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राजा की वायोलिन

एक राजा था। उसको गाने बजाने का शौक था। उसके दरबार में बड़े-बड़े गवैये और उस्ताद रहते थे। राजा उनको बड़ी-बड़ी तनख्वाह देता था और रोज एक दो घण्टे उन से संगीत सीखा करता था। लेफिन इस तरह बहुत कोशिश करने पर भी राजा को गाना बजाना न आया। राजा ने नए-नए उस्ताद लाए| तो भी कुछ फायदा न हुआ। तब राजा ने निराश हो कर गाने की कोशिश छोड दी और सिर्फ बजाना सीखने लगा। तरह-तरह के बाजे मैंगाए और साथ-साथ बजानेवाले भी इस तरह फिर बहुत-सा रुपया लेते थे, इसका भी कुछ फल न हुआ फिर राजा बहुत उदास हो गया। राज के इतने रुपए खराब हुआ लेकिन निकला। अब राजा उसने सोचा,

“मैंने इतने पैसे मिट्टी कर दिए। इतनी तकलीफ उठाई। राज-काज छोड़ कर गाने-बजाने के पीछे पड़ा रहा। लेकिन मैं सीख क्या पाया कुछ भी तो नहीं। लोग जब यह सब जान जाएँगे तो क्या कहेंगे...?? क्या वे मेरी हंसी नहीं उड़ाएंगे...???"

इस फिक्र में राजा का खाना-पीना भी मूल गया। उसे रात-दिन सोते-जागते एक ही सोच लगा रहा कि, वह गाना बजाना क्यों कर सीख सकेगा| एक रात को जब राजा यही सब सोचते सोचते सो गया तो उसे सपने में एक देवी दीख पड़ी और उसने कहा,

“राजा में जानती हूँ कि, तुम्हें कौन-सी चिन्ता सता रही है। तुम्हारा हाल देख कर मेरा मन पिघल गया है। इसलिए में तुम्हारी मदद करने आई हूँ। देखो, मैं तुम्हें एक वायोलिन देती हूँ। इसको बनाने में तुम्हें कुछ भी तकलीफ न होगी। चारों पर कमान भर दो और आप हि आप यह वायोलिन बनने लगेगी और इसमें से ऐसी मनहर ताने निकलेगी कि, सुनने वालों पर मन्त्र-सा चल जाएगा। इस वायोलिन में और एक विशेषता भी है। जिसके सामने यह बजेगी यह आदमी बिना कुछ कहे गाने नाचने लगेगा और तब तक नचता रहेगा जब तक वायोलिन का बजाना बन्द न हो जाए। हो राजन यह वायोलिन, ठीक से रखो। मै जाती हूँ।”

यह कह कर उस देवी ने वह वायोलिन राजा के सिरहाने रख दी और अदृश्य हो गई।

राजा चौक कर उठा तो देखता क्या है कि, सिरहाने वायोलिन रखी है। अचरज के साथ उसने उसे उठाया और बजाने लगा। उससे ऐसे मधुर गान निकलने लगे कि, राजा को अपने कानों पर आप ही विश्वास न हुआ। धीरे-धीरे राजा को सपने की सारी बातें याद आ गई। देवी का आना, बोलना और वायोलिन राजा के सिराहने रख देना सब कुछ चित्र की तरह उसकी आँखों के आगे नाचते हुए राजा को अपने सपने पर पूरा विश्वास हो गया। उसने पहरेदार को पुकारा पहरेदार आकर उसके सामने हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया। राजा बोल उठा कर बजाने लगा। बस अब क्या था? पहरेदार राजा के सामने नाचने लग गया। राजा को बड़ी खुशी हुई। यह और भी बजाने लगा। नौकर और भी तेजी के साथ नाचने लगा। आखिर नाचते-नाचते वह थक गया और उसके हाथ के साथ पैर दुखने लगे। वह रुकना चाहता था, लेकिन रुक न सकता था।

बेचारा राजा से गिड़गिड़ा कर कहने लगा, “महाराज...! मालूम होता है किसी ने मुझ पर जादू कर दिया है। मेरे पैर दर्द कर रहे हैं। अगर थोडी देर और नाचता रहा तो मै बेहोश हो कर गिर जाऊँगा। कोई उपाय करके इस बला से मेरा पिंड छुड़ा दीजिए।”

राजा को उस बेचारे पर दया आ गई और उसने वायोलिन बजाना बन्द कर दिया। नौकर अखडता खड़ा हो गया। उसका सारा बदन पसीने से तर-बतर हो रहा था। राजा को विश्वास हो गया कि, अब कोई उसकी हँसी न उड़ा सकेगा। उसकी सारी उदासी दूर हो गई।

दूसरे दिन सबेरे दरबार में जाते वक्त अपने साथ वह जादू की वायोलिन भी ले गया। थोड़ी देर के बाद राजा ने दरबारियों को अपनी वायोलिन दिखाई और धीरे-धीरे उसे बजाने लगा। जैसे ही वायोलिन बजी, मन्त्री, सेनापति और सभी दरबारी उठ खडे हुए और नाचने लग गए। राजा की खुशी का ठिकाना न रहा। वह और भी जोर-जोर से बजाने लगा। दरबारी और भी तेजी से नाचने लगे। कुछ ही देर में सब लोग रोने लगे और गिड़गिड़ा कर कहने लगे,

“महाराज...! और न बजाइए, नहीं तो हमारी जान निकल जाएगी...!"

तब कही जाकर राजा ने वायोलिन बजाना बंद किया और लोगों की जान में जान आई। अब राजा के लिए यह एक दिनचर्या हो गया। वह रोज दरबार में वायोलिन लेके जाता और घण्टे घंटे दरबारियों को नचाकर अपना मन बहाला कर उन लोगों का थक जाना यह अब रोज का हो गया था...! हाय...! नाच करना चीखना देख कर हँसते-हँसते और गिड़गिड़ाना देखकर राजा का हस हस कर पेट फट जाता और वह कहता, “अच्छा तमाशा है भाई...!!!!”

एक दिन राजा दरबार में बैठा हुआ था। और यह वायोलिन उसकी बगल में रखी हुई थी। थोड़ी देर बाद राजा ने बजाने के लिए वायोलिन ढूँडी तो अचंबा हुआ कि, दरबार मे आज देखा। लेकिन वायोलिन कहीं नहीं मिली। राजा गुस्सा हो गया और कहने लगा, “अगर वायोलिन नहीं मिली तो सभी को फंसी पर चढ़ा दूंगा।”

इतने में राजा की नजर सामने एक पेड के ऊपर पड़ी। उसने देखा कि, वायोलिन एक बन्दर के हाथ में है और वह बन्दर वायोलिन लेके बैठे हुआ है। राजा बड़ा घबराया, लेकिन करता क्या? इतने में बन्दर वायोलिन बजाने लगा। बजाते ही राजा नाचने लगा। तो यह था कि बाकी सभी दरबारी सुख से खड़े थे। बन्दर अब बडी तेजी से बजाने लगा। राजा दर्द के मारे चिल्लाता-चिल्लाता रह था। आखिर यह थकावट के मारे बेहोश होकर गिर पड़ा। सभी दरबारी राजा के चारों ओर जमा हो गए और उसे होश में लाने की कोशिश करने लगे।

थोड़ी देर के बाद राजा की आँखें खुली और उसने देखा कि बन्दर के बदले उसके सामने वही सपने वाली देवी खडी है और उसके हाथ में वही वायोलिन है। राजा का मुख सफेद पड़ गया।

“मुँह क्या देख रहे हो। महाराज...! मैं वही देवी हूँ। तुम्हें अच्छी सीख मिल गई।” देवी ने कहा।

“मैंने क्या कसूर किया है?” राजा ने पूछा।

“मैंने तुम पर तरस खा कर यह वायोलिन दी थी, लेकिन तुमने उसका दूरउपयोग किया इन बेचारों को सताने में। अब तुम समझ गए न कि, इन बेचारों ने कितनी तकलीफ उठाई होगी” देवी ने पूछा|

“सचमुच मैंने बड़ा भारी कसूर किया है। इस बार मुझे माफ कर दो, देवी...! फिर कभी ऐसा न करूँगा। वह वायोलिन मुझे छौटा दो।” राजा ने गिडगिडा कर कहा।

देवी को राजा पर दया आ गई। उसने वायोलिन उस को छोड दी और अन्तर्धान हो गई। राजा ने फिर कभी वायोलिन का दुरुपयोग नहीं किया।

राजा की वायोलिन

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