Get it on Google Play
Download on the App Store

गूफ्तगू खुद से : गजल

औरों का नहीं, खुद का ही, दर्शन किया करें,

गुस्से में कभी खुद पे भी तो गर्जन किया करें।

 

सारे मसलों पे फैसले की कवायद में माहिर होंगे,

अदालत में खुद को भी कभी सम्मन किया करें।

 

वो जमाने लद गए कि गैरों पे गुस्सा कर लेंगे,

अब तो खुद को ही जाहिर, दुश्मन किया करें।

 

फूलों की सेज न मिलेगी, जमाने की फितरत है,

खारों को भी जोड़कर कभी गुलशन किया करें।

 

कांटों की अदा कि चुभते हैं, गैरों को ज्यादा,

कांटे बीनकर हर राह को, मधुवन किया करें।

 

झाड़ ओ दीवार लगाकर, बनाई सरहदें हमने,

तोड़कर जहां को एक ही, चमन किया करें।

 

मुंह छिपाई नहीं, मुंह दिखाई के मुरीद बनते हैं,

ऐसे किरदार निभाएंगे, कि चिलमन किया करें।

 

खुद में सबने समेटे हैं, किरदारों के जखीरे इतने,

कभी खुद में से खुद की ही, उतरन किया करें।

 

खुद से रूठे, खुद पे हंसते, खुद को बदलें शेखर,

बढते जाने से बेहतर, खुद के कतरन किया करें।

डॉ हिमांशु शेखर की ग़झले

डॉ हिमांशु शेखर
Chapters
गूफ्तगू खुद से : गजल