सांसपीने वाला सांप
राजस्थान के बाडमेर, जैसलमेर नामक रेगिस्तानी इलाकों में कोटडिया, वशमोचन, बेडाफोड, ओवा, कालिन्दर, गोरावर, चंदन, गो, बोगी, परड़, गोफण जैसे साप तो धातक हैं ही पर इनसे भी अधिक खतरनाक यहा का पीवणा सांप बना हुआ है जो मनुष्य की स्वांस पीकर अपना जहर छोड जाता है और सूर्योदय होते-होते उसे मरधट पहुचा देता है।
पीवणा-रात का राजा: पीवणा साप रात का राजा है, अन्धेरी रात का। अपनी यात्रा यह रात ही को करता है। चादनी रात भी इसके लिये अभिशाप कही गई है| रोशनी तो इसकी पक्की दुश्मन कही गई है। जहां कही इसे रोशनी नजर भी आ गई कि यह अन्धा हो जायेगा| यही स्थिति इसके द्वाराजहर दिये आदमी की है। यदिरात ही को उस आदमी का इलाज कराया और वह बच गया तो ठीक अन्यथा सूरज की पहली किरण निकलने के पश्चात् वह बच नहीं पायेगा। ऐसे खतरनाक साप से इधर के लोग इतने भयभीत हैं कि कोई उसका नाम तक नहीं लेता। इसीलिये इसे सब चोर-चोर कहकर पुकारते हैं। तीन से पाचफीट तक की लम्बाई वाले इस सांप का रेंगने वाला हिस्सा सफेद-पीला तथा ऊपर का गहरा भूरा-काला घुमावदार आडे तिरछे कटे सफेद चकते लिये होता है। इसका मध्य भाग मोटा, मुह पाव के अंगूठे जैसा तथा पीछे का भाग पतला होता है। इसके चलने पर पतली लकीर बनती जाती है।
स्वांस पीकर जहर टपकाने वाला सांप: पीवणा आदमी को काटता नहीं । इसके विषदंत ही नही होते कहते हैं जब इसके मुह की मिसराइयां पक जाती है तब इसे भयकर घबराहट होती है। घबराहट होने से यह इधर उधर भागता है और सोये हुए मनुष्य की गरम गरम स्वास पीता है जिससे मिसराइया
फूट जाती है और इसे शाति मिलती है पर सोये हए मनुष्य को न्याट स्देन के लिए शानि दे जाता है। जो लोग सोते समय खर्राट भरते हैं उन्हें यह अक्सर अपना शिकार बनाता है! अन्य साप जहां चारपाई पर नहीं चढ़ सकते, यह चट जाता है और बिना किसी प्रकारका अहसास दिये सोये व्यक्ति की छाती पर जा बैठता है। आदमी का जब यह स्वास पीना प्रारम्भ करता है| तो धीरे-धीरे उसका मुह खुलता जाता है और बेहोशी आदी जाती है| अन्त में साप उसके मुंह में विष उगल पूछ का झपट्टा दे भाग जाता है।
खाट से उल्टा लटकाने का इलाज: पीवणा का जहर तेज तेजाब की तरह होता है। इससे आहत व्यक्ति न कुछ बोल पाता है न कुछ खा पी पाता है। उसका शरीर टूटने लगता है और तालू में फफोला हो आता है। इस समय रोगी को फिटकरी खिलाई जाती है जो फफोले को तोड़कर श्वासक्रिया को सुचारू करती है। मयूर का अण्डा पिलाकर भी इसका उपचार किया जाता है अण्डा पिलाने से बीमार को कै हो आती है जिससे सारा जहर बाहर निकल आता है। ऐसे कई समझे-बूझे लोग भी हैं जो जिससे सारा जहर बाहर निकल आता है। ऐसे कई समझे- बूझे लोग भी हैं जो फफोले को फोडकर भी रोगी को मरने से बचा लेते हैं। जैसलमेर के रणधा गांव के भगवानसिंह भाटी, अग्रीबाई तथा चन्दनसिंह सोढ़ा इस इलाज के जाने माने लोग हैं जिन्होंने अपने इलाज से कई लोगों को मौत के घाट जाने से बचाया है। धापूबाई नामक एक महिला ने तो अपनी नवविवाहित पुत्री को फफोला फोड़कर नया जीवन प्रदान किया जिसकी कहानी आज भी इधर के लोगों की जबान पर सुनने को मिलती है। जैसलमेर से २५ किलोमीटर पिथला गाव के रावलोत भाटी के यहां जब गोमती शादी कर आई ही थी कि रात को उसे पीवणा ने पी लिया । गोमती सांप के पूंछ के झपट्टे से अचानक जागी तो उसने अपने सुसरालवालों से तत्काल अपनी मां को बुला लाने को कहा जो पीवणे का छाला फोडने मे उस्ताद है। रातो रात ऊटगाडी लेकर पिथलासे कोई ३० किलोमीटर से उसकी मा धापू लाई गई। धापू ने अपनी बिटिया को उल्टी खाट के लटका अपनी अंगुली से तीन बार छाला फोडा और सारा जहर बाहर निकाल उसे बचा लिया। कई लोग पीवणा के रोगी को खाट के बांध उल्टा लटका देते हैं और मलमल के साफ कपड़े को बंटकर सींक बनाकर उससे फफोला फोडते हैं। यह सारा इलाज रातों रात होता है
