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त्यागशील लडकी

पुराने जमाने की बात है। चीन में ‘यङ्ग लो’ नामक राजा राज्य करता था। उस समय पेकिंग शहर चीन की राजधानी था। उस शहर में बड़े-बड़े आलीशान मकान थे। कुछ दिन के बाद राजा ‘यङ्ग लो’ के मन में आया कि, एक ऐसा घण्टा बनवाना चाहिए जिसकी आवाज़ सारे शहर में सुनाई दे। ऐसा घण्टा ऊँची मीनार से लटका दिया जाएगा तो शहर की रौनक और भी बढ़ जाएगी। इस काम में चाहे जितना भी खर्च हो कोई परवाह नहीं। घण्टा तो बनवाना ही चाहिए। यह सोच कर उसने अपने दरबारियों को बुलवाया और हुक्म दिया,

“मैं एक बड़ी ऊँची मीनार बनवा कर उस पर एक बड़ा भारी घण्टा लटका देना चाहता हुँ। यह घण्टा संसार में सबसे बड़ा और शानदार हो। जब यह घण्टा बजे तो सारे शहर में, दूर-दूर तक इसकी 'टन-टन' आवाज़ साफ़ सुनाई दे। इसके लिए अगर जरूरत पड़े तो मैं अपना सारा खजाना लुटा देने को तैयार हूँ। जाओ, तुम लोग देश के कोने-कोने में ढूँढ़ कर एक ऐसा कारीगर ले आओ, जो यह शानदार घण्टा बना सके। मैं उस कारीगर को मुँह-माँगा इनाम दूँगा”

बादशाद के हुक्म के मुताबिक सारे मुल्क में डिंढौरा पिटवा दिया गया। दरबारी लोग चारों ओर कारीगरों की खोज करने लगे। बहुत दिन के बाद आखिर उन्हें ऐसा कारीगर मिला जिसने इसका बीड़ा उठाया। उसका नाम था 'कुमान-यू' यह एक मशहूर लोहार था। चीन देश के बहुत से लोग उसे जानते थे। कुवान-यू ने आकर बादशाह से मुलाकात की। मामला तय हो गया। बादशाह भी ऐसा होशियार कारीगर पाकर बड़ा खुश हुआ।

बादशाह ने कुयान-यू के हाथ में काफी रुपया रख दिया। उसके साथ काम करने के लिए बहुत से कारीगर नियुक्त हुए। कुवान-यू ने रात-रात भर जग कर अनेकों पोथी-पत्र उलटे और अनेक धातुएँ मिला कर ढालने की एक तरकीब सोच निकाली। घण्टे के लिए एक बड़ा भारी सांचा तैयार किया। जब गली हुई धातु सांचे में ढालने का दिन आया तो बादशाह अपने दरबारियों के साथ तमाशा देखने आया।

कुवान-यू की बदनसीबी तो देखो कि गली हुई धातु सांचे में ढालते ही सांचा कूटकर टुकड़े-टुकड़े हो गया। जमीन पर गली हुई धातु के पनाले वह निकले। वर्षों की मेहनत और अपार धन इस तरह बेकार होते देख कुवान-यू के दुख का ठिकाना न रहा। लेकिन बादशाह ने उसको दिलासा देते हुए कहा,

“कुवान-यू ! तुम कुछ भी सोच न करो। जो होना था सो हो गया। बड़ों से भी कभी-न-कभी भूल-चूक दो ही जाती है। तुम एक बार हार गए तो क्या हुआ फिर से कोशिश करो, इस बार जरूर सफल हो जाओगे। रुपए पैसे की कुछ चिन्ता न करो।" यह कह कर बादशाह फिर से सब इन्तजाम करके अपने महल को लौट गया।

आखिर कुवान-यू ने किसी तरह फिर हिम्मत बाँधी और बरसों पोथी-पत्रे उलटने के बाद फिर एक बार कोशिश की। इस बार धातु को गला कर सांचे में ढालते वक्त बादशाह, उनके दरबारी, और भी बहुत से लोग तमाशा देखने आए। इस बार सांचा नहीं फूटा। लेकिन जो घण्टा तैयार हुआ यह चलनी की तरह छेदों से भरा हुआ था। इस तरह दूसरी बार भी बरसों की मेहनत और बहुत सा रुपया मिट्टी में मिलते देख कर बादशाह को बढ़ा गुस्सा आया और उसने कुवान से कहा,

“देखो, मैं तुम्हें और एक मौका देता हूँ। अगर तुम इस बार भी सफल न हुए तो मैं तुम्हारी बोटी-बोटी उड़वा दूँगा...! समझे..??”

कुवान-यू ने घर जाकर सारे पोथी-पत्रे ने फिर से उलटे। लेकिन उसे कोई नई तरक़ीब न सूझी। घण्टा तो उसे बनाना ही था। लेकिन इस बार भी फिर यही हुआ तो वह और आगे न सोच सका। उसने अपनी प्यारी बेटी 'कोवाय' को बुला कर सारा हाल कह सुनाया और यह भी बता दिया कि अब सिर्फ मौत की घड़ियाँ गिनते रहना ही बाकी है।

उसकी बेटी कोवाय का रूप जितना सुन्दर था गुण उससे कहीं बढ़े-चढ़े थे। वह अपने पिता से बहुत प्यार करती थी। पिता पर यह संकट आया देख उसे बड़ा दुख हुआ। आखिर वह सोच-विचार कर घर से बाहर निकली और वहीं नज़दीक की पहाड़ियों पर रहने वाले एक साधू के पास गई। यहाँ उसने साधू के पैरों पढ़ कर बड़ी दीनता के साथ सारा हाल कह सुनाया। साधू ने उस पर तरस खा कर कहा

“बेटी…! तुम्हारे पिता ने घंटा तैयार करने में कोई गलती नहीं की। पोथी पत्रे उलट-पलट कर उन्होंने जो हिसाब लगाया उसमें भी कोई भूल-चूक न थी। घण्टे के फूटने का कारण कुछ और ही था। हरेक बड़ा कार्य करते समय कुछ-न-कुछ बलि देनी चाहिए। इस घण्टे की गली हुई धातु में जब तक एक शीलवती कन्या का लहू नहीं लिया जाएगा तब तक घण्टा बनाने का यह प्रयत्न सफल नहीं होगा।”

साधू से इतना ज्ञान कर कोवाय बड़े उत्साह के साथ घर लौट आई और अपने पिता के पास जाकर बोली,

“पिताजी..! आप कुछ चिन्ता न कीजिए। इस बार आप अपनी कोशिश में जरूर कामयाब हो जाएँगे। इस बार आपका घण्टा ठीक-ठीक उतरेगा। राजा भी खुश होकर आपको बहुत से ईनाम देंगे। यश सारे चीन देश में फैल जाएगा।”

बेचारे कुवान-यू को क्या मालूम कि उसकी बेटी इतने विश्वास के साथ क्यों बोल रही है उसे क्या खबर थी कि उसकी बेटी के मन में क्या है? फिर भी उसे उस पर बड़ा विश्वास था और वह जानता था कि, वह कभी झूठ नहीं बोलती। इसलिए फिर उसने घण्टा ढालने की तैयारी कर दी। जब यह दिन आया तो बहुत लोग तमाशा देखने आए। जब गली हुई धातु सांचे में ढाली जा रही थी तो लोगों के बीच में कोई सरवली सी मच गई। उस समय कुवान-यू सांचे के नज़दीक खड़ा था। उसने देखा कि उसकी बेटी भीड़ को चीरती हुई उसकी ओर आ रही है। वह कहना ही चाहता था कि,

“बेटी..! यहाँ लौ लगती है। तुम यहाँ मत आओ!”

कि इतने में यह दौड़ कर उस विशालकाय सांचे में कूद पड़ी। कुवान-यू ने हाथ फैला कर उसे पकड़ना चाहा, लेकिन सिर्फ उसके बाएँ पैर की जूती ही उसके हाथ आई। देखते ही देखते कोवाय उस खौलती हुई धातु में गल गई। किसी को इसका रहस्य नहीं मालूम हुआ। यो घण्टा तैयार हो गया। लेकिन प्यारी बेटी को खोकर कुवान-यू की दुनियाँ अँधेरी हो गई। आज भी जब उस महानगर में यह घण्टा बजता है तो उसकी टन टन की आवाज़ ‘पे’ ‘पे’ कह कर पुकारती है। चीनी भाषा में 'पे' शब्द का मानी होता है जूता। इसीलिए जब-जब वह घण्टा बनता है तो लोग आपस में कहते हैं,

“देखो, यह कुवान-यू की लड़की अपना जूता माँग कोवाय ने अपनी जान गँवा कर भी पिता की पत रख ली।”

इसी से उसका नाम अमर हो गया।

त्यागशील लडकी

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