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गंधर्वपुरी

मध्यप्रदेश के देवास जिले के एक गांव गंधर्वपुरी को शापित गांव माना जाता है। यह गांव प्राचीनकाल में राजा गंधर्वसेन के शाप से पूरा पत्थर में बदल गया था। यहां का हर व्यक्ति, पशु और पक्षी सभी शाप के असर से पत्थर के हो गए थे। फिर एक  धूलभरी आंधी चली , जिससे यह पूरी नगरी जमीन में दफन हो गई।देवास की सोनकच्छ तहसील में स्थित है एक ऐसा गांव जो भारत के बौद्धकालीन इतिहास का गवाह है। इस गांव का नाम पहले चंपावती था। चंपावती के पुत्र गंधर्वसेन के नाम पर बाद में गंधर्वपुरी हो गया। आज भी इसका नाम गंधर्वपुरी है।लोगों  के अनुसार यहां गंधर्वसेन, के शाप से पूरी गंधर्व नगरी पत्थर की हो गई थी। राजा गंधर्वसेन के बारे में कई किस्से प्रचलित हैं, लेकिन इस स्थान से जुड़ी कहानी कुछ अजीब सी ही है। कहते हैं कि गंधर्वसेन ने चार विवाह किए थे। उनकी पत्नियां चारों वर्णों से थीं। क्षत्राणी से उनके तीन पुत्र हुए सेनापति शंख, राजा विक्रमादित्य तथा ऋषि भर्तृहरि।
 
 
बताते हैं कि इस नगरी के राजा की पुत्री ने राजा की मर्जी के खिलाफ गधे के मुख के गंधर्वसेन से विवाह रचाया था। गंधर्वसेन दिन में गधे और रात में गधे की खोल उतारकर राजकुमार बन जाते थे। जब एक दिन राजा को इस बात का पता चला तो उन्होंने रात को उस चमत्कारिक खोल को जलवा दिया, जिससे गंधर्वसेन भी जलने लगे तब जलते-जलते उन्होंने राजा सहित पूरी नगरी को शाप दे दिया कि जो भी इस नगर में रहते हैं, वे पत्थर के हो जाएं।यहां पर 1966 में एक संग्रहालय का निर्माण किया गया, जहां कुछ खास मूर्तियां एकत्रित ‍कर ली गई हैं। संग्रहालय के केयर टेकर रामप्रसाद कुंडलिया बताते हैं कि उस खुले संग्रहालय में अब तक 300 मूर्तियों को संग्रहित किया गया। इसके अलावा अनेक मूर्तियां राजा गंधर्वसेन के मंदिर में हैं और अनेक नगर में यहां-वहां बिखरी पड़ी हैं।जमीन की खुदाई के दौरान यहां आज भी बुद्ध, महावीर, विष्‍णु के अलावा ग्रामीणों की दिनचर्या के दृश्यों से सजी मोहक मूर्तियां मिलती रहती हैं। ग्रामीणों की सूचना के बाद उन्हें संग्रहालय में रख दिया जाता है। स्थानीय निवासी बताते हैं की यहां से सैकड़ों मूर्तियां लापता हो गई हैं।