर्मन नाज़ी युद्ध अपराधी अडोल्फ़ एइच्मन्न की जांच के सिर्फ ३ महीने बाद शुरू किया गया ये प्रयोग इस सवाल का जवाब ढूंढ रहा था की " क्या होलोकॉस्ट में शामिल एइच्मन्न और उसके लाखों साथी सिर्फ आज्ञा का पालन कर रहे थे?" | इस शोध में २ कमरों में २ भागीदारों ( एक अभिनेता, और दूसरा साधारण परिक्षण वस्तु) को रखा गया जहाँ वह एक दुसरे को सुन सकते थे पर देख नहीं सकते थे | परिक्षण व्यक्ति अभिनेता से श्रृंखलाबद्ध कुछ सवाल पूछेगा और हर गलत जवाब पर उसको बिजली का झटका लगाया जाएगा | हांलाकि काफी लोगो ने इस शोध को बंद करने की इच्छा ज़ाहिर की फिर भी अधिकतर लोग ऐसा बताने पर की उन्हें ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा या कोई स्थाई नुक्सान नहीं होगा, इस शोध में भाग लेते रहे |
७. शहरों में संक्रमित मच्छर
१९५६ और १९५७ में अमेरिका की सेना ने सवान्नाह, जॉर्जिया और एवन पार्क, फ्लोरिडा के शहरों में कई जैविक युद्ध प्रयोग आयोजित किये | ऐसे ही एक प्रयोग में लाखों संक्रमित मछर को दोनों शहरों में छोड़ा गया, ये देखने के लिए की क्या वह पीत ज्वर और डेंगू ज्वर को फैला पाते हैं | हैरानी नहीं है की कई शोधकर्ताओं को भी बुखार, सांस की तकलीफें, मृत प्रसव, इन्सेफेलाइटिस, और टाइफाइड जैसी बीमारियाँ हो गयी | अपनी शोध के नतीजे की तसवीरें लेने के लिए सेना के शोधकर्ताओं को सार्वजनकि स्वास्थ्य कर्मचारी का भेस बनाना पड़ा | इस शोध के अंतर्गत कई लोग मारे गए |
६. सोवियत संघ में मानव प्रयोग
१९२१ की शुरुआत से और करीबन पूरी 21 सदी में सोविअत संघ ने गुप्त पुलिस एजेंसियों की अनुसंधान सुविधाओं के लिए लेबोरेटरी 1, लेबोरेटरी 12 और कमरा नाम की ज़हर की लैबोरेट्रीज चालू करीं | गुलाग्स के कैदीयों को कई खतरनाक ज़हर का सामना करना पड़ा सिर्फ इस कोशिश में की कोई ऐसा रसायन मिले जो बिना महक और स्वाद का हो और शव परिक्षण में पता न चले | जिन ज़हरों पर शोध किया गया वह थे मस्टर्ड गैस, रिसिन,दिगितोक्सिन, कोरार और कई और | अलग उम्र और जिस्मानी स्थिति वाले आदमियों और औरतों को लैबोरेट्रीज में बुला "दवाई" या खाने और पेय के रूप में ये ज़हर दिया गया |
५ उत्तर कोरिया में मानव प्रयोग
कई नार्थ कोरिया के देश बदलुओं ने मानव प्रयोग के कई चौकाने वाली घटनाओं का गवाह् होने का दावा किया | ऐसे ही एक शोध में ५० मादा कैदीयों को ज़हरीली पत्तागोभी के पत्ते खाने के लिए दिए गए – वह ५० औरतें २० मिनट में ख़तम हो गयीं | और शोधों में शामिल था बिना बेहोश किये कैदीयों पर सर्जरी करना, जान कर भूका रखना, कैदीयों के सर पर वार करना और फिर ऐसी ही अवस्था में उन्हें लक्ष्य अभ्यास के लिए इस्तेमाल करना और ऐसे कक्ष जहाँ ज़हरीली गैस छोड़ पूरे परिवारों को ख़तम कर दिया गया | ऐसा कहा जाता था की हर महीने एक "क्रो" नामक काली गाडी कैंप से ४०-५० लोगों को शोधों के लिए अनजान जगह लेकर जाती थी |
४. नाज़ी मानव प्रयोग
थर्ड रिच और होलाकाउस्त के दौरान नाज़ी जर्मनी ने जीउस, युद्ध के कैदी, रोमानी और अन्य गुटों पर कई चिकित्सक शोध किये | ये शोध एकाग्रता शिविर में किये जाते थे और अधिकतर मामलों में इनका नतीजा मौत, विरूपण, या स्थायी विकलांगता होता था | खास तौर से परेशान करने वाले शोधों में शामिल थी आनुवंशिक रूप से जुड़वां बच्चों में हेरफेर; हड्डी, मांसपेशियों, और तंत्रिका प्रत्यारोपण की कोशिशें ; बीमारियों और रासायनिक गैसों से जोखिम; नसबंदी और अन्य कुछ भी जो नाज़ी डॉक्टर सोच सकते थे | लडाई के बाद इन गुनाहों को नुरेम्बेर्ग ट्रायल के तहत जांच गया और अंत में चिकित्सा नैतिकता की नुरेमबर्ग कोड का विकास हुआ |
३. यूनिट ७३१
१९३७ से १९४५ तक जापानीज़ सेना ने यूनिट ७३१ नामक एक गुप्त जैविक और रासायनिक युद्ध अनुसंधान प्रयोग को इजाद किया | हार्बिन शहर में स्थित यूनिट ७३१ इतिहास के सबसे बर्बर गुनाहों के लिए ज़िम्मेदार है | चाइनीज़ और रशियन लोग – आदमी,औरतें,बच्चे, नवजात, बूढ़े और गर्भवती औरतें – सब को इन शोधों का शिकार बनाया गया जिनमें शामिल था जिंदा इंसान के शरीर से अंग निकालना, खून के बहाव के विश्लेषण के लिए अंग काट देना, रोगाणु युद्ध हमले, और हथियारों के परीक्षण। कुछ कैदीयों के पेट निकाल कर उनके एसोफगुस को उनकी अन्त्रियों से जोड़ दिया गया | यूनिट ७३१ से जुड़े कई वैज्ञानिकों ने राजनीति, शिक्षा, व्यापार, और चिकित्सा के क्षेत्र में प्रसिद्धि हासिल की |
२. गर्भवती महिलाओं में रेडियोधर्मी सामग्री
दुसरे विश्व युद्ध के कुछ समय बाद, और अमेरिकन के मन में चल रहे शीत युद्ध के मामले के चलते कई मेडिकल शोधकर्ताओं रेडियोधर्मिता और रासायनिक युद्ध के विचार में व्यस्त हो गए | ऐसे ही एक शोध में वन्देर्बिल्ट विश्वविद्यालय में ८२९ गर्भवती औरतों को ये कह कर "विटामिन पेय" दिए गए की इससे उनके अजन्मे बच्चे की सेहत में सुधार होगा | जबकि उस पेय में रेडियोधर्मी लोहा था और शोधकर्ता ये देखना चाहते थे की कितनी जल्दी ये रेडियो आइसोटोप प्लेसेंटा को पार कर जाएगा । इनमें से कम से कम ७ नवजात कैंसर और लयूकेमिया से ख़तम हो गए और उन औरतों को चकत्ते, घाव, एनीमिया, बाल और दांत की हानि, और कैंसर का शिकार होना पड़ा |
१. अमेरिका की सेना पर मस्टर्ड गैस शोध
१९४३ में अमेरिका की थल सेना ने खुद अपने जलसैनिकों को मस्टर्ड गैस से संक्रमित करवाया | कायदे से थल सेना नए कपडे और गैस मास्क की उस ज़हरीली गैस के विरुद्ध उपयोगिता जांच रही थी जिसने पहले विश्व युद्ध में काफी आतंक मचाया था | सबसे बुरा प्रयोग वाशिंगटन के नौसेना अनुसंधान प्रयोगशाला में किया गया | १७ और १८ साल के लड़कों से 8 हफ़्तों के बूट कैंप के बाद पुछा गया की क्या वह ऐसे शोध में भाग लेना चाहेंगे जिससे युद्ध ख़तम हो जाये | जब ये लड़के अनुसंधान प्रयोगशाला पहुँच गए तब उन्हें मालूम पड़ा की इस शोध में मस्टर्ड गैस का इस्तेमाल होना है | सभी भागीदारों को गंभीर बाहरी और अंदरूनी जलन का सामना करना पढ़ा, उन्हें थलसेना ने बहिष्कृत कर कुछ मामलों में जासूसी का इलज़ाम लगाने की धमकी भी दी | १९९१ में इन रिपोर्ट्स को सार्वजानिक कर कांग्रेस के सामने लाया गया |