Get it on Google Play
Download on the App Store

शक्की राजा

एक शहर में एक राजा रहता था। वह बढ़ा शकी था। अपनी इस कमजोरी के कारण वह कभी-कभी बड़ी मुसीबत में पड़ जाता था। उसी शहर में बच्चूराम नाम का एक बड़ा धूर्त ज्योतिषी रहता था। यह अपने को बड़ा भारी ज्योतिषी कहता था और लोगों को ठगता फिरता था। लेकिन वास्तव में यह ज्योतिष विद्या बिलकुल नहीं जानता था। पर अपनी चतुराई से यह थोड़े ही दिन में मशहूर हो गया। उसको राजा ने भी अपना दरबारी ज्योतिषी बना लिया। एक बार उस राज में अकाल पड़ा। राजा ने ज्योतिषी को बुला कर पूछा,

“बताओ...! यह अकाल कैसे दूर हो सकता है?”

ज्योतिषी ने थोड़ी देर तक सोच-विचार कर जवाब दिया,

“आप अकाल की कुछ चिंता न कीजिए। उस से भी एक बड़ी भारी मुसीबत इस राज पर आने वाली है। मुझे ऐसा जान पड़ता है कि, कोई पड़ोसी राजा शीघ्र ही इस राज पर चढ़ाई करने वाला है।"

यों कहते-कहते वह बीच में ही रुक गया। राजा तो शक्की था ही। ज्योतिषी की बातें सुन कर वह और भी घबरा गया और पूछने लगा,

"तुम्हारे पोथी-पत्रे और क्या कहते हैं? बताओ तो !”

“पत्रा बताता है कि आगे बहुत बुरे दिन आने वाले हैं। आपकी जन्म-पत्री तो कहती है कि, आपको अपना राज-पाट खोकर जंगल में छिप कर रहना पड़ेगा। मैं भी इसी के बारे में सोच रहा हूँ।”

बच्चूराम ने बहुत भय दिखाते हुए कहा। यह सुन कर राजा को इतनी चिन्ता हुई कि वह बीमार पड़ गया। उसकी बीमारी की खबर सुन कर पड़ोस का एक राजा सचमुच ही चढ़ आया। राजा ने फिर बाबूराम की राय माँगी। बाबूराम ने कहा,

“जन्म-पत्री के अनुसार तो आपको जङ्गल में जाकर रहना दी है। इसलिए, चुपके से भाग जाइए तो बेहतर हो।"

उसकी ये बातें सुन कर बेवकूफ राजा बहुतसा धन साथ लेकर चुपके से जंगल की तरफ भाग गया। इस तरह पड़ोसी राजा ने बड़ी आसानी से उस राज पर कब्जा कर लिया। राजा तो अब जंगलों की ख़ाक छानने लगा और धुर्त ज्योतिषी शहर में मौज मार रहा था। नए राजा की खुशामद कर के वह दरबारी ज्योतिषी बना रहा। इतना ही नहीं, उसने नए राजा के ऐसे कान भरे कि वह पुराने राजा को जान से मरवा डालने की धुन में पड़ गया।

उसने ऐलान किया कि,

“जो उस भगोड़े राजा का सिर काट कर ले आएगा, उसे बड़ा भारी ईनाम दिया जाएगा।”

यह सुन कर ज्योतिषी का मन ललचा गया और यह सोचने लगा कि किसी न किसी तरह उस राजा का सिर काट कर इनाम पाना चाहिए। इसलिए वह दरबार से कुछ दिन की छुट्टी लेकर उस जंगल में पहुँचा, जहाँ उसका पुराना मालिक बड़े कष्ट से अपने दिन काट रहा था। राजा के पास जाकर उसने ऐसी सूरत बनाई जैसे सचमुच ही यह राजा की हालत पर तरस खा रहा हो। उसने झूठ-मूठ कह दिया,

“मुझे नए राजा ने शहर से निकाल दिया है।”

बेचारे राजा को उसकी बातें सुन कर बड़ा तरस आया। बच्चूराम वहीं जंगल में रहने लगा जिस से राजा को उस पर पूरी तरह विश्वास हो गया। यह हमेशा राजा के साथ रहता और कभी अलग नहीं होता था। एक दिन राजा अपने मन्त्री और बच्चूराम के साथ जंगल में घूमने निकला। कुछ दूर जाने पर राजा को बड़े जोर की प्यास लगी। वहीं नज़दीक में एक कुँआ था। बच्चूराम ने एक बाल्टी से पानी भर कर राजा को पीने के लिए दिया। राजा बाल्टी उठा कर पीने लगा तो उसे पानी में पेड़ की डाल पर बैठी हुई गिलहरी की परछाई दीख पड़ी। जब बाल्टी में पानी न रहा तो परछाई भी जाती रही। राजा तो शक्की मिजाज़ का था ही। अब उसे शक हो गया कि पानी के साथ साथ गिलहरी भी उसके पेट में चली गई है। वह बहुत घबराया। उसने ज्योतिषी से यह बात कही। ज्योतिषी ने तुरन्त हाँ में हाँ मिलाई ।

“हाँ महाराज..! मैंने भी अपनी आँखों से देखा था। गिलहरी ज़रूर आपके पेट में चली गई है। नहीं तो बढ़ जाएगी कहाँ? उस के पर तो नहीं हैं?”

यह सुन कर राजा और भी घबरा गया। उसे सचमुच ऐसा लगा जैसे पेट में बड़े ज़ोर से दर्द हो रहा है। लेकिन मन्त्री वहीं खड़ा खड़ा ज्योतिषी की सारी चालबाज़ी देख रहा था। थोड़ी ही देर में हकिम बैद आए और उन्होंने राजा को ठीक कराने के लिए एक दवा दी। उसी समय संयोग से पेड़ पर से एक गिलहरी नीचे गिरी। यह देखते ही राजा ने सोचा कि गिलहरी उसी के पेट से निकल गई है। बस, उसके पेट का सारा दर्द दूर हो गया और वह बिलकुल हो गया।

तब मन्त्री ने राजा से ज्योतिषी की सारी पोल खोल दी। उसने उसके मन में अच्छी तरह जमा दिया कि इसी की बदमाशी के कारण उसको अपने राज-पाट से हाथ धोना पड़ा है। राजा भी अपनी वेवकूफी पर बहुत पछताया। कुछ दिन बाद मन्त्री ने जंगली लोगों को जमा कर एक बड़ी फौज़ बनाई और राजा का खोया हुआ राज्य फिर से जीत लिया। उस ज्योतिषी को बन्दी खाने में सड़ना पड़ा। धीरे-धीरे राजा का स्वभाव भी बदल गया। फिर उसने कभी ज्योतिषियों की बातों पर विश्वास न किया।

शक्की राजा

कहानीबाज
Chapters
शक्की राजा