Get it on Google Play
Download on the App Store

भाग 1

 


अब वह मौका आ गया है कि हम अपने पाठकों को तिलिस्म के अन्दर ले चलें और वहां की सैर करावें, क्योंकि कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह तथा मायारानी तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जा विराजे हैं जिसे एक तरह तिलिस्म का दरवाजा कहना चाहिए। पिछले भाग में यह लिखा जा चुका है कि भैरोसिंह को रोहतासगढ़ की तरफ और राजा गोपालसिंह और देवीसिंह को काशी की तरफ रवाना करने के बाद इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह, तेजसिंह, तारासिंह, शेरसिंह और लाडिली को साथ लिए हुए कमलिनी तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जा पहुंची और उसने राजा गोपालसिंह के कहे अनुसार देवमन्दिर में, जिसका हाल आगे चलकर खुलेगा, डेरा डाला। हमने कमलिनी और कुंअर इन्द्रजीतसिंह वगैरह को दारोगा वाले मकान के पास के एक टीले पर ही पहुंचाकर छोड़ दिया था और यह नहीं लिखा कि वे लोग तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में किस राह से पहुंचे या वह रास्ता किस प्रकार का था। खैर, हमारे पाठक महाशय ऐयारों के साथ कई दफा उस तिलिस्मी बाग में जायंगे इसलिए वहां के रास्ते का हाल उनसे छिपा न रह जायगा।
तिलिस्मी बाग का चौथा दर्जा अद्भुत और भयानक रस का खजाना था। वहां का पूरा हाल तो तब मालूम होगा जब तिलिस्म बखूबी टूट जायगा मगर जाहिरा हाल जिसे कुंअर इन्द्रजीतसिंह और उनके साथियों ने वहां पहुंचने के साथ ही देखा, हम इस जगह लिख देते हैं।
उस हिस्से में फूल-फल और पत्तों की किस्म में से ऐसा कुछ विशेष न था जिससे हम उसे बाग कहते, हां चारों तरफ तरह-तरह की इमारतें जरूर बहु-तायत से बनी हुई थीं जिनका हाल हम उस देवमन्दिर को मध्य मानकर लिखते हैं जिसमें इस समय हमारे दोनों कुमार और दोनों नेकदिल खैरख्वाह और मुहब्बत का नायाब नमूना दिखाने वाली नायिकाएं तथा उनके साथी लोग विराज रहे हैं। जैसा कि नाम से समझा जाता है वह देवमन्दिर वास्तव में कोई मन्दिर या शिवालय नहीं था, वह केवचल सुर्ख पत्थर का बना हुआ एक मकान था जिसमें दस हाथ की कुर्सी के ऊपर चालीस खम्भों का केवल एक अपूर्व कमरा था जिसके बीचोंबीच में दस हाथ के घेर का एक गोल खम्भा था और उस पर तरह-तरह की तस्वीरें बनी हुई थीं। बस, इसके अतिरिक्त देवमन्दिर में और कोई बात न थी। उस देवमन्दिर वाले कमरे में जाने के लिए जाहिर में कोई रास्ता न था, इसके सिवाय एक बात यह और थी कि कमरा चारों तरफ से परदेनुमा ऊंची दीवारों से ऐसा घिरा हुआ था कि उसके अन्दर रहने वाले आदमियों को बाहर से कोई देख नहीं सकता था। उस देवमन्दिर के चारों तरफ थोड़ी-सी जमीन में बाग की पक्की क्यारियां बनी हुई थीं और उनमें तरह-तरह के पेड़ लगे हुए थे, मगर ये पेड़ भी सच्चे न थे, बल्कि एक प्रकार की धातु के बने हुए थे और असली मालूम होने के लिए उन पर तरह-तरह के रंग चढ़े हुए थे, यदि इस खयाल से उसे हम बाग कहें तो हो सकता है और ताज्जुब नहीं कि इन्हीं पेड़ों की वजह से वह हिस्सा बाग के नाम से पुकारा भी जाता हो। उस नकली बाग में दो-दो आदमियों के बैठने लायक कई कुर्सियां भी जगह-जगह बनी हुई थीं।