बीमार के लिए जीवित कब्र: काफी कुछ इलाज के बाद भी जब साप का रोगीसचेत नहीं होता है तो उसका शरीर नीला-काला धब्बेदार होना प्रारम्भ हो जाता है। चेहरे पर झुर्रिया आने लग जाती है और रोगी हाथ-पॉवो के झटके देना प्रारम्भ कर देता है। बाजवक्त ये झटके इतने जोर- जोर के दिये जाते है कि इनसे पांव की खुडियां तक घिस जाती है। छह आठ घण्टे बाद रोगी मूर्छित हो जाता है। ऐसी स्थिति मे सूर्य की रोशनी से रोगी को बचाने के लिए तीन फीट चौड़ी और छह फीट के करीब गहरी खाई खोदकर उसे गोबर मिट्टी से लींप पोत कर बीमार को अन्दर सुला ऊपर काला कपडा ओढा दिया जाता है और उसके बाद झाडफूक तथा तन्त्र मन्त्र करने वाले ओझा भोपों को बुलाया जाता है इससे भी कई रोगी बचते देखे गये हैं।
थाली की आवाज और चमड़े की धूणी से बचाव: जैसलमेर में वहां के मालीपाडा के रहने वाले शिक्षक मनोहर महेचा ने पीवणा साप के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने हेतु कई गायकों मंगणिहारों तथा अन्य लोगों से मेरी भेंट कराई। देवीकोट, सागड, सम, नाचना, अर्जुना आदि गावो की यात्राओं से मिले नन्दलाल बिस्सा, जैनसिह पाऊ, प्रेमसिंह सोढा, अजीत स्वामी, भगवानसिह भाटी आदि की पीवणा विषयक कई आखों देखी घटनायें और इनके वर्षों के अनुभवों ने भी बहुत सारी जानकारी हमें दी! पूछने पर कई महिलाओं ने बताया कि सोने से पूर्व वे प्रतिदिन कांसी की थाली बजाकर सोती हैं। ऐसा कहा जाता है कि जहा तक इस थाली की झनकार पहुंचती है उस क्षेत्र तक पीवणा प्रवेश नहीं करता है। जनसम्पर्क अधिकारी डॉ अमरसिंह राठौड ने बताया कि पीवणा पीये को ऊट के चमड़े की धूणी देकर भी ठीक किया जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि खाट पर सोई औरत की लटकी चोटी के सहारे पीवणा चढ गया। पीवणा द्वारा जानवर मारे जाने के समाचार भी इन्हें प्राप्त हुए। श्री पुरुषोतम छंगाणी ने बताया कि होहल्ला, रोशनी, लहसुन, प्याज तथा शराब पीवणा के पक्के दुश्मन है। सोते समय गांवो में इसीलिये लोग अपने धरों मे प्याज बिखेर देते हैं। श्री महेचा ने भवानीदान नामक एक ऐसे झाडगर कानाम भी मुझे बताया जो नीम की डाली से मन्त्र पढ़ते हुए पीवणा झाडते हैं तब पीवणे का जहर पत्तियों में आ जाता है औरसारी पत्तिया हरी से काली हो जाती है|
पीवणा का रहन-सहन: अन्य सांपो की तरह पीणा-पीवणा भी विल में ही रहता है लिन गिग्तान में पाये जाने वाले जाल, फोग व लाणे की जड़ों के पास अधिकतर बने जाते है । जाल वृक्ष की खोखल में भी पीणे को रहते कुछ लोगों ने देखा है। जैसलमेर से 60 किलोमीटर अर्जुना गाव के विरधसिंह को पावणा के पीने पर जब गाव वाले इकट्ठे हो गये तो उनमें सांप के चिन्ह को पहचानने वाले 50 वर्षीय पागी शोभसिंह हिम्मत कर अपने साथ चार अन्य साथी लेकर पीणे के चिन्ह दखते-देखते चलते रहे और ७ किलोमीटर दूर जाकर एक बिल मिला जिसे उन्होंने खोदा तो उसमें से बारह सांप निकले। इनमें से केवल एक ही पीवणा था। शोभसिंह ने सभी सांप मार डाले। इससे यह स्पष्ट है कि यह सांप कभी अकेला नहीं रहता। पीवणा मारना आसान नहीं| पीवणा को मारना बड़ा आसान नहीं है।
यह बड़ा चालाक चोर होता है। नंदलाल व भगवानसिंह ने तो ३०-३५ साप मारे हैं। मनोहर महेचा को इन्होंने बताया कि यह रबड़ की तरह बडा लचीला होता है । कई लाठियां टूट जाय तब यह मरता है। मारते वक्त यह अपनी ठोड़ी अन्दर की तरह घुसा लेती है। जब तक इसकी ठोड़ी नहीं कुचली जाती, यह मरता नहीं। लाठी मारने पर इससे पी-पी की ध्वनि निकलती है। और जब इसका शरीर फूट जाता है तो बड़ी भयंकर दुर्गन्ध आती है। यह दुर्गन्ध इतनी भयंकर होती है कि वहां खड़ा आदमी उसके मारे बेचैन हो उठता है और उसे उल्टी तक होने लग जाती है।
पेड़ पर लटके सांपो के कंकाल: . अपनी यात्रा में इन सापों के अस्थि पंजर पेड़ों पर लटके भी देखने में आये। सापमारक बाबूसिंह ग्रामसेवक, देवीकोट स्कूल के प्रधानाध्यापक सैयद अली, समरथराम देशान्तरी, भेड़ ऊन विभाग के ऊंट सवार शैतानसिंह ने बताया कि गांवो में सांप मारकर उसे ऊँट के गले तक हल को जोडनेवाली लकड़ी के अंतिम हिस्से में छेदकर निकालते हैं और उसके बाद उसे आग में जलाकर यातो पेड़ पर लटका देते हैं या जमीं में गाड़ देते|
रेगिस्तानी इलाकों में पीवणा से अधिक डरावना, भयानक और खौफनाक और कोई अन्य प्राणी नहीं हैं।