भाग 18
रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज के सिवाय और किसी तरह की आवाज सुनाई नहीं देती। ऐसे समय में काशी की तंग गलियों में दो आदमी, जिनमें एक औरत और दूसरा मर्द है, घूमते हुए दिखाई देते हैं। ये दोनों कमलिनी और भूतनाथ हैं जो त्रिलोचनेश्वर महादेव के पास मनोरमा के मकान पर पहुंचने की धुन में कदम बढ़ाये हुए तेजी के साथ जा रहे हैं। जब ये दोनों एक चौमुहानी के पास पहुंचे तो देखा कि दाहिनी तरफ से एक आदमी पीठ पर गट्ठर लादे आया और उसी तरफ को घूमा जिधर ये दोनों जाने वाले थे। कमलिनी ने धीरे से भूतनाथ के कान में कहा, “इस गठरी में जरूर कोई आदमी है।”
भूतनाथ - बेशक ऐसा ही है। इस आदमी की चाल पर भी मुझे कुछ शक पड़ता है। ताज्जुब नहीं कि यह मनोरमा का नौकर श्यामलाल हो।
कमलिनी - तुम्हारा शक ठीक हो सकता है क्योंकि तुम बहुत दिनों तक मनोरमा के मकान पर रह चुके हो और वहां के हर एक आदमी को बखूबी जानते हो।
भूतनाथ - कहो तो इसे रोकूं?
कमलिनी - हां-हां रोको, जाने न पावे।
भूतनाथ लपककर उस आदमी के सामने आया और कमर से खंजर निकालकर उसके सामने चमकाया। उसकी चमक में भूतनाथ और कमलिनी ने उस आदमी को पहचान लिया, मगर वह इन दोनों को अच्छी तरह न देख सका, क्योंकि बिजली की तरह चमकने वाली रोशनी ने उसकी आंखें बन्द कर दीं और वह घबराकर बैठ गया। भूतनाथ ने खंजर उसके बदन से लगाया जिसकी तासीर से वह एक दफे कांपा और बेहोश होकर जमीन पर लम्बा हो गया। भूतनाथ ने उसे उसी तरह छोड़ दिया और गठरी का कोना खोलकर देखा तो उसमें एक कमसिन औरत बंधी पाई। कमलिनी के हुक्म से भूतनाथ ने वह गठरी अपनी पीठ पर लाद ली और मनोरमा के घर का रास्ता छोड़ दोनों आदमी गंगा-किनारे की तरफ रवाना हुए।
बात-की-बात में दोनों गंगा-किनारे जा पहुंचे। इस समय चन्द्रमा की रोशनी अच्छी तरह फैली हुई थी। एक मढ़ी के ऊपर बैठने के बाद भूतनाथ ने वह गठरी खोली। उस बेहोश औरत के चेहरे पर चन्द्रमा की रोशनी पड़ते ही भूतनाथ चौंककर बोला, “ओफ, यह तो कमला है!”
कमला होश में लाई गई। जब उसकी निगाह भूतनाथ के ऊपर पड़ी तो वह एकदम कांप उठी। कमला को उस दिन की बात याद आ गई जिस दिन खंडहर के तहखाने में अपने चाचा शेरसिंह के पास भूतनाथ को देखा था, कमला को शक हो गया कि इस समय वह जिसके हुक्म से बेहोश करके लाई गई, वह भूतनाथ ही है। कमला की दूसरी निगाह कमलिनी पर पड़ी मगर वह कमलिनी को पहचान न सकी। यद्यपि कमला कमलिनी को रोहतासगढ़ पहाड़ी पर देख चुकी थी परन्तु इस समय कमलिनी उस भयानक राक्षसी के भेष में न थी, रंग काला जरूर था, परन्तु लम्बे-लम्बे दांत उसके मुंह में न थे, इसी से वह कमलिनी को नहीं पहचान सकी।
कमलिनी ने जब देखा कि कमला बहुत ही डरी हुई और हैरान मालूम पड़ती है तो उसने कमला का हाथ पकड़ लिया और धीरे से दबाकर कहा, “कमला, तू डर मत। हम लोगों ने इस समय तुझे एक दुश्मन के हाथ से छुड़ाया है।”
