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तीन नारियल

एक गाँव में एक विद्वान रहता था। सुन्दरता और विद्वत्ता में कोई उसकी बराबरी न कर सकता था। सब लोग उसकी बढ़ाई करते थे। लेकिन बड़ों का कहना है कि, लक्ष्मी और सरस्वती में नहीं बनती। यह विद्वान भी बड़ा ग़रीब था। वह जो कुछ कमाता था पेट भरने के लिए भी काफी नहीं होता था। उस विद्वान की स्त्री काली-कलटी थी। उसे इसका भी बड़ा सोच रहता था। यह मन ही मन कहता,

“भगवान...! मै थोड़ा बहुत पढ़ा-लिखा हूँ। लोग मेरी बढ़ाई भी करते हैं। लेकिन इन सबसे क्या फायदा जब कि मेरी स्त्री ही काली-कल्टी है..? क्या ही अच्छा होता यदि मेरी स्त्री भी दूसरी स्त्रीयों की तरह गोरी गोरी होती...!”

एक दिन एक साधु उस विद्वान के घर आया। पति-पत्नी दोनों ने साधू के पाँव पखारे, बड़े प्रेम से उसे खिलाया पिलाया। खा-पीकर साधू जब बाहर चबूतरे पर बैठा, उस विद्वान ने आकर उसके पाँव छूकर बड़ी नम्रता के साथ प्रणाम किया। विद्वान की खातिरदारी से खुश होकर उस साधू ने उसे तीन नारियल दिए और कहा,

“बेटा...! देखो, ये तीन नारियल हैं। इनमें से एक-एक नारियल को फोड़ कर तुम अपने मन में एक-एक चीज़ की कामना करो। ये मामूली नारियल नहीं हैं। इनसे तुम्हारी तीन कामनाएँ पूरी हो जाएँगी।” 

यह कह कर यह साधू चला गया। विद्वान ने अन्दर जाकर नारियल अपनी स्त्री को दिखाए और कहा,

“ये नारियल साधू बाबा के प्रसाद है। इनसे हमारी तीन इच्छाएँ पूरी होंगी। बोलो, सबसे पहले मैं क्या कामना करूँ? मेरी तो पहली चाह है कि, तुम गोरी और खूबसूरत बन जाओ।”

लेकिन उसकी स्त्री ने कहा, “मेरे सुन्दर बन जाने से ही क्या होता है? यहाँ तो यही फिकर लगी रहती है कि चूल्हे पर हाँडी कैसे बढ़े। इसलिए पहले अमीर होने की कामना कीजिए। पीछे आपका जो जी चाहे पसन्द कर लीजिएगा।”

लेकिन उस विद्वान को स्त्री की बातें पसन्द नहीं पड़ीं। उसने कहा, “क्या तुम्हारी अक्ल मारी गई है। क्या तुम खूबसूरत बनना नहीं चाहती हमारे पास तीन नारियल हैं। एक को फोड़ने से तुम्हारा रूप बदल जाएगा। फिर दो बच जाएँगे। उनसे हम जो चाहें माँग सकते हैं।”

यह कह कर उसने एक नारियल फोड़ा और मन ही मन स्त्री की सुन्दरता चाही। आश्चर्य..!!! नारियल का फूटना था कि, विद्वान की स्त्री का रूप बिल्कुल बदल गया। उसका सारा बदन कुन्दन की तरह दमकने लगा। विद्वान की खुशी का ठिकाना न रहा। वह अपनी स्त्री का रूप देख कर फूला न समाया। धीरे-धीरे यह बात सारे गाँव में फैल गई। लोग आकर देखते और दाँतों तले उँगली दबाते,

“यह कैसा गजब है! कल तक यह कैसी काली-कलटी थी और आज अचानक इतनी सुन्दर!”

गाँव के लोग-लुगाई विद्वान की स्त्री को देख कर इसी तरह की बातें करते थे। ये बातें सुन कर विद्वान और भी खुश होता और अपने मन में कहता,

“मेरी स्त्री कैसी सुन्दर हो गई। रानियों इसके आगे पानी भरेंगी। ओह, में कितना भाग्यशाली है। साधू बाबा की कैसी कृपा हुई मुझ पर..!"

इसी तरह फूला-फूला फिरने लगा। एक दिन उस विद्वान को किसी काम से कहीं बाहर गाँव जाना पड़ा। उसने अपनी पत्नी को बुला कर कहा,

“मैं जरा दूसरे गाँव जा रहा हूँ। दो तीन दिन में लौट आऊँगा। तुम जरा होशियार रहना। घर छोड़ कर इधर-उधर न जाना। इतना कह कर यह चला गया। दूसरे दिन यहाँ का राजा घोड़े पर सवार होकर घूमने निकला। घूमते-फिरते वह विद्वान के घर के पास पहुँचा। उसी समय विद्वान की स्त्री ने किसी काम से घर का दरवाजा खोला। उस राजा का चाल-चलन अच्छा न था। उसका नाम सुनते ही वहाँ की औरतें थर-थर काँपने लगती थीं। जब यह घूमने निकलता था तो सभी घरों की खिड़कियों और दरवाजे बन्द हो जाते थे। बेचारी विद्वान की स्त्री को उसके आने की खबर न थी। राजा ने उसको देखते ही घोड़े को रोक लिया। उसका रूप देखते ही उसकी नीयत डोल गई थी। घोड़े से उतर कर वह लपका और जाकर विद्वान की स्त्री का हाथ पकड़ लिया। बेचारी डर के मारे थर-थर काँपने लगी।

“चलो, मेरे साथ रनवास में आराम से रहना। मैं तुम से व्याह करूँगा और तुम्हें रानी बनाऊँगा" राजा ने कहा।

विद्वान की स्त्री ने कोई जवाब न दिया। वह हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी। लेकिन राजा उसे जबरदस्ती घोड़े पर चढ़ा कर अपने गढ़ में ले गया। वहाँ उसने एक सुन्दर महल में उसे कैद कर रखा। फिर सिपाहियों को बुला कर कहा,

“देखो, तुम लोग इस महल के आगे पहरा देते रहना। खबरदार...! किसी को महल में घुसने न देना।” विद्वान की स्त्री दो दिन तक खाना-पीना छोड़ कर रोती कल्पती बैठी रही। अब वह पछताने लगी,

“कहाँ से वह साधु आया और नारियल दे गया? उसके पति ने उसे क्यों सुन्दर बनाने की कामना की न वह सुन्दरी होती जान इस आफत में और न पड़ती।” 

विद्वान दो दिन बाद जब घर लौटा तो उसे सब हाल मालूम हुआ। राजा का यह अत्याचार देख कर उसकी देह में आग लग गई। उसने तुरन्त दूसरा नारियल फोड़ा और मन ही मन कहा,