दीपावली व्रत
दीपावली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों 'दीप' अर्थात 'दिया' व 'आवली' अर्थात 'लाइन' या 'श्रृंखला' के मिश्रण से हुई है।
भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है
असतो मा सद्गमय।तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय।ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती हैं। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफेदी आदि का कार्य होने लगता है। लोग दुकानों को भी साफ-सुथरा कर सजाते हैं। बाजारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाजार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं।
कार्तिक कृष्ण अमावस्या को समस्त भारत में दीपावली का त्यौहार बड़े ठाठ बाट से मनाया जाता है। यह वैश्य जाति का महानतम त्यौहार है। इसलिये नाना प्रकार से घर और दुकानों को सजाकर रात्रि को रोशनी की जाती है और भगवती लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा के साथ साथ बही वसनों का पूजन किया जाता है।
इसी दिन भगवती लक्ष्मी जी समुद्र से प्रकट हुई थी और इसी दिन राजा बलि को पाताल का राजा बनाकर वामन भगवान ने उसकी ड्योढ़ी पर रहना स्वीकार किया
तथा माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। इसी दिन रामचन्द्र जी ने रावण को जीतकर सीता और सेना सहित अयोध्या में प्रवेश किया था. अयोध्यावासियों का हृदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं।
एवं इसी दिन राजा वीर विक्रमादित्य ने सिंहासन पर बैठकर नवीन संवत् की घोषणा की थी।
अतः इन सब कारणों को लेकर इस दिन भारी उत्सव मनाया जाता है और श्री लक्ष्मी जी गणेश जी के सहित सब देवताओं का पूजन करते हुए सुख सम्पत्ति की भगवान से याचना की जाती है।