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भगत

एक गाँव में एक लड़का रहता था। देखने में बड़ा सुंदर, प्यारा प्यारा मुखड़ा, स्वभाव इतना अच्छा कि सारे गाँव के लोग उसे प्यार करते थे। उसके सभी हमजोली उस पर जान देते थे, उसके एक इशारे पर मर-मिटने को तैयार रहते थे। वह कभी झूठ न बोलता था, किसी के मन को दुख पहुँचाने वाली बातें न करता था। हमेशा दीन दुखियों की मदद करने की कोशिश करता। सिर्फ उसके परिवार वालों को ही नहीं, सारे गाँव को उस पर अभिमान था।

उस में एक बड़ी अद्भुत शक्ति आ गई थी। उसके मुंह से जो बात निकलती, वह जरूर हो कर ही रहती। इसी से सब लोग उसे ‘भगत’ कहा करते थे। एक दिन वह अपनी बहन के साथ एक अमराई में खेलने गया। गरमी के दिन थे। बाहर सारा संसार तवे की तरह तप रहा था। लेकिन आम के पेड़ के नीचे ठंडी छौंह फैली हुई थी।

भगत और उसकी बहन दोनों बहुत देर तक खेलते रहे। आखिर जब थक गए तो छाँह में पीठ के बल लेट गए और आर टालों की ओर देखने लो। आम की डालों में अध पके फल लटक रहे थे। उन्हें देख कर उसकी बहन के मुँह में पानी भर आया। ललचाई आँखों से आम की ओर देखते हुए उसने कहा,

“देखो...!! तो कैसे बढिया आम हैं..!! भैया..! मुझे आम तोड दो न...!!”

बहन की बात सुन कर लड़के ने एक ढेला उठाया और एक अच्छे पके फल की ओर निशाना लगा कर फेंका। लेकिन न जाने, कैसे निशाना चूक गया और ढेला आम को न लग कर उलटे उसकी बहन को आ लगा। नन्ही सी जीव थी। वह इस चोट से तिलमिला गई। आँखों के आगे अंधेरा छा गया। पैरों तले से जमीन निकल गई और वह बेहोश होकर नीचे गिर पड़ी। लड़के पर तो मानों यमपात हो गया।

हाय..! उसने यह क्या कर डाला..! लेकिन सोचने के लिए समय न था। वह जानता था कि थोड़ी ही दूर पर उसी बाग के एक कोने में एक तलैया है, जो सब दिन मीठे पानी से भरी रहती है। यस, वह दौड़ता हुआ जाकर चुल्लू में ठंडा पानी भर लाया और नीचे बैठकर अपनी पहन के मुँह पर पानी छिड़कने लगा। धीरे धीरे उसको थोड़ा होश आने लगा और वह आँखें खोलकर इधर-उधर देखने लगी।

लड़के ने सुख की साँस ली। खैरियत से ढेला किसी नाजुक जगह पर नहीं लगा था। वरना जान पर आ बीतती। अब वह लड़का इस सोच में पड़ गया कि, ढेला उस की बहन को कैसे लगा..! उसने तो पेड़ पर निशाना लगा कर फेंका था। ढेला वही, उसी का फेंका हुआ। बहुत देर तक सोच-विचार कर उसने तय किया कि, कोई ऐसी शक्ति है जो आँखों से ओझल रहती है और यह उसी की करतूत है। यह सोच कर उसे बड़ा गुस्सा आया। वह अपने-आप बडबडाया कि,

“वह शक्ति नाश हो जाए जिसने यह अन्याय किया है।”

इतने में उसकी बहन पूरी तरह होश में आ गई और उठ बैठी। यह देख वह बहुत खुश हुआ और बोला,

“देखो, इस बार यह आम जरूर तोड़ देता हूँ।”

