Get it on Google Play
Download on the App Store

पिताह का प्यार

पुराने ज़माने की बात है। एक गाँव में धर्मपाल नाम का एक व्यापारी रहता था। उसके जैसा धर्मात्मा और बात का सच्चा आदमी मिलना मुश्किल था। दीन-दुखियों की सहायता करने में उससे बढ़ा-चढ़ा और कोई न था सचमुच जैसा उसका नाम था वैसा ही उस का काम भी। इसलिए उस गाँव के ही नहीं, बल्कि आस-पास के गांवों के लोग भी उस की बड़ी इज्जत करते थे। बदमाश, चोर और डाकू भी उसका नाम सुनते ही आदर से सिर झुका लेते थे। पहले धर्मपाल के कोई संतान न थी। मुद्दत के बाद जब उस के एक लड़का हुआ तो उसने उसका नाम राजपाल रखा था।

वह उसका इकलौता बेटा था, इसलिए धर्मपाल ने उसे बड़े लाड-प्यार से पाला। यह राजपाल बडा शरारती निकला। उस का पिता जितना शरीफ था वह लडका उतना ही बदमाश साबित हुआ। ज्यों-ज्यों उसकी उम्र बढ़ती गई, त्यों-त्यों उसकी दुष्टता भी। हर साल वह कुछ न कुछ बुरी बातें सीखता जाता था। उस के पिता ने उस को बहुत कुछ समझाया-बुझाया। लेकिन उसने उनकी बातों पर कोई ध्यान न दिया।

उस के पिता अमीर आदमी थे, इसलिए उसे रुपये पैसे की कमी न थी। बस, यह रुपया पानी की तरह बहाने लगा। जहाँ रुपये-पैसे की कमी न हो यहाँ यार-दोस्तों की क्या कमी...! जिस तरह गुड की गंध पाते ही चीटियाँ जमा हो जाती हैं, उसी तरह पैसेवालों के पास यार-दोस्त भी अपना अड्डा जमा लेते हैं। इन यार लोगों ने राजपाल को दुनियाँ भर की बुरी आदते लगा रखी दीं। वह निधड़क शराब भी पीने लगा। रात-रात भर जुआ खेलता था। धीरे-धीरे उसकी तंदुरस्ती बिगड़ने लगी। उसका चेहरा पीला पड़ने लगा और वह दिन-दिन दुबला हो चला।

उस के पिता उस की यह हारत देखकर बडे परेशान हुए। उन्होंने उसे अब तक कई बार समझाया-बुझाया था। लेकिन कभी जोर से डाँटा-डपटा न था। वे सोचते थे लड़का है, आगे चलकर खुद सुधर जाएगा। पर जब उसके सुधरने का कोई लक्षण न दिखे पड़ा और जब उसकी तंदुरुस्ती तेजी से बिगडने लगी, तब वे चुप न रह सके। एक दिन उन्होंने उसे अपने पास बुलाया और खूब खरी-खोटी सुनाई। लेकिन राजपाल ने उनकी झिड़कियों की कोई परवाह न की, यह अपनी हरकतों से बाज न आया।

तब लाचार होकर उस के पिता ने रुपये-पैसे मिलने का रास्ता बंद कर दिया। उन्होंने ऐसा इंतजाम किया जिससे एक कानी-कौडी भी उस के हाथ न लगे। अब राजपाल के दिन बडी मुश्किल से कटने लगे। जब यारों ने देखा कि उसके पास रुपये-पैसे नहीं हैं तो वे उस से कतराने लगे। यहाँ तक कि कुछ ही दिनों में राजपाल को उस के सब दोस्तों ने छोड़ दिया। वह बिलकुल अकेला पड़ गया। जब बाजार से घूम फिर कर घर आता तो पिता की झिंडकियाँ सुननी पड़तीं।

आखिर उस का जीना दूभर हो गया। एक रात सब की आँख बचा कर यह घर से भाग निकला। सबेरे जब धर्मपाल उठा तो देखता क्या है कि लडका लापता है। वह बहुत दुखी हुआ। उस के हृदय को बहुत चोट पहुँची। फिर भी पिता का प्यार कैसे छूटता...? उसने अपने नौकरों को बुलाया और उन्हें बहुत सा रुपया देकर कहा,

“देखो, राजपाल घर से भाग गया है। तुम लोग उसका पता लगा कर चुपचाप उसके पीछे हो जाओ। तुम देखते रहो कि उसको किसी चीज की कमी या किसी तरह की तकलीफ न हो।”

नौकरों ने राजपाल का पता लगा लिया और वे उस के पीछे हो गए। राजपाल चलते

चलते एक गाँव में पहुँचा। उसे बड़े जोर की भूख लगी हुई थी। लेकिन पास एक कानी-कौड़ी भी न थी। जेबें बिलकुल खाली थी। अब वह क्या करे...? उसके सामने ही मिठाई की एक दूकान थी। मिठाइयों देख कर उसके मुँह में पानी भर आया। उस ने जा कर दूकानदार से पूछा,

“क्यों भाई...! क्या थोड़ी-सी मिठाई मुझे दोगे...?”

“हाँ, हाँ, दूँगा क्यों नहीं...? आओ, जितनी चाहिए खा लो...!” दूकानदार बोला.

“पर मेरे पास तो एक कानी-कौडी भी नहीं...!” राजपाल ने जवाब दिया।

“कुछ परवाह नहीं, पैसे तुम से माँगता कौन है...!!”

यह कह कर दुकानदार ने बड़े प्रेम से सभी मिठाइयाँ दी। राजपाल ने भर-पेट मिठाई खाई। फिर दुकानदार को धन्यवाद दे कर चलता बना। असल में वह दूकान धर्मपाल के नौकरों की थी। उन्होंने जब देखा कि राजपाल भूख से बेहाल है, तो उन्होंने सामने ही एक मिठाई की दूकान खोल दी। दोपहर होते-होते राजपाल एक नदी के किनारे पहुँचा। नदी ख्वालय भरी हुई थी। राजपाल यह नदी पार होना चाहता था। लेकिन पार हो तो कैसे? इतने में उस पार से एक नाव आ गई। नाव के मल्लाहों ने राजपाल को देख कर कहा,

“आओ, हम तुम्हें पार उतार दें…!”

“पर मेरे पास तो फूटी कौड़ी भी नहीं है” राजपाल ने कहा।

“कोई हर्ज नहीं। हम तुम से पैसा नहीं माँगते|” उन्होंने कहा और राजपाल को पार उतार दिया।

राजपाल ने उनको धन्यवाद दिया और अपनी राह ली। ये मल्लाह भी धर्मपाल के नौकर ही थे। जब उन्होंने देखा कि राजपाल को नदी पार करनी होगी तो उन्हों ने एक नाव किराए पर ले ली और राजपाल को पार उतार दिया।

शाम होते-होते राजपाल एक पहाड़ी के पास पहुँचा और धीरे धीरे उस पर चढ़ने लगा। थोड़ी देर के बाद चढ़ते चढ़ते यह बहुत थक गया और जब आगे न चढ़ा गया तो एक चट्टान पर बैठ गया। इतने में धर्मपाल के नौकर जो उसके पीछे पीछे आ रहे थे, एक डोली लेकर आए और बोले,

“बाबू जी…! अगर आप बहुत वक्त गए हों तो आइए, इस होली में बैठ जाइए। हम आप को ऊपर पहुँचा देंगे।”

राजपाल ने फिर बताया कि वह कुछ पैसे न दे सकेगा। लेकिन डोली वालों ने इस की कुछ परवाह न की और उसे डोली पर चढ़ा लिया। इसी तरह बहुत दिनों तक धर्मपाल के नौकर राजपाल के पीछे लगे रहे और हमेशा उस की मदद करते रहे। आखिर राजपाल को शक हुआ कि,

“ये लोग फौन हैं जो कदम कदम पर आकर मेरी मदद करते हैं..? जरूर इसमें कोई न कोई सोच कर उसने एक बार रहस्य है...!” यह अपनी मदद करने.

बालों से पूछा, “आप लोग कौन हैं और क्यों बार बार मेरी मदद करते हैं..!”

तब नौकरों ने कहा, “हम लोग आप के पिता जी के नौकर हैं। आप को परदेश में कोई तकलीफ न हो, इस समय से उन्होंने हमें आप के पीछे भेज दिया है।”

नौकरों की ये बातें सुनते ही राजपाल बहुत पछताया। उसे बड़ा अफसोस हुआ और उस ने अब अपनी चाल-चलन सुधारने का दृढ निश्चय कर लिया। यह नौकरों के साथ- साथ तुरंत घर लौटा। पर पहुँचते ही वह पिता के पैरों पड़ गया और माफी माँगी। उसने कहा,

“पिता जी...! मुझे माफ कीजिए...! आज तक मैं ने बहुत शरारतें कीं। अब आगे से मैं आप का सच्चा सपूत बनूँगा।”

अपने इकलौते बेटे को राह पर आते, देख धर्मपाल भी फूले न समाए। उन्होंने उसे उठा कर बड़े प्रेम से गले लगा लिया।

पिताह का प्यार

कहानीबाज
Chapters
पिताह का प्यार