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श्लोक १३,१४,१५

येषां न विद्या न तपो न दानं
ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः ।
ते मर्त्यलोके भुवि भारभूता
मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ॥[13]

जिन लोगों ने न तो विद्या-अर्जन किया है,  न ही तपस्या में लीन रहे हैं, न ही दान के कार्यों में लगे हैं न ही ज्ञान अर्जित किया है, न ही अच्छा आचरण करते हैं, न ही गुणों को अर्जित किया है और न ही धार्मिक अनुष्ठान किये हैं, वैसे लोग इस मृत्युलोक में मनुष्य के रूप में मृगों की तरह भटकते रहते हैं और ऐसे लोग इस धरती पर भार की  तरह।

वरं पर्वतदुर्गेषु भ्रान्तं वनचरैः सह ।
न मूर्खजनसम्पर्कः सुरेन्द्रभवनेष्वपि ॥[14]

हिंसक पशुओं के साथ जंगल में और दुर्गम पहाड़ों पर विचरण करना कहीं बेहतर है परन्तु मूर्खजन के साथ स्वर्ग में रहना भी श्रेष्ठ नहीं है !

शास्त्रोपस्कृतशब्दसुन्दरगिरिः शिष्यप्रदेयागमा
विख्याताः कवयो वसन्ति विषये यस्य प्रभोर्निधनः ।
तज्जाड्यं वसुधाधिपस्य कवयो ह्यर्थं विनापीश्वराः
कुत्स्याः स्युः कुपरीक्षका न मणयो यैरर्घतः पातितः ॥[15]

अगर कोई प्रसिद्ध कवि जो अपने शब्दों का सुन्दर इस्तेमाल करने में माहिर है, और शास्त्रों के ज्ञान में पारंगत है तथा अपने शिष्यों को भी पारंगत करने योग्य है; आपके राज्य में निर्धन है तो हे राजन यह आपका दुर्भाग्य है न की उस विद्वान कवि का!

ज्ञानी पुरुष आर्थिक संपत्ति के बगैर भी अत्यंत धनी होते हैं। बेशकीमती रत्नों को अगर कोई जौहरी ठीक से परख नहीं पाता तो ये परखने वाले जौहरी की कमी है क्यूंकि इन रत्नो की कीमत कभी कम नहीं होती।