यह कह कर उसने और एक ढेला उठाया और इस बार खूब निशाना लगाया। इस बार ढेला जाकर ठीक आम को लगा और आम से टूट कर अलग हो गया। लेकिन अजीब बात यह हुई कि, न फल ही नीचे गिरा और न देला ही। दोनों आसमान में उपर ही उहने लगे। लड़के ने समझा, थोडी दूर जाकर वे जरूर नीचे गिरेंगे। इसलिए यह उनके पीछे-पीछे दौड़ता गया। लेकिन वह फल और ढेला दोनों नीचे नहीं गिरे। वे उसी तरह आसमान में उडते ही गए। लडका उनके पीछे दौडते हुए बहुत दूर चला गया। आखिर वह फल और ढेला दोनों जादू के घोडे की तरह उठते-उडते आसमान में गायब हो गए। वह लडका लाचार हो कर घर लौट आया। उसकी बहन बहुत देर तक उसकी राह देख-देख कर घर चली गई थी।

जब लड़का लौट कर घर आया तो उस की माँ ने देखा कि वह बहुत ही थक गया है। उसका सारा बदन और कपडे-लते धूल से भरे हुए हैं। तब उसने झट नहाने के लिए पानी गरम कर दिया। लड़का नहाने गया और लोटा पानी में डुबा कर सर पर उंडेला। लेकिन आश्चर्य, बहुत हिलाने डुलाने पर भी लोटे से एक बूंद भी पानी नहीं गिरा।

आखिर उसे चुल्लू में ले-लेकर तेल की तरह देह में मल मल कर नहाना पड़ा। नहाने के बाद वह तौलिया लेने गया। तौलिया दीवार पर एक खूटी पर टैंगा हुआ था। लडके का हाथ वहाँ तक नहीं सकता था। इसलिए कह उछला। बस, उछलना था कि यह उड कर एक ही दम उस पंच मंजिले मकान की उपरी छत पर पहुँच गया। उसकी बहन वही थी। उसे यह देख कर बडा अचरज हुआ और वह जाकर लोगों को बुला लाई। लोग दौडे आए और यह देख कर बडे अचरज में पड गए। वे कहने लगे,
“अरे भगता, तू तो बड़ा भारी पहलवान बन गया। पंच मजिले मकानों पर भी| छलांग मार कर चढ़ पाता है। अब तो कुछ दिन में तू आसमान में भी उड़ने लोगा...!"

इतने में उस लड़के की, बहन ने उस से कहा “भैय्या...! भैय्या...! कल मेरी गेंद छत पर चली| गई थी। जरा खोज कर उसे नीचे फेंक दोन”

लड़के ने गेंद हुँदै निकाली और नीचे फेंकते फेंकते एक लात जमाई। अरे, यह क्या हुआ? वह संभल न सका और एक पल में नीचे आ गिरा। इतनी ऊंचाई पर से गिरने पर तो फिसी की भी हड्डी-पसली चूर-चूर हो जाती| लेकिन लडके के भाग अच्छे थे। उसे उतनी ज्यादा चोट नहीं लगी। तुरंत एक डाक्टर ने आकर जाँच की और बताया कि डरने की कोई बात नहीं है। तब सब के जी में जी आया।

डाक्टर ने इंजेक्शन देने के लिए पिचकारी निकाली तो देखता क्या है कि, नली में दवा चढ़ती ही नहीं। उस ने समझा-शायद पिचकारी खराब हो गई है। इसलिए दूसरी पिचकारी निकाली। लेकिन उस में भी दवा नहीं चढी। डाक्टर ने एक एक करके कई पिचकारियों आजमाई। लेकिन किसी से काम न चला।

अब तो डाक्टर भी घबरा गया। माथे से पसीना झरने लगा। आखिर इन पिचकारियों को हो क्या गया है। लोग यह सब देख कर क्या कहेंगे...?? कहेंगे इतना रुपया मिट्टी करके डाक्टरी पास कर आए हैं। लेकिन एक छोटा सा इंजेक्शन नहीं दे सकते। अब वह किसी को कैसे मुंह दिखाएगा...!! डायटर इसी उधेड बुन में पड़ा था कि, अचानक उसका मरीज़ मुस्कुराता उठ बैठा और पूछने लगा,

“माँ मुझे क्या हो गया था...! ये सब लोग हमारे घर में क्यों जमा हुए हैं।”

