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अमीर औरत

एक बहुत बड़े अमीर की औरत थी। उसके घर में सोना-चांदी, हीरे-जवाहर भरे पड़े थे। वह रेशम की बेशकिमती साड़ियाँ पहनती थी। सुबह-शाम दोनों वक्त वह कपड़े बदलती और कोई भी साड़ी एक दफा पहन लेने के बाद फिर उसे दुबारा नहीं पहनती थी। उसके बहुत-सी दासियों थीं। कोई काम अपने हाथों करने की ज़रूरत न थी। उसके पति भी उसे बहुत प्यार करते और जो चीज़ माँगती तुरंत ला देते । गरज़ कि दुनियाँ में उसे किसी चीज़ की कमी न थी ।

लेकिन नहीं; उसे एक चीज़ की बड़ी कमी थी और वह भी ऐसी चीज़, जो भगवान के सिवा और कोई नहीं दे सकता। यानी उसके कोई बालबच्चे न थे। जब आस-पड़ोस की औरतों की गोद में वह बचों को खेलते देखती तो उसके कलेजे में एक हक पैदा हो जाती। वह मन ही मन जलने लगती।

उस जलन को बुझाने के लिए यह और भी सज धज कर, और भी बन छन कर बाहर निकलती। अड़ोसी पड़ोसियों के घर जा कर उन्हें अपनी बेशकिमती साड़ियाँ और गहने दिखाती। जब अड़ोस-पड़ोस के सब लोग उसकी शान-बान और ठाठ-बाट देख कर दंग रह जाते तो उसको मन ही मन बड़ी खुशी होती। उसका मन हमेशा जलता रहता था। इसलिए दूसरों को जलाने में, अपने गहने कपड़े दिखा कर उन को ललचाने में उसे बड़ी खुशी होती थी।

एक दिन वह रोज की तरह खूब बन ठन कर अकड़ती हुई एक गरीबिन के घर गई । उस घर में माटी की हॉडियों और कुछ फटे पुराने चीथड़ों के सिवा और कुछ नहीं था । वह गरीबिन उस वक्त कपड़े साफ करने में लगी हुई थी। इसलिए वह इस मेहमान की अच्छी आव-मगत न कर सकी।

यह देख कर अमीर-औरत को बड़ा गुस्सा आया। उसने सोचा-'अरे! यह कितनी पर्मदिन है। ठीक तो है, इन कंगालियों को हम अमीरों की खातिर करना क्या मालूम ! लेकिन यह किस बल पर इतनी फूली हुई है! घर में तो पूँजी भांग नहीं है। फिर यह अकड़ कैसी?" ऐसा सोच कर उसने उस गरीबिन से कहा-"क्यों बहन! तुमने कभी 'मुझे अपने गहने-कपड़े नहीं दिखाए! अगर तुम को कोई तकलीफ न हो तो मुझे जरा दिखा दो न ! लोग तो कहते हैं, तुम जैसी बड-मागिनी कोई नहीं है।"

गरीबिन ने जवाब दिया- "अजी, मेरे गहने-कपड़े तो अभी बाहर गए हैं। थोड़ी देर में आ जाएँगे। जरा बैठ जाइए तो सब कुछ देख लीजिएगा।"

अमीर-औरत वहीं बैठ गई और मन ही मन सोचने लगी-"कैसे हैं इस औरत के गहने-कपड़े जो चलते-फिरते भी हैं ! यह तो कहीं नहीं सुना कि गहने-कपड़े घूमने फिरने जाते हैं। तब तो वे निराले गहने होंगे। अच्छा थोड़ी देर में । सब मालूम ही हो जाएगा।"

इतने में दो खूब-सूरत बच्चे हँसते हुए, - किलकारियाँ भरते आए और दौड़ कर उस । गरीबिन से लिपट गए और ठोड़ी पकड कर कहने लगे- "माँ, माँ, देखो तो आज हमें स्कूल में कैसे कैसे इनाम मिले हैं! मास्टर साहब ने कहा था, अगर तुम शास में हर साल अव्वल आओगे तो हर साल तुम्हें इनाम मिलेंगे। माँ, अब हम और भी मन लगा कर पढ़ेंगे।"

माँ ने उन दोनों बच्चों को गोद में लेकर चूम लिया और अपने मेहमान की तरफ देख कर कहा-'बहन, देखिए, यही मेरे हीरे-जवाहर और गहने  हैं। मेरे लिए यही सब कुछ हैं। मुझ गरीबिन को और क्या चाहिए! आप ही बताइए, क्या ये कम सुंदर हैं।"

वे बच्चे क्या थे, मानो लाल-रतन के पुतले थे! उन्हें देख कर वह अमीर-औरत पानी-पानी हो गई।

उसने दोनों हाथ जोड़ कर बारीबिन से कहा, "बहन! क्षमा करो। आज मेरी आंखों का परदा हट गया । लोग कहा करते थे, आप जैसी बड़ भागिनी कोई नहीं है। मैं वेवकूफ अपने मन में सोचती-'जरा जा कर तो देखू वह कैसी धनवान है। आज मुझे मालूम हो गया कि आप कितनी बड़ मागिनी हैं! मेरे पास गहने कपड़े तो हैं; लेकिन सच्चा धन तो आप के पास है। मैं अब जाती हूँ। मुझ पर आप की कृपा बनी रहे।"

यह कह कर वह घर चली गई। उस दिन से वह अमीर औरत बिलकुल बदल गई है। अब उस में गर्व का लेश भी नहीं रह गया है। अब वह अपने हाथ से पर के सब काम-काज करती है। पडोसिने भी अब उसे बहुत प्यार करती हैं । कहते हैं कुछ दिनों में यह एक बचे की माँ बननेवाली है। तब सचमुच ही वह अमीर हो जाएगी।

अमीर औरत

बनारसी बाबु
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