कमला - अब मेरा जी ठिकाने हुआ। मुझे उम्मीद है कि आप लोगों की तरफ से मुझे तकलीफ न पहुंचेगी। परन्तु आप लोगों को जानने के लिए मेरा जी बेचैन हो रहा है।
कमलिनी - ठीक है, जरूर तेरा जी चाहता होगा कि हम लोगों का हाल जाने और इसी तरह मैं भी तुझसे बहुत-कुछ पूछना चाहती हूं मगर इस समय केवल चार-पांच घण्टे के लिए तुझसे जुदा होती हूं, तब तक तू (भूतनाथ की तरफ इशारा करके) इनके साथ रह। किसी तरह से डर मत, सबेरा होने के पहले ही मैं तुझसे आकर मिलूंगी और बातचीत के बाद कुंअर इन्द्रजीतसिंह के छुड़ाने का उद्योग करूंगी।
कमला - मैं आपके हुक्म के खिलाफ कुछ न करूंगी। मैं आपसे हर तरह पर भलाई की आशा रखती हूं क्योंकि आपने मुझे एक ऐसे दुश्मन के हाथ से छुड़ाया है जिसका हाल मैं ही जानती हूं।
कमलिनी - अच्छा, तो अब बातों में समय नष्ट करना ठीक नहीं है। (भूतनाथ की तरफ देखकर) भूतनाथ, यहां छोटी-छोटी बहुत-सी डोंगियां बंधी हुई हैं, सन्नाटा और मौका देखकर कोई एक डोंगी खोल लो और कमला को साथ लेकर गंगा-पार चले जाओ। मैं अब मनोरमा के घर जाती हूं, वहां से अपना मतलब साधकर सबेरा होने के पहले ही तुमसे आ मिलूंगी।
कमला - (चौंककर) क्या नाम लिया, मनोरमा! हाय-हाय, वह तो बड़ी शैतान है। हम लोगों को तो उसने तबाह कर डाला। क्या तुम उसके...
कमलिनी - डर मत कमला! मनोरमा को मैंने कैद कर लिया है और अब एक जरूरी काम के लिए उसके घर पर जा रही हूं। (आसमान की तरफ देखकर) ओफ, बहुत विलम्ब हुआ, खैर, अब बिदा होती हूं, पुनः मिलने पर सब हाल कहूंगी।
कमलिनी वहां से रवाना हुई और थोड़ी ही देर में उस बाग के फाटक पर जा पहुंची जिसमें मनोरमा का मकान था। फाटक के साथ लोहे की एक जंजीर लगी हुई थी जिसे हिलाने से दरबान ने एक छोटे-से सूराख में से बाहर की तरफ देखा जो इसी काम के लिए बना हुआ था। केवल एक औरत को दरवाजे पर मौजूद पाकर दरबान ने फाटक खोल दिया और जब कमलिनी अन्दर चली आई तो फाटक उसी तरह बन्द कर दिया और तब कमलिनी से पूछा, “तुम कौन हो और यहां किसलिए आई हो'?
कमलिनी - मुझे मनोरमाजी ने पत्र देकर अपनी सखी नागर के पास भेजा है, तुम मुझे नागर के पास बहुत चल्द ले चलो।
दरबान - वह तो यहां नहीं हैं, किसी दूसरी जगह गई हैं।
कमलिनी - कब आवेंगी?
दरबान - सो मैं ठीक नहीं कह सकता।
कमलिनी - क्या तुम यह भी नहीं कह सकते कि वे आज या कल तक लौट आवेंगी या नहीं?
दरबान - हां, यह तो मैं कह सकता हूं कि चार-पांच दिन तक वे न आवेंगी; इसके बाद चाहे जब आवें।
कमलिनी - अफसोस, अब बेचारी मनोरमा नहीं बच सकती।
दरबान - (चौंककर) क्यों-क्यों उन पर क्या आफत आई?
कमलिनी - यह एक गुप्त बात है जो मैं तुमसे नहीं कह सकती, हां, इतना कहने में कोई हर्ज नहीं कि यदि तीन दिन के अन्दर उन्हें बचाने का उद्योग न किया जायगा तो चौथे दिन कुछ नहीं हो सकता, वे अवश्य मार डाली जायेंगी।
दरबान - अफसोस, यदि आप एक दिन तक यहां अटकना मंजूर करें तो मैं नागरजी के पास जाकर उन्हें बुला लाऊं। आपको यहां किसी तरह की तकलीफ न होगी!
कमलिनी - (कुछ सोचकर) मुझे एक जरूरी काम है, इसलिए अटक तो नहीं सकती, परन्तु कल शाम तक अपना काम करके लौट आ सकती हूं।
दरबान - यदि आप ऐसा करें तो भी काम चल सकता है, परन्तु आप अटक न जायं। यदि आपका काम ऐसा हो जिसे हम लोग कर सकते हों तो आप कहें, उसका बन्दोबस्त कर दिया जायगा।
कमलिनी - नहीं, बिना मेरे गये वह काम नहीं हो सकता। मगर कोई चिन्ता नहीं, मैं कल शाम तक अवश्य आ जाऊंगी।
दरबान - जैसी मर्जी, आपकी मेहरबानी से यदि हमारे मालिक की जान बच जायगी तो हम लोग जन्म भर के लिए गुलाम रहेंगे।
कमलिनी - मैं अवश्य आऊंगी और उनके लिए हर तरह का उद्योग करूंगी, तुम जाती समय इसका बन्दोबस्त कर जाना कि यदि तुम्हारे लौट आने के पहले ही मैं यहां पहुंच जाऊं तो मुझे यहां रहने में किसी तरह का तरद्दुद न हो।
दरबान - इससे आप बेफिक्र रहें, मैं पूरा-पूरा इन्तजाम करके जाऊंगा और नागरजी को लेकर बहुत जल्दी लौटूंगा।
फाटक खोल दिया गया और कमलिनी बाग के बाहर हो गई। वह अभी बीस कदम भी आगे न गई होगी कि एक आदमी बदहवास और दौड़ता हुआ उसी बाग के फाटक पर पहुंचा और दरवाजा खुलवाने का उद्योग करने लगा। कमलिनी जान गई कि यह वही आदमी है जिसके हाथ से अभी थोड़ी ही देर पहले मैंने कमला को छुड़ाया है। कमलिनी उसी जगह आड़ में खड़ी होकर उसे देखने और कुछ सोचने लगी। जब बाग का फाटक खुल गया और वह आदमी अन्दर चला गया तो न मालूम क्या सोचती-विचारती कमलिनी भी वहां से रवाना हुई और थोड़ी रात बाकी थी, जब कमला और भूतनाथ के पास पहुंची जो गंगा-पार उसके आने की राह देख रहे थे। कमलिनी को बहुत जल्दी लौट आते देख भूतनाथ को ताज्जुब हुआ और उसने कहा –
भूतनाथ - मालूम होता है कि कुछ काम न हुआ और आपको खाली ही लौट आना पड़ा!
कमलिनी - हां, इस समय तो खाली ही लौटना पड़ा, मगर काम हो जायगा। नागर घर पर मौजूद न थी, उसका आदमी उसे बुलाने के लिए गया है। मैं कल शाम तक फिर वहां पहुंचने का वादा कर आई हूं। इच्छा तो यही थी कि वहां अटक जाऊं क्योंकि ऐसा करने से और भी कुछ काम निकलने की उम्मीद थी, परन्तु कमला के खयाल से लौट आना पड़ा। मैं चाहती हूं कि कमला को रोहतासगढ़ रवाना कर दूं क्योंकि उसकी जुबानी कुछ हाल सुनकर राजा वीरेन्द्रसिंह को ढाढ़स होगी और लड़कों के सोच में बहुत व्याकुल न रहेंगे। (कमला की तरफ देखकर) तेरी क्या राय है?
कमला - जो कुछ आप हुक्म दें मैं करने को तैयार हूं, परन्तु इस समय मैं बहुत-सी बातों का असल भेद जानने के लिए बेचैन हो रही हूं और सिवाय आपके कोई दूसरा मेरी दिलजमई नहीं कर सकता!
कमलिनी - कोई हर्ज नहीं, मैं हर तरह से तेरी दिलजमई कर दूंगी।
इतना सुनकर कमला भूतनाथ की तरफ देखने लगी। कमलिनी समझ गई कि यह निराले में मुझसे कुछ पूछना चाहती है। अस्तु, उसने भूतनाथ को वहां से हट जाने के लिए कहा और जब वह कुछ दूर चला गया तो कमला से बोली, “अब निराला हो गया, जो कुछ पूछना हो पूछो।”
कमला - मुझे आपका कुछ हाल भूतनाथ की जुबानी मालूम हुआ है परन्तु उससे पूरी दिलजमई नहीं होती। मुझे पूरा-पूरा पता लग चुका था कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह आपके यहां कैद हैं, फिर न मालूम, उन पर क्या आफत आई और उनके साथ आपने क्या सलूक किया। यद्यपि उस समय हम लोग आपके नाम से डरते थे, परन्तु जब आपने कई दफे हम लोगों के साथ नेकी की जिसका हाल आज मालूम हुआ है तो वह बात अब मेरे दिल से जाती रही, फिर भी कुंअर इन्द्रजीतसिंह के बारे में शक बना ही रहा है।
कमलिनी - सुन, मैं तुझसे पूरा-पूरा हाल कहती हूं। यह तो तुझे मालूम ही हो चुका कि मैं कमलिनी हूं।
कमला - जी हां, यह तो (भूतनाथ की तरफ इशारा करके) इनकी कृपा से मालूम हो गया और इन्हीं के जुबानी यह भी जान गई कि रोहतासगढ़ में उस कब्रिस्तान के अन्दर हाथ में चमकता हुआ नेजा लेकर आप ही ने हम लोगों की मदद की थी और बेहोश करके रोहतासगढ़ किले के अन्दर पहुंचा दिया था। दूसरी दफे राजा वीरेन्द्रसिंह वगैरह को रोहतासगढ़ के कैदखाने से आप ही ने छुड़ाया था और तीसरी दफे उस खंडहर में यकायक विचित्र रीति से आप ही को पहुंचते हम लोगों ने देखा था।
कमलिनी - यद्यपि कुछ लोगों ने मुझे बदनाम कर रखा है, परन्तु वास्तव में मैं वैसी नहीं हूं। मैं नेकी करने के लिए हरदम तैयार रहती हूं, इसी तरह दुष्टों को मजा चखाने की भी नीयत रहती है। मैंने कुंअर इन्द्रजीतसिंह के साथ किसी तरह की बुराई नहीं की, बल्कि उनके साथ नेकी की और उन्हें एक बहुत बड़े दुश्मन के हाथ से छुड़ाया। जब वे तुम लोगों से मिलेंगे और हाल कहेंगे, तब मालूम होगा कि कमलिनी ने सच कहा था!
इसके बाद कमलिनी ने इन्द्रजीतसिंह का अपने लश्कर से गायब होना और उन्हें दुश्मन के हाथ से छुड़ाना, कई दिनों तक अपने मकान में रखना, माधवी को गिरफ्तार करना, किशोरी का रोहतासगढ़ के तहखाने से निकलना और धनपत के कब्जे में पड़ना, तारा के खबर पहुंचाने पर इन्द्रजीतसिंह को साथ लेकर किशोरी को छुड़ाने के लिए जाना, रास्ते में शेरसिंह और देवीसिंह से मिलना, अग्निदत्त का हाल और अन्त में उस तिलिस्मी मकान के अन्दर सभी लोगों का कूद जाना आदि कमला से पूरा-पूरा बयान किया। कमला ताज्जुब से सब बातें सुनती रही और अब कमलिनी पर उसे पूरा-पूरा विश्वास हो गया।
कमला - फिर किशोरी और कुंअर इन्द्रजीतसिंह उस खंडहर वाले तहखाने में क्योंकर पहुंचे?
कमलिनी - वह खंडहर एक छोटे से तिलिस्म से सम्बन्ध रखता है। एक औरत जो मायारानी के नाम से पुकारी जाती है और जिसका हाल कुछ दिन बाद तुम लोगों को मालूम होगा, उस तिलिस्म पर राज्य करती है। मैं उसकी सगी बहिन हूं। हमारी तिलिस्मी किताब से साबित होता है कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह उस तिलिस्म को तोड़ेंगे क्योंकि तिलिस्म तोड़ने वालों के जो-जो लक्षण उस किताब में लिखे हैं, वे सब इन दोनों भाइयों में पाये जाते हैं, परन्तु मायारानी चाहती है कि तिलिस्म टूटने न पावे और इसीलिए वह दोनों कुमारों को अपनी कैद में रखने अथवा मार डालने का उद्योग कर रही है। मैंने उसे बहुत-कुछ समझाया और कहा कि तिलिस्म बनाने वालों के खिलाफ चलने और इन दोनों भाइयों से दुश्मनी रखने का नतीजा अच्छा न होगा परन्तु उसने न माना बल्कि वह मेरी भी दुश्मन बन बैठी। अन्त में लाचार मुझे उसका साथ छोड़ देना पड़ा। मैंने उस तालाब वाले मकान पर अपना कब्जा कर लिया और उसी में रहने लगी। उस मकान में मैं बेफिक्र रहती हूं। मायारानी के कई आदमियों ने, जो नेक और ईमानदार थे, मेरा साथ दिया। तिलिस्म का जितना हाल उसे मालूम है, उतना ही मुझे भी मालूम है। यही सबब है कि वह अर्थात् तिलिस्मी महारानी (मायारानी) वीरेन्द्रसिंह और उनके खानदान के साथ दुश्मनी कर रही है और मैं हर तरह से उनकी मदद कर रही हूं। उस तिलिस्मी मकान के अन्दर इन्द्रजीसिंह और उनके साथियों तथा मेरे नौकरों का हंसते-हंसते कूद जाना उसी तिलिस्मी महारानी की कार्रवाई थी और उस खंडहर वाले तहखाने में जो कुछ तुम लोगों ने देखा, वह सब भी उसी की बदौलत थी। अफसोस, गुप्त राह से महारानी के बहुत से आदमियों के पहुंच जाने के कारण मैं कुछ कर न सकी। खैर, कोई हर्ज नहीं। कुंअर इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह और किशोरी तथा कामिनी वगैरह का मायारानी कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती, क्योंकि उसकी असल जमा-पूंजी जो थी, वह मेरे हाथ लग चुकी है जिसका खुलासा हाल इस समय मैं नहीं कह सकती। हां, इतना प्रतिज्ञापूर्वक कहती हूं कि उन लोगों को मैं बहुत जल्द कैद से छुड़ाऊंगी।
कमला - मैं समझती हूं कि वह मकान भी तिलिस्मी होगा जिसके अन्दर कुंअर इन्द्रजीतसिंह वगैरह हंसते-हंसते कूद पड़े थे।
कमलिनी - नहीं; उस मकान का तिलिस्म से कोई सम्बन्ध नहीं, वह नया बनाया गया है। मुझे उसकी खबर न थी इसी से मैं धोखे में आ गई, पीछे पता लगाने से मालूम हुआ कि वह भी मायारानी की कार्रवाई थी।
कमला - अब मेरा जी ठिकाने हुआ और आपकी बदौलत अपनी प्यारी सखी किशोरी और कुंअर इन्द्रजीतसिंह वगैरह के छूटने की उम्मीद हुई। अब आशा है कि आपकी कृपा से एक दफे मायारानी को भी देखूंगी।
कमलिनी - इसके लिए जल्दी करना मुनासिब नहीं, मैं आज ही कल में तुझे अपने साथ मायारानी के घर ले चलती, क्योंकि मुझे वहां जाने की बहुत जल्दी है परन्तु इस समय तेरा रोहतासगढ़ लौट जाना ही ठीक है क्योंकि राजा वीरेन्द्रसिंह लड़कों की जुदाई में हद्द से ज्यादे दुःखी होंगे, तेरे लौट जाने से उन्हें ढाढ़स होगा और मेरी जुबानी जो कुछ तूने सुना है जब उनसे बयान करेगी तो उन्हें एक प्रकार की आशा हो जायगी। हां, एक बात तुझसे पूछना मैं भूल गई।
कमला - वह क्या?
कमलिनी - तू कहती है कि मैं मायारानी को देखा चाहती हूं, तो क्या तूने उसे नहीं देखा उसी के आदमी तो तुझे गिरफ्तार करके ले गए थे, जहां तक मैं समझती हूं, तू उसके पास जरूर पहुंचाई गई होगी।
कमला - हां-हां, मैं एक जनाने दरबार में पहुंचाई गई थी मगर यह नहीं कह सकती कि वह मायारानी का ही दरबार था या कोई दूसरा, और यदि मायारानी का ही दरबार था तो...
कमलिनी - पहले तू अपना हाल कह जा कि जब खंडहर के अन्दर तहखाने में घुसी तो क्या हुआ और क्योंकर गिरफ्तार होकर कहां गई?
कमला - जब हम लोग राजा वीरेन्द्रसिंह के साथ कुमार को निकालने के लिए उस खंडहर वाले तहखाने में गये तो वहां किसी को न पाया। सीढ़ी के नीचे एक छोटी कोठरी थी, मैं उसमें घुस गई। देखा कि पत्थर की एक सिल्ली दीवार से अलग होकर जमीन पर पड़ी हुई और उस जगह एक आदमी के जाने लायक रास्ता है। उस दरवाजे के दूसरी तरफ एक और कोठरी नजर आई जिसमें चिराग जल रहा था। मैंने आनन्दसिंह और तारासिंह को पुकारा, जब वे आ गए तो तीनों आदमी उस कोठरी के अन्दर घुसे। जब दो-तीन कदम आगे गये तो यकायक पीछे से खटके की आवाज आई, घूमकर देखा तो वह रास्ता बन्द पाया जिधर से आये थे। ताज्जुब में आकर हम लोग सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। यकायक कई आदमी एक तरफ से निकलकर आये और उन लोगों ने फुर्ती के साथ एक-एक चादर हम लोगों के ऊपर डाल दी। मुझे उस चादर की तेज महक कभी न भूलेगी। सिर पर पड़ते ही अजब हालत हो गई, एक प्रकार की तेज महक नाक के अन्दर घुसी और उसने तन-बदन की सुध भुला दी। न मालूम उसी दिन या दूसरे या कई दिन के बाद जब मैं होश में आई तो अपने को रात के समय एक जनाने दरबार में पाया।
कमलिनी - वह दरबार कैसा था?
कमला - वह दरबार एक बारहदरी में था। जड़ाऊ सिंहासन पर एक नौजवान औरत दक्षिणी ढंग की पोशाक पहने बैठी थी। मैं कह सकती हूं कि सिवाय किशोरी के उसके मुकाबले की खूबसूरत औरत आज तक किसी ने न देखी होगी।
कमलिनी - बस-बस, मैं समझ गई, वही मायारानी थी। हां, और क्या देखा?
कमला - उसके दाहिनी तरफ सोने की एक चौकी पर मृगछाला बिछा हुआ था मगर उस पर कोई बैठा न था।
कमलिनी - वह तिलिस्म के दारोगा की जगह थी जो वृद्ध साधु के वेश में रहता है, मगर आजकल उसे राजा वीरेन्द्रसिंह ने कैद कर लिया है।
कमला - (ताज्जुब से) राजा वीरेन्द्रसिंह ने कब और किस दारोगा को कैद किया है?
कमलिनी - उस तिलिस्मी खंडहर में जब तुम लोग गये तो किसी साधु को बेहोश पाया था या नहीं?
कमला - (कुछ सोचकर) हां-हां, एक कोठरी के अन्दर जिसमें एक मूरत थी। क्या वही तिलिस्मी दारोगा है?
कमलिनी - हां, वही दारोगा है, वही बहुत से आदमियों को साथ लेकर तहखाने में से कुमार को उठा लाने के लिए उस खंडहर में गया था, मगर तारासिंह की चालाकी से अपने साथियों के सहित बेहोश हो गया। उस समय वेश बदले मेरा भी एक आदमी वहां मौजूद था, मगर दूर ही से सब-कुछ देख रहा था। हां तो उस दरबार में और क्या देखा?
कमला - उस मृगछाला बिछी हुई चौकी के पास अर्धगोलाकार बीस जड़ाऊ कुर्सियां और थीं और उसी तरह सिंहासन के बाईं तरफ छोटे जड़ाऊ सिंहासन पर एक खूबसूरत औरत बैठी हुई थी जिसके बाद फिर बीस या इक्कीस जड़ाऊ कुर्सियां थीं, और दोनों तरफ वाली जड़ाऊ कुर्सियों पर नौजवान और खूबसूरत औरतें बड़े ठाठ से बैठी थीं।1 मैं उस दरबार को कभी न भूलूंगी।
कमलिनी - ठीक है, तो अब तुझे मायारानी को देखने की कोई आवश्यकता नहीं, खैर, मुख्तसर में कह, फिर क्या हुआ?
कमला - पहले यह बता दीजिये कि मायारानी के बगल में छोटे जड़ाऊ सिंहासन पर कौन औरत थी, क्योंकि वह भी बड़ी ही खूबसूरत थी।
कमलिनी - वह मेरी छोटी बहिन थी। सबसे बड़ी मायारानी, उससे छोटी मैं और मुझसे छोटी वही औरत है, उसका नाम लाडिली है।
कमला - आपकी और भी कोई बहिन है?
कमलिनी - नहीं, हम तीनों के सिवाय और कोई बहिन या भाई नहीं है। अब तू अपना हाल कह, फिर क्या हुआ?
कमला - मायारानी के सिंहासन के पीछे मनोरमा खड़ी थी। उन सभी की बातचीत से मुझे मालूम हुआ कि उसका नाम मनोरमा है। वह बड़ी दुष्ट थी!
कमलिनी - थी नहीं, बल्कि है। हां, तब क्या हुआ?
कमला - ऐसे दरबार को देख मैं घबरा गई। जिधर निगाह पड़ती थी उधर ही एक से एक बढ़के जड़ाऊ चीजें नजर आती थीं। मैं हैरान थी कि इतनी दौलत इन लोगों के पास कहां से आई और ये लोग कौन हैं। मैं ताज्जुब में आकर चारों तरफ देखने लगी। यकायक मेरी निगाह कुंअर आनन्दसिंह और तारासिंह पर पड़ी। कुंअर आनन्दसिंह हथकड़ी और बेड़ी से लाचार मेरे पीछे की तरफ बैठे थे। उनके पास उन्हीं की तरह हथकड़ी-बेड़ी से बेबस तारासिंह भी बैठे थे। फर्क इतना था कि कुंअर आनन्दसिंह जख्मी न थे, मगर तारासिंह बहुत ही जख्मी और खून से तरबतर हो रहे थे। उनकी पोशाक खून से रंगी हुई मालूम पड़ती थी। यद्यपि उनके जख्मों पर पट्टी बंधी हुई थी मगर सूरत देखने से साफ मालूम पड़ता था कि उनके बदन से खून बहुत निकल गया है और इसी से वे सुस्त और कमजोर हो रहे हैं। कुमार की अवस्था देखकर मुझे क्रोध चढ़ आया, मगर क्या कर सकती थी, क्योंकि हथकड़ी और बेड़ी ने मुझे भी लाचार कर रखा था। हाथ में नंगी तलवारें लिए कई औरतें कुंअर आनन्दसिंह, तारासिंह और मुझको घेरे हुए थीं। यह जानने के लिए मेरा जी बेचैन हो रहा था कि जब हम लोग बेहोश करके यहां लाए गये तो तारासिंह को जख्मी करने की आवश्यकता क्यों पड़ी। मायारानी ने मनोरमा की तरफ देखा और कुछ इशारा किया, मनोरमा तुरत मेरे पास आई। उसके एक हाथ में कोई चीठी थी और दूसरे हाथ में कलम और दवात। मनोरमा ने वह चीठी मेरे आगे रख दी और उस पर हस्ताक्षर कर देने के लिए मुझे कहा, मैंने चीठी पढ़ी और क्रोध के साथ हस्ताक्षर करने से इनकार किया।
1. इसी दरबार में रामभोली का आशिक नानक गया था।
कमलिनी - उस चिठ्ठी में क्या लिखा हुआ था?
कमला - वह चिठ्ठी मेरी तरफ से राजा वीरेन्द्रसिंह के नाम लिखी गई थी और उसमें यह लिखा था –
“आप चिठ्ठी देखते ही केवल एक ऐयार को लेकर इस आदमी के साथ बेखौफ चले आइए। कुंअर इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह और किशोरी वगैरह इसी जगह कैद हैं। उनको छुड़ाने का पूरा-पूरा उद्योग मैं कर चुकी हूं, केवल आपके आने की देर है। यदि आप तीन दिन के अन्दर यहां न पहुंचेंगे तो उन लोगों में से एक की भी जान न बचेगी।”
कमलिनी - अच्छा फिर क्या हुआ
कमला - जब मैंने दस्तखत करने से इनकार किया तो मनोरमा बहुत बिगड़ी और बोली कि “यदि तू हस्ताक्षर न करेगी, तो तेरे सामने ही कुंअर आनन्दसिंह और तारासिंह का सिर काट लिया जायगा और उसके बाद तुझे भी सूली दे दी जायगी।” यह सुनकर मैं घबरा गई और सोचने लगी कि अब क्या करना चाहिए। इतने में ही तारासिंह ने मुझे पुकारकर कहा, “कमला, उस चिठ्ठी में जो कुछ लिखा है मैं अन्दाज से कुछ-कुछ समझ गया। खबरदार, इन लोगों की धमकी में न आना, और चाहे जो हो, उस चिठ्ठी पर दस्तखत भी न करना।” तारासिंह की बात सुनकर मायारानी की तो केवल भौंहें ही चढ़कर रह गयीं, परन्तु मनोरमा बहुत ही उछली-कूदी और बकझक करने लगी। उसने मायारानी की तरफ देखकर कहा, “कम्बख्त तारासिंह को अवश्य सूली देनी चाहिए, उसने अब यहां का रास्ता भी देख लिया है इसलिए उसको मारना आवश्यक हो गया है, और इस नालायक कमला को सरकार मेरे हवाले करें, मैं इसे अपने घर ले जाऊंगी।” मायारानी ने इशारे से मनोरमा की बात मंजूर की। मनोरमा ने एक चोबदार औरत की तरफ देखकर कहा, “कमला को ले जाकर कैद में रखो। चार-पांच दिन बाद काशीजी में हमारे घर पर भिजवा देना, क्योंकि इस समय मुझे एक जरूरी काम के लिए जाना है जहां से तीन-चार दिन के अन्दर शायद न लौट सकूंगी।” हुक्म के साथ ही मुझ पर पुनः चादर डाल दी गई जिसकी तेज महक ने मुझको बेहोश कर दिया और फिर जब मैं होश में आई, तो अपने को एक अंधेरी कोठरी में कैद पाया। कई दिन तक मैं उसी कोठरी में कैद रही और इस बीच में जो कुछ रंज और तकलीफ उठानी पड़ी, उसका कहना व्यर्थ है। आखिर एक दिन भोजन में मुझे बेहोशी की दवा दी गई और बेहोश होने के बाद जब मैं होश में आई तो अपने को आपके कब्जे में पाया। अब न मालूम कुंअर इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह, किशोरी और उनके ऐयार लोगों पर क्या मुसीबत आई और वे लोग किस अवस्था में पड़े हुए हैं!
यहां तक कहकर कमला चुप हो गई मगर उसकी आंखों से आंसू की बूंदें बराबर जारी थीं। कमलिनी भी बड़े गौर और अफसोस के साथ उसकी बातें सुनती जाती थी और जब वह चुप हो गई तो बोली –
कमलिनी - कमला, सब्र कर, घबरा मत। देख, मैं उन लोगों को कैसा छकाती हूं। उन लोगों की क्या मजाल जो मेरे हाथ से बचकर निकल जायें। तिलिस्मी मकान के अन्दर जब कुंअर इन्द्रजीतसिंह वगैरह हंसते-हंसते कूद गये थे तो उन लोगों के पहले मैंने अपने कई आदमी उस मकान के अन्दर कुदाये थे जिसका हाल थोड़ी देर पहले मैं तुझसे कह चुकी हूं। उन आदमियों को बेसबब दुश्मनों के हाथ में नहीं फंसाया, कुछ समझ-बूझ के ही ऐसा किया था। वे लोग साधारण मनुष्य न थे, आशा है कि थोड़े दिन में तू सुन लेगी कि उन लोगों ने क्या-क्या कार्रवाई की।
कमला - आज आपके मिलने से और बहुत-सी बातें सुनकर मेरा जी ठिकाने हुआ। आप सरीखा मददगार पाकर मैं भी अपने जी का हौसला निकालना चाहती हूं और...
कमलिनी - नहीं-नहीं, इस समय तू और कुछ मत सोच और सीधे रोहतासगढ़ चली जा। तेरे वहां जाने से दो काम निकलेंगे, एक तो तेरी जुबानी सब हाल सुनकर राजा वीरेन्द्रसिंह को बहुत-कुछ ढांढ़स होगी, दूसरे, तू इस बात से भी होशियार रहना और सबको भी होशियार कर देना कि वह तिलिस्मी दारोगा अर्थात् बूढ़ा साधु कहीं धोखा देकर निकल न जाय। इसमें कोई शक नहीं कि मायारानी ने उसे छुड़ाने के लिए कई आदमी रोहतासगढ़ भेजे होंगे।
कमला - बहुत अच्छा! मैं रोहतासगढ़ जाती हूं और उस बुड्ढे कम्बख्त से होशियार रहूंगी। मगर एक भेद बहुत दिनों से मेरे दिल में खटक रहा है, यदि आप चाहें तो मेरे दिल से वह खुटका निकाल सकती हैं।
कमलिनी - वह क्या है?
कमला - (भूतनाथ की तरफ इशारा करके) यह कौन हैं इनका असल भेद मुझको बता दीजिये।
कमलिनी - (हंसकर) इसमें सन्देह नहीं कि भूतनाथ के बारे में तरह-तरह की बातें तू सोचती होगी, परन्तु लाचार हूं कि इस समय इनका असल भेद तुझसे नहीं कह सकती। थोड़े ही दिनों में इनका हाल तुझे ही नहीं, सभी को मालूम हो जायगा। हां, इतना अवश्य कहूंगी कि तुझे अपने चाचा शेरसिंह की तरह इनसे डरने की कोई जरूरत नहीं। ये तुझे किसी तरह की तकलीफ न देंगे, बल्कि जहां तक हो सकेगा, तेरी मदद करेंगे।
कमलिनी से अपने सवाल का पूरा-पूरा जवाब न पाकर कमला चुप हो रही और कमलिनी की आज्ञानुसार उसको उसी समय रोहतासगढ़ चले जाना पड़ा।