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गठ बंधन

एक दिन ब्रह्माजी एक बूढ़े के वेश में गंगा किनारे बैठे हुए थे और वहाँ ज़मीन पर उगे हुए कुछ के अंकुर उखाड़ उखाड़ कर गाँठे डाल रहे थे। उधर से जाते एक ब्राह्मण युवक ने उस विचित्र बूढ़े को देख कर कहा,

“क्यों दादाजी..! आप यह क्या कर रहे हैं क्या आपको कोई दूसरा काम नहीं सूझा, जो यहाँ बैठे-बैठे तिनके जोड़ कर गाँठे लगा रहे हैं..??"

तब ब्रह्माजी ने सिर झुका कर उसी तरह अपना काम करते हुए जवाब दिया,

“बेटा..! ये मामूली गाँठें नहीं है। ब्रह्मा की गाँठे हैं। समझ लो कि काशी में एक लड़की है और रामेश्वर में एक लड़का; गया में एक लड़की है और द्वारका में एक लड़का; मैं काशी और गया की लड़कियों और रामेश्वर और द्वारका के लड़कों के बीच गठ-बन्धन करता हुँ और वे जीवन भर के लिए एक-दूसरे से बँध जाते हैं। दोनों का व्याह हुए बिना नहीं रह सकता। ये वही विधि की गाँठे है भई!"

यह सुन कर ब्राह्मण युवक को और भी अचरज हुआ और उसने उस बूढ़े को चिढ़ाने के लिए कहा,

“वाह! वाह ! तो तुम काशी की लड़की और रामेश्वर के लड़के में मनमानी गाँठ डाल देते हो और वे पति-पत्नी बन जाते हैं ! क्या सिर्फ तुम्हारे कहने से में इस बात पर यकीन कर लूँ..! अच्छा तो बताओ देखें, मेरा ब्याह किस लड़की से होने वाला है..??"

तब उस बुढ़े ने मुस्कुराते हुए कहा, "तो मैं झूठ थोड़े ही बोल रहा हूँ! इसी को होनहार कहते हैं बेटा! अगर मेरी ये गाँठे सुलझ गई तो संसार ही नष्ट हो जाएगा। तुम मेरी बातों पर विश्वास करो।”

यह कहते हुए उसने पहले से डाल कर रखी हुई एक गाँठ निकाली और उस युवक को दिखा कर कहा,

"हरिद्वार के निकट एक टोले में भगतराम नामक एक चमार रहता है। उसी की लड़की से तुम्हारी शादी होने वाली है। यही तुम्हारे भाग्य में लिखा है।"

यह सुन कर युवक को बड़ा गुस्सा आया। उसने उस बूढ़े को भला-बुरा कहते हुए यह

प्रतिज्ञा की,

“अच्छा, तो मैं भी देखूँगा कि तुम्हारी इन गाँठों में कितना बल है तुम उस की लड़की से मेरा ब्याह कराओगे क्या खूब तो सुन लो अगर मैंने ब्राह्मण की लड़की से शादी न की तो मेरा नाम श्रीराम शर्मा नहीं।"

यह कहते हुए वह ब्राह्मण युवक तम-तमाता हुआ वहाँ से चला गया। उसको इस तरह गुस्सा करते देख कर बढ़ा मन ही मन खूब हँसा। घर पहुँचने के बाद श्रीराम शर्मा के मन में चिंता पैदा हो गई। उसे बूढ़े की बातों पर विश्वास तो न था| लेकिन न जाने क्यों, उसका मन घबरा रहा था। आखिर बहुत देर तक सोचने-विचारने के बाद वह हरिद्वार की ओर रवाना हुआ।

वहाँ पहुंच कर पूछ-ताछ करने पर उसे मालूम हुआ कि अछूत-टोले में सचमुच ही भगतराम नाम का एक चमार है और उसके एक लड़की भी है। अब तो शर्मा और भी घबरा गया। उसे न सूझा कि क्या किया जाय?? आखिर उसने सोचा,

“किसी न किसी उपाय से इस लड़की को मरवा कर गंगा में बहा दिया जाय तो मेरी बला टल जाएगी और बूढ़े की बात झूठी हो जाएगी।"

यह सोच कर उस ने उस गाँव के चौकीदार को बुला कर उस से कानाफूसी की,

“अगर तुम भगतराम की लड़की को मार कर गंगा में बहा दो तो में तुम्हें मुँह माँगा ईनाम दूँगा।"

ईनाम का नाम सुनते ही चौकीदार का मन ललचा गया। लेकिन उसने जब सोचा कि इसके लिए एक बेगुनाह लड़की की हत्या करनी होगी, तो वह पशो पेश में पढ़ गया। उससे न ईनाम का लालच छोड़ते बनता था और न उसका मन हत्या करने के लिए ही राजी होता था।

आखिर बहुत सोच विचार कर उसने एक ऐसा उपाय निकाला, जिससे उसे इनाम मिल जाय पर हत्या का पाप न लगे। उसने एक काफ़ी बड़ी बाँस की टोकरी बनवाई। फिर एक रात को वह सब की आँख बचा कर बढ़ी होशियारी से भगतराम के घर से उसकी लड़की को उड़ा लाया। फिर उसने उस लड़की को टोकरी में लिटा दिया और ले जाकर शर्मा को दिखा दिया, जिससे उसको पूरा विश्वास हो जाय।

टोकरी में लेटी हुई लड़की को देख कर शर्मा की खुशी का ठिकाना न रहा। उसने समझा कि अब उसकी बला टल गई। उसने चौकीदार की होशियारी को बहुत सराहा और कहा,

“शाबास भई..! तुमने जो कुछ किया वह और किसी से नहीं हो सकता था। अब तुम इस टोकरी को ले जाओ और चुपके से गंगा जी में बहा दो। लौट कर अपना ईनाम ले लो। मैं यहीं तुम्हारी राह देखता रहूँगा।"

चौकीदार दौड़ता गया और उस टोकरी को गंगा की धार में रख आया। शर्मा ने उसे ईनाम दिया और वह खुशी-खुशी चला गया। शर्मा की छाती पर से एक पहाड़ सा टूट गया। यह निश्चिन्त होकर घर लौटा और सुख से रहने लगा। कुछ दिन के बाद शर्मा के माता-पिता उसके लिए एक योग्य लड़की की खोज करने लगे। एक जगह एक अच्छी लड़की मिली। लेकिन ठीक ब्याह के पहले ही उस लड़की की माँ बीमार पड़ गई। इसलिए व्याह रुक गया। इसके बाद और एक जगह व्याह की बात पकी हुई। पर कन्या के पिता जब वर को देखने आए तो अचानक किसी भयंकर रोग से चल बसे। इस तरह उस बार भी वाह रुक गया।

जब कोई शर्मा को अपनी लड़की देने को राजी न होता था। आखिर शर्मा के माँ-बाप के रुपये का लालच देकर एक ग़रीब ब्राह्मण की कन्या से ग्रह की बात पक्की की। लेकिन ठीक व्याह के दिन उस लड़की को साँप ने डस लिया और वह मर गई। अब चारों ओर यह बात फैल गई कि शर्मा में कोई कुलच्छन है, जिससे जो उसको कन्या देना चाहता है उस के सिर पर कोई न कोई संकट आ पड़ता है।

इसलिए अब कोई उस को अपनी लड़की देने को तैयार न होता था। शर्मा के माँ-बाप मन ही मन चिन्ता से घुलने लगे। उन्हें अब पूरा विश्वास हो गया कि शर्मा का व्याह देखने का सौभाग्य उनकी तकदीर में नहीं लिखा है। यह सब देख कर शर्मा बहुत उदास हो गया। एक दिन वह अपने माँ-बाप की आज्ञा लेकर तीर्थ यात्रा करने चल पड़ा। थोड़े दिनों में यह घूमते-घूमते काशी जा पहुँचा| एक दिन वह काशी-क्षेत्र में घूम रहा था।

अचानक जोर से पानी बरसने लगा। दम भर में शर्मा के सारे कपड़े भींग गए। वह जाड़े से भरथराता हुआ पास के एक घर के बरामदे में जाकर खड़ा हो गया। थोड़ी देर में घर का मालिक खा-पीकर बरामदे में आया तो एक कोने में दुबके हुए शर्मा पर उसकी नज़र पड़ी। उसे उस पर दया आ गई। उसने उसे अन्दर बुझ कर बड़े प्रेम से खिलाया-पिलाया। उस घर के मालिक के एक सयानी लड़की थी। यह उस लड़की के लिए घर ढूँढ रहा था। शर्मा को देखते ही वह सोचने लगा कि अगर इसके साथ लड़की का या हो जाय तो कितना अच्छा हो? लड़का देखने में सुन्दर था। पढ़ा लिखा और सज्जन मालूम होता था। इससे ज्यादा और चाहिए क्या...!

इसलिए बातचीत के सिलसिले में उसने शर्मा के माता-पिता, घर-चार, जमीन-जायदाद की हालत भी जान ली। अन्त में उसने अपने मन की बात उसे बता दी। शर्मा को इससे बढ़ कर और क्या चाहिए था| वह बेचारा तो निराश हो चला था फि अब इस जन्म में उसका व्याह होने वाला नहीं। इसलिए यह तुरन्त राजी हो गया। शुभ मुहूर्त में शर्मा का अन्नपूर्णा से (उस लड़की का नाम अन्नपूर्णा था।) ब्याह हो गया। व्याह हो जाने के बाद कुछ दिन तक शर्मा ससुराल में रहा। एक दिन उसे उस घर के पिछले कमरे में बास की एक टोकरी दीख पड़ी। उसे देखते ही शर्मा के पेट में खलबली मच गई। उसने तुरन्त जाकर अपने ससुर से पूछ.

“ससुर जी..! यह बाँस की टोकरी आपको कहाँ मिली?"

तब उसके ससुर ने कहा, “बेटा..! वह कोई मामूली टोकरी नहीं है। वह भगवान की देन है। बहुत दिनों तक हमारे कोई सन्तान न थी। तब हमने देवी अन्नपूर्णा की पूजा की| एक रात देवी ने तुम्हारी सास को सपने में दर्शन देकर कहा

“थोड़े ही दिनों में तुम को एक लड़की मिल जाएगी। तुम उस लड़की को मेरा नाम रख देना।" उसके कुछ ही दिनों बाद एक दिन में गंगा में नहा रहा था। इतने में एक बाँस की टोफरी बहती हुई में मेरी ओर आई। जब मैंने उसे खोल कर देखा तो उसमें डेढ़-दो साल की एक बच्ची मिली। मैंने समझ लिया कि यह देवी की ही कृपा है। तब हमने इसका नाम अन्नपूर्णा रख दिया और प्रेम से पाला-पोसा। वह टोकरी देवी की दया की निशानी है। इसी से हमने उसे हिफाजत से रख छोड़ा है।"

इतना सुनते ही शर्मा का मन बेचैन हो गया। उसे पका विश्वास हो गया कि उसकी स्त्री अन्नपूर्णा हरिद्वार के चमार की लड़की ही है। अब यह क्या करे? शर्मा ने ससुर से कुछ नहीं कहा। अब उसे अपनी स्त्री और उस पर से घृणा हो गई। वह उसी दिन आधी रात को ससुराल से भागा और अपने गाँव की ओर चला।

सबेरा होते होते यह एक धर्मशाले के नज़दीक पहुँचा। यहाँ आते ही उसे जोरों का बुखार चढ़ आया। वह उसी धर्मशाले में रुक गया और बुखार से तड़पता हुआ एक से कोने में पड़ा रहा।

उसकी स्त्री अन्नपूर्णा बहुत ही चतुर थी। वह अपने पति के मन की बात पहले ही ताड़ गई थी। उसको खूब मालूम हो गया कि पति के मन में कोई शंका हो गई है। इसलिए उसने ते कर लिया कि किसी न किसी उपाय से पति के मन का यह भ्रम दूर करना चाहिए। जिस समय शर्मा ससुराल से भागा, तो अन्नपूर्णा सोई नहीं थी। वह सिर्फ सोने का बहाना कर लेट रही थी। इसलिए उसने चुपके से पति का पीछा किया। जैसे ही वह धर्मशाला में रुका, वह भी वहीं रुक गई।

अब उसने देखा कि शर्मा बुखार से छटपटा रहा है, तो उसने सारी रात जग कर पति की सेवा की। उसकी सेवा के प्रभाव से शर्मा थोड़े ही दिनों में लगा हो गया। लेकिन बुखार उतर जाने के बाद भी वह अन्नपूर्णा को पहचान न सका। उसे बड़ा अचरज हुआ कि यह लड़की क्यों इस तरह दिन-रात मेरी सेवा कर रही है...? थोड़े ही दिनों में उसे उस लड़की से प्रेम हो गया। अब यहाँ तक नौबत आ गई कि वह उसे देखे बिना एक पल भी नहीं रह सकता था।

जब शर्मा पूरी तरह अच्छा हो गया तो एक दिन उसने उस लड़की को बुला कर कहा कि वह उसके साथ व्याह करना चाहता है तब उस लड़की ने पूछा,

“तो क्या अभी तक आपका ब्याह नहीं हुआ है?"

“ब्याह तो मेरा हो गया है; लेकिन मैंने अपनी पत्नी को छोड़ दिया है। इसलिए दूसरा उपाद कर लेना चाहता हूँ। बोलो- तुम मुझसे ब्याह करना पसन्द करती हो...!" शर्मा ने कहा।

मुझे कसम दिजीये की जब हम शादी कर लेंगे तो आप मुझे भी छोड़ दें तो..! मैं नहीं चाहती कि कोई मुझसे ब्याह करके छोड़ दे..!" अन्नपूर्णा ने कहा।

“खाता हूँ कि कभी ऐसा न होगा एक दूसरे से प्रेम करते हैं तो फिर ऐसा क्यों होगा???" शर्मा ने जवाब दिया।

दूसरे दिन उसी गाँव के मन्दिर में दोनों का फिर से व्याह हुआ। ब्याह हो जाने के बाद अन्नपूर्णा ने शर्मा का हाथ पकड़ कर हँसते हुए कहा,

“मेरा भी एक व्याह पहले ही हो चुका है।"

यह सुनते ही शर्मा के सिर पर मानों बिजली टूट पड़ी। उसने कोष से काँपते हुए गरज कर कहा,

“तो यह बात तुमने पहले ही क्यों न बता दी..! क्यों इस तरह मेरा धर्म भ्रष्ट कर दिया? तुम्हारे पहले पति का नाम क्या था..??”

“उनका नाम श्रीराम शर्मा था। वे देखने में ठीक आप ही जैसे थे। वे भी आपकी ही तरह अपनी स्त्री को छोड़ कर आधी रात के वक्त ससुराल से भाग निकले थे।"

अन्नपूर्णा ने हँसते हुए जवाब दिया। यह सुनते ही शर्मा ने अपनी पत्नी की तरफ गौर से देखा। तुरन्त यह उसे पहचान गया। पुरानी बातें याद आते ही उसका सिर शर्म से झुक गया। उसका सारा रोष कपुर हो गया और यह सोचने लगा कि ऐसी बीवी तो बढ़े भाग्य से मिलती है।

उस दिन से शर्मा के मन में फिर कभी उस लड़की को छोड़ देने का ख्याल नहीं हुआ। सेवा से प्रेम पैदा हुआ और प्रेम ने घृणा को जीत लिया। दोनों खूब खुश रहने लगे। कभी-कभी बूढ़े ब्रह्मा और उसकी ब्रह्म गाँठों की बात याद करके यह खूब हँसता और अन्नपूर्णा को भी यह कहानी सुनाता। फिर कहता,

“यह ब्रह्म-गाँठ की महिमा है|”

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