सद्गुरु स्तोत्र
गुरू| गुणालया| परापराधिनाथ सुंदरा| देवादिकांहुनि वरीष्ठ तूचि साजीरा| गुणावतार तू धरोनिया या जगास तारीसी| सुरा मुनीश्वरा अलभ्य या गतीस दावीसी||१||
जया गुरूत्व वेधिले तयासि कार्य साधिले| भवार्णवासि लंघिले सुविघ्नदुर्ग भंगिले| सहा रिपूंसि जिंकिले निजात्मतत्व चिंतीले| परात्परासि पाहीले प्रकृष्ट दु:ख साहीले||२||
गुरू उदार माऊली प्रशांतसौख्य साऊली| जया नरास फावली तयास सिद्धी गावली| 'गुरू गुरू गुरू गुरू' म्हणोनी जो नरे स्मरू| तरे मोहसागरू सुखी घडे निरंतरू||३||
गुरू चिदब्धीचंद्र हा महत्पदी महेंद्र हा| असे प्रतापरुद्र हा गुरु कृपासमुद्र हा| गुरु स्वरूप दे स्वतः गुरूचि ब्रम्ह सर्वथा| गुरूविना महाव्यथा नसे जनी निवारिता||४||
शिवाहुनि गुरु असे अधिक हे मला दिसे| नरांसि मोक्ष द्यावया गुरू स्वरूप घेतसे| शिवस्वरूप आपुले न मोक्षदक्ष देखिले| गुरुने पूर्ण घेतले म्हणोनि कृत्य साधिले||५||
गुरूचि बापमाऊली गुरूचि दीनसाऊली| गुरूचि शिष्यवासरांस कामधेनु साऊली| गुरुचि चिंतीतार्थ दे गुरुचि तत्व तो वदे| अलभ्य मोक्षलाभ आपुल्या कृपे गुरुचि दे||६||
गुरुचि भेद नाशितो जडांधकार शोषितो| गुरुचि मोह वारितो अविद्यभाव सारितो| गुरूचि ब्रम्ह दावितो गुरूचि ध्यान लावितो| गुरुचि विश्व सर्व आत्मरूप हे बुझवितो||७||
गुरुचि मूळदीप रे जगत गुरुस्वरूप रे| समस्त देव तदंश दिसताति साजीरे| गुरुचि पूर्णसिंधू रे तयांत देव बिंदू रे| गुरु स्वयंभू सूर्य अन्य सर्वही मयूर रे||८||
गुरुचि दिव्य दृष्टी रे गुरुचि सर्व सृष्टी रे| गुरुचि ज्ञानबोध रे गुरुचि सर्व शोध रे| गुणांत तोचि विस्तरे मनांत तोचि संचरे| समस्त भूतमात्र चेष्टवोनि एकला ऊरे| |९||
गुरु विराटरूप रे गुरु हिरण्यगर्भ रे| गुरुचि ॐ हिरण्यवर्ण पंचवर्ण मुख्य तार रे| गुरुचि विश्व तेजसू गुरुचि प्राज्ञ पुरुषु| गुरुविना दुजा नसे शृतीष घोष सर्वसु||१०||
गुरुचि ध्येय ध्यान रे गुरुचि सर्व मान रे| नसे गुरु समान रे| जनी गुरुस मान रे| गुरुचि थोर सान रे महासुखा निधान रे| 'गुरू गुरू गुरू गुरू' करी म्हणोनी गान रे||११||
गुरुस्वरूप चिंतीजे समाधि हेचि बोलीजे| समस्त वेदपाथनाममंत्रजाप्य जाणिजे| यथार्थ सर्वतीर्थ जे सद्गुरुपदाब्जतोय हे| गुरुचि सेवणे अनेक अश्वमेध यज्ञ हे||१२||
नमो गुरु कृपाकरा| नमो गुरु परात्परा| नमो गुरु धनाधना| नमो गुरु निरंजना||१३||
जया गुरूत्व वेधिले तयासि कार्य साधिले| भवार्णवासि लंघिले सुविघ्नदुर्ग भंगिले| सहा रिपूंसि जिंकिले निजात्मतत्व चिंतीले| परात्परासि पाहीले प्रकृष्ट दु:ख साहीले||२||
गुरू उदार माऊली प्रशांतसौख्य साऊली| जया नरास फावली तयास सिद्धी गावली| 'गुरू गुरू गुरू गुरू' म्हणोनी जो नरे स्मरू| तरे मोहसागरू सुखी घडे निरंतरू||३||
गुरू चिदब्धीचंद्र हा महत्पदी महेंद्र हा| असे प्रतापरुद्र हा गुरु कृपासमुद्र हा| गुरु स्वरूप दे स्वतः गुरूचि ब्रम्ह सर्वथा| गुरूविना महाव्यथा नसे जनी निवारिता||४||
शिवाहुनि गुरु असे अधिक हे मला दिसे| नरांसि मोक्ष द्यावया गुरू स्वरूप घेतसे| शिवस्वरूप आपुले न मोक्षदक्ष देखिले| गुरुने पूर्ण घेतले म्हणोनि कृत्य साधिले||५||
गुरूचि बापमाऊली गुरूचि दीनसाऊली| गुरूचि शिष्यवासरांस कामधेनु साऊली| गुरुचि चिंतीतार्थ दे गुरुचि तत्व तो वदे| अलभ्य मोक्षलाभ आपुल्या कृपे गुरुचि दे||६||
गुरुचि भेद नाशितो जडांधकार शोषितो| गुरुचि मोह वारितो अविद्यभाव सारितो| गुरूचि ब्रम्ह दावितो गुरूचि ध्यान लावितो| गुरुचि विश्व सर्व आत्मरूप हे बुझवितो||७||
गुरुचि मूळदीप रे जगत गुरुस्वरूप रे| समस्त देव तदंश दिसताति साजीरे| गुरुचि पूर्णसिंधू रे तयांत देव बिंदू रे| गुरु स्वयंभू सूर्य अन्य सर्वही मयूर रे||८||
गुरुचि दिव्य दृष्टी रे गुरुचि सर्व सृष्टी रे| गुरुचि ज्ञानबोध रे गुरुचि सर्व शोध रे| गुणांत तोचि विस्तरे मनांत तोचि संचरे| समस्त भूतमात्र चेष्टवोनि एकला ऊरे| |९||
गुरु विराटरूप रे गुरु हिरण्यगर्भ रे| गुरुचि ॐ हिरण्यवर्ण पंचवर्ण मुख्य तार रे| गुरुचि विश्व तेजसू गुरुचि प्राज्ञ पुरुषु| गुरुविना दुजा नसे शृतीष घोष सर्वसु||१०||
गुरुचि ध्येय ध्यान रे गुरुचि सर्व मान रे| नसे गुरु समान रे| जनी गुरुस मान रे| गुरुचि थोर सान रे महासुखा निधान रे| 'गुरू गुरू गुरू गुरू' करी म्हणोनी गान रे||११||
गुरुस्वरूप चिंतीजे समाधि हेचि बोलीजे| समस्त वेदपाथनाममंत्रजाप्य जाणिजे| यथार्थ सर्वतीर्थ जे सद्गुरुपदाब्जतोय हे| गुरुचि सेवणे अनेक अश्वमेध यज्ञ हे||१२||
नमो गुरु कृपाकरा| नमो गुरु परात्परा| नमो गुरु धनाधना| नमो गुरु निरंजना||१३||