उन क्यारियों के चारों तरफ छोटी-छोटी कई कोठरियां और मकान भी बने थे जिनका अलग-अलग हाल लिखना इस समय आवश्यक नहीं, मगर उन चार मकानों का हाल लिखे बिना काम न चलेगा जो कि देवमन्दिर या यों कहिए कि इस नकली बाग के चारों तरफ एक-दूसरे के मुकाबले में बने हुए थे और जिन चारों ही मकानों के बगल में एक-एक कोठरी और कोठरी से थोड़ी दूर के फासले पर एक-एक कुआं भी बना हुआ था।
पूरब की तरफ वाले मकान के चारों तरफ पीतल की ऊंची दीवार थी इसलिए उस मकान का केवल ऊपर वाला हिस्सा दिखाई था और कुछ मालूम नहीं होता था कि उसके अन्दर क्या है, हां छत के ऊपर एक लोहे का पतला महराबदार खम्भ निकला हुआ जरूर दिखाई दे रहा था जिसका दूसरा सिर उसके पास वाले कुएं के अन्दर गया हुआ था। उस मकान के चारों तरफ जो पीतल की दीवार थी उसी में एक बन्द दरवाजा भी दिखाई देता था जिसके दोनों तरफ पीतल के दो-दो आदमी हाथ में नंगी तलवारें लिए खड़े थे।
पश्चिम तरफ वाले मकान के दरवाजे पर हड्डियों का एक बड़ा-सा ढेर था और उसके बीचोंबीच में लोहे की एक जंजीर गड़ी थी जिसका दूसरा सिरा उसके पास वाले कुएं के अन्दर गया था।
उत्तर तरफ वाला मकान गोलाकार स्याह पत्थरों का बना हुआ था और उसके चारों तरफ चर्खियां और तरह-तरह के कल-पुर्जे लगे हुए थे। इसी मकान के पास वाले कुएं के अन्दर मायारानी अपने पति का काम तमाम करने के लिए गई थी।
दक्खिन की तरफ वाले मकान के ऊपर चारों कोनों पर चार बुर्जियां थीं और उनके ऊपर लोहे का जाल पड़ा था। उन चारों बुर्जियों पर (जाल के अन्दर) चार मोर न मालूम किस चीज के बने हुए थे जो हर वक्त नाचा करते थे।
आज उसी देवमन्दिर के कमरे में दोनों कुमार, कमलिनी, लाडिली और ऐयार लोग बैठे आपस में कुछ बातें कर रहे हैं। रिक्तग्रन्थ अर्थात् किसी के खून से लिखी हुई किताब कुंअर इन्द्रजीतसिंह के हाथों में है और वह बड़े प्रेम से उसकी जिल्द को देख रहे हैं, मगर अभी तक उस किताब को पढ़ने की नौबत नहीं आई है। कमलिनी मुहब्बत की निगाह से इन्द्रजीतसिंह को देख रही है। उसी तरह लाडिली भी छिपी निगाहें कुंअर आनन्दसिंह पर डाल रही है।
कमलिनी - (इन्द्रजीतसिंह से) अब आपको चाहिए कि जहां तक जल्द हो सके यह रिक्तग्रंथ पढ़ जायं।
इन्द्रजीसिंह - हां, मैं भी यही चाहता हूं, परन्तु पहले उन कामों से छुट्टी पा लेनी चाहिए जिनके लिए तेजसिंह चाचा को और ऐयारों को हम लोग यहां तक साथ लाए हैं।
कमलिनी - मैं इन लोगों को केवल रास्ता दिखाने के लिए यहां तक लाई थी सो काम तो हो ही चुका, अब इन लोगों को यहां से जाना और कोई नया काम करना चाहिए और आपको भी रिक्तग्रंथ पढ़ने के बाद तिलिस्म तोड़ने में लग जाना चाहिए।
इन्द्रजीतसिंह - राजा गोपालसिंह ने कहा था कि किशोरी और कामिनी को छुड़ाकर जब हम आ जायं तब तिलिस्म तोड़ने में हाथ लगाना। इसके अतिरिक्त तेजसिंह चाचा से मुझे राजा गोपालसिंह के छुड़ाने का हाल सुनना भी बाकी है।
तेजसिंह - उस बारे में कुछ हाल तो मैं आपसे कह भी चुका हूं!
आनन्दसिंह - जी हां, आप वहां तक कह चुके हैं जब (कमलिनी की तरफ देखकर) ये चंडूल की सूरत बनाकर आपके पास आई थीं, मगर हमें यह न मालूम हुआ कि इन्होंने हरनामसिंह, बिहारीसिंह और मायारानी के कान में क्या कहा जिसे सुन सभी की अवस्था बदल गई थी। जहां तक मैं समझता हूं, शायद इन्होंने राजा गोपालसिंह के ही बारे में कोई इशारा किया होगा।
कमलिनी - जी हां, यही बात है। राजा गोपालसिंह को कैद करने में हरनामसिंह और बिहारीसिंह ने भी मायारानी का साथ दिया था और धनपत इस काम की जड़ है।
इन्द्रजीतसिंह - (हंसकर) धनपत इस काम की जड़ है!
कमलिनी - जी हां, मैं बोलने में भूलती नहीं, धनपत वास्तव में औरत नहीं है बल्कि मर्द है। उसकी खूबसूरती ने मायारानी को फंसा लिया और उसी की मुहब्बत में पड़कर उसने यह अनर्थ किया था। ईश्वर ने धनपत का चेहरा ऐसा बनाया है कि वह मुद्दत तक औरत बनकर रह सकता है। एक तो वह नाटा है। दूसरे अठारह वर्ष की अवस्था हो जाने पर भी दाढ़ी-मूंछ की निशानी नहीं आई। लेकिन जनानी सूरत होने पर भी उसमें ताकत बहुत है।
इन्द्रजीतसिंह - (ताज्जुब से) यह तो एक नई बात तुमने सुनाई। अच्छा तब?
लाडिली - क्या धनपत मर्द है?
कमलिनी - हां, और यह हाल मायारानी, बिहारीसिंह और हरनामसिंह के सिवाय और किसी को मालूम नहीं है। कुछ दिन बाद मुझे मालूम हो गया था, मगर आज के पहले यह हाल मैंने भी किसी से नहीं कहा था। इसी तरह राजा गोपालसिंह का हाल भी उन चारों के सिवाय और कोई नहीं जानता था और जब कोई पांचवां आदमी उस भेद को जानेगा तो बेशक हम चारों की जान जायगी और यही सबब उस समय उन लोगों की बदहवासी का था जब मैंने चंडूल बनकर उन तीनों के कानों में पते की बात कही थी, मगर उस समय इसके साथ-साथ ही मैंने यह भी कह दिया था कि राजा गोपालसिंह का हाल हजारों आदमी जान गए हैं और वीरेन्द्रसिंह के लश्कर में भी यह बात मशहूर हो गई है।
आनन्दसिंह - ठीक है, मगर बिहारीसिंह ने मायारानी से यह हाल क्यों नहीं कहा?
कमलिनी - इसका एक खास सबब है।
इन्द्रजीतसिंह - वह क्या?
कमलिनी - बिहारी और हरनाम ने मायारानी के दो प्रेमी पात्रों का खून किया है जिसका हाल मायारानी को भी मालूम नहीं है, उसका भी इशारा मैंने उन दोनों के कानों में किया था।
इन्द्रजीतसिंह - (हंसकर) तुम्हारी बहिन बड़ी ही शैतान है! मगर देखना चाहिए तुम कैसी निकलती हो, खून का साथ देती हो या नहीं!
कमलिनी - (हाथ जोड़कर) बस, माफ कीजिए, ऐसा कहना हम दोनों बहिनों (लाडिली की तरफ इशारा करके) के लिए उचित नहीं! इसका एक सबब भी है।
इन्द्रजीतसिंह - वह क्या?
कमलिनी - मेरे पिता की दो शादियां हुई थीं। मैं और लाडिली एक मां के पेट से हुईं और कम्बख्त मायारानी दूसरी मां के पेट से, इसलिए हम दोनों का खून उसके संग नहीं मिल सकता।
इन्द्रजीतसिंह - (हंसकर) शुक्र है, खैर यह कहो कि चंडूल बनने के बाद तुमने क्या किया?
कमलिनी - चंडूल बनने के बाद मैंने नानक को बाग के बाहर कर दिया और तेजसिंहजी को राजा गोपालसिंह के पास ले जाकर दोनों की मुलाकात कराई, इसके बाद वहां रहने का स्थान, राजा गोपालसिंह के छुड़ाने की तरकीब, और फिर उन्हें साथ लेकर बाग के बाहर हो जाने का रास्ता बताकर मैं तेजसिंहजी से विदा हुई और आप लोगों को कैद से छुड़ाने का उद्योग करने लगी। इसके बाद जो कुछ हुआ आप जान ही चुके हैं। हां, राजा गोपालसिंह को छुड़ाने के समय तेजसिंहजी ने क्या-क्या किया सो आप इन्हीं से पूछिए।
अब पाठक समझ ही गये होंगे कि राजा गोपालसिंह को कैद से छुड़ाने वाले तेजसिंह थे और जब राजा गोपालसिंह को मारने के लिए मायारानी कैदखाने में गई थी तो तेजसिंह ही ने आवाज देकर उसे परेशान कर दिया था। दोनों कुमारों के पूछने पर तेजसिंह ने अपना पूरा-पूरा हाल बयान किया जिसे सुनकर कुमार बहुत प्रसन्न हुए।