जो लोग देखते हुए खडे थे, वे सब दांतो तले उँगली दबाने लगे। कुछ लोगों ने समझा, लडके को हनुमानजी का इष्ट है। और कुछने समझा उस पर भूत सवार है। दूसरे दिन से उस लडके के यार दोस्त मी यही जादूगरी दिखाने लगे। एक लड़का पचीस तीस गज की चाई तक उड़ कर धीरे धीरे नीचे उतर आया। दूसरा और भी ऊँचा उडा। तीसरा उडते उडते आसमान में गायब हो गया। एक पानी में पैदल चलने लगा तो दूसरा दवा में ही उडने लगा।

एक लडका दीवार पर चींटी की तरह रेंगने लगा तो दूसरा चमगादड की तरह छत से लटक गया। एक सिर के बल हवा में चलने लगा तो दूसरा पीठ के बल आसमान में तैरने लगा। 

छोटे-छोटे लड़कों की बात छोड दो, बड़े बूढे भी यही तमाशा करने लगे। कुछ लोग तो गौरी शंकर की चोटी पर चढ़े जाना चाहते थे। लेकिन बरफीले तूफानों के डर से हिम्मत न पड़ी। पहले तो यह सब अनहोनी बातें देख कर लोगों को अपनी ही आंखों पर विश्वास नहीं होता था। लेकिन थोडे ही दिनों में ये बातें पुरानी पड गई और इनकी ओर कोई ध्यान देने वाला भी नहीं रहा। इस से और भी कई फायदे हुए।

लोग अब भारी से मारी चीजें भी आसानी से उठा लेते थे। बड़ी-से-बड़ी चट्टान भी इस तरह उठा लेते मानों वह कोई छोटा सा ढेला हो। शायद हनुमानजी ने सुमेरु पर्वत और कन्हैया ने गोवर्धन इसी तरह उठाया था। कुछ और भी छोटी-मोटी भभुत बातें देखने में आई। खूटियों के बगैर ही कोट टंगे रहते थे। चाय का प्याला मेज पर ही नहीं, हवा में भी रखा रहता। कोई भी चीज़ टूट-फूट जाती तो उसके टुकडे नीचे जमीन पर नहीं गिरते। जैसे के तैसे जुड़े रह जाते। इस से लोगों को भारी दिक्त भी हुई। जोर से प्यास लगने पर भी पानी गले के नीचे नहीं उतरता। नहाना भी कोई चीज़ है, यह तो लोग भूल ही गए।

रोज रोज हया में उम से बढ़ने लगी। बरसात के दिन आए और चले गए। एक बूंद मी पानी न परसा। रेलें और मोटरें चलते चलते लुढकी साने लगी। दिन दिन सांस लेना भी मुश्किल होने लगा। अब उस गांव के बडे बूढे सब मिल कर सोचने लगे कि, ऐसा क्यों हो रहा है...!! वे गांव में हर एक आदमी से पूछ-ताछ करने लगे। कुछ लोगों ने जो भगत का प्रभाव जानते थे, उसे बुला कर पूछा, “क्यों भगत..! क्या तुम जानते हो कि यह सब क्यों हो रहा है!”

तब भगत ने सारा हाल उन्हें बता दिया। उस के मुँह से अचानक जो बात निकल गई वह भी उन्हें सुना दी। सारा किस्सा सुनने के बाद बडे-बूढों ने उस से प्रार्थना की,

“तुम अपने बोल लौटा लो। नहीं तो दुनियाँ चौपट हो जाएगी।” तब भगत ने अपने बोल लौटा लिए। अब बढे बूढे समझ गए कि, भगत के बोल के प्रभाव से जो शक्ति नष्ट हो गई थी| वह श्री पृथ्वी की आकर्षण-शक्ति जब पृथ्वी ने चीजों को अपनी ओर खीचना छोड दिया तो थोडा सा धका लाते ही हर चीज़ मीलों दूर चली जाने लगी। 

वो भी धरती पर ही नहीं, आसमान में भी। जय हवा का दबाव जाता रहा तो सांस लेना भी मुश्किल हो गया। बच्चो..! कहीं तुम भी भगत की तरह छत पर चढ़ कर नीचे न कूद पड़ना। बस, हाथ-पैर टूट जाएँगे।

भगत के बोल

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