ययाति
ययाति एक चंद्रवंशी राजा को देवयानी (देत्य के गुरु शुक्र की बेटी) से शादी करनी पड़ी क्यूंकि उन्हें वह एक तालाब में मिली थी और बाहर निकालते वक़्त गलती से ययाति ने उसे स्पर्श कर लिया था | शास्त्रों के अनुसार ऐसी स्थिति में वह शादी करने को मजबूर था |देवयानी तालाब में इसीलिए थी क्यूंकि उसकी सहेली सरमिष्ठा (विश्परवा की बेटी ) ने उसे धक्का दे दिया था | सरमिष्ठा और देवयानी अच्छे दोस्त थे पर जब देवयानी ने गलती से अपने दोस्त के शाही कपडे पहन लिए तो गुस्से में सरमिष्ठा ने उसे तालाब में धक्का दे दिया |
ययाति द्वारा बचाए जाने के बाद देवयानी ने जा कर अपने पिता से सरमिष्ठा की शिकायत की | शुक्र ने बदला लेने का फैसला किया और असुर राजा के लिए तब तक कोई यज्ञ न करने का फैसला किया जब तक वह देवयानी से माफ़ी नहीं मांगती | शुक्र ने ये भी शर्त रखी की सरमिष्ठा जिंदगी भर देवयानी की दासी की तरह रहेगी |
असुर राजा विश्पर्व के पास कोई और चारा नहीं था क्यूंकि बिना यज्ञ के वह अपने कुल को देवों से नहीं बचा सकता था इसीलिए वह मान गया | सरमिष्ठा के पास भी कोई रास्ता नहीं था और वह देवयानी के साथ अपने नए घर चली गयी |
राजा ययाति और शर्मिष्ठा को प्यार हो जाता है और वह चुपके से शादी कर लेते हैं | जब शर्मिष्ठा का पुत्र ययाति को पिता कह संबोधित करता है तब उसे इस धोखे का अंदाज़ा होता है | वह शुक्र के पास जाती है जो ययाति को बूड़ा और नामर्द होने के श्राप देते हैं |लेकिन इस श्राप से देवयानी कुपित हो उठती है क्यूंकि एक बूड़ा राजा उसके किस काम का | क्यूंकि श्राप का असर हठाया नहीं जा सकता शुक्र उसको कम करने का रास्ता बताते हैं | ययाति इस श्राप को अपने किसी बेटे को दे सकते थे |
देवयानी से ययाति के पुत्र यदु अपने ऊपर श्राप लेने से मन कर देते हैं | गुस्से में ययाति उसे श्राप देते हैं की न वो न ही उसके कोई वंशज कभी राजा बन पाएंगे | इस श्राप से दुखी हो यदु अपने बाप का महल छोड़ मथुरा में नाग राज की बेटी से विवाह कर बस जाते हैं | क्यूंकि मथुरा जनतंत्र का पालन करता था इसीलिए यदु राजा नहीं बन सकता था लेकिन राजा की तरह रह सकता था | यदु यदुवंशियों के कुलपति बन जाते हैं |ययाति फिर शर्मिष्ठा से अपने पुत्र पुरु के पास जाते हैं और उससे श्राप का असर लेने की कहते हैं | पुरु मान जाता है और ययाति उसकी ज़िन्दगी जीने लग जाता है | बाद में ययाति को लगता है की जवान होने से कोई संतुष्टि नहीं मिलती और वह पुरु से श्राप वापस ले लेता है | पुरु को अपने बाप की आज्ञा मानने के लिए सिंघासन का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया जाता है | पुरु कुरु दल जिससे कौरव और पांडवों का जन्म हुआ के कुलपति बनते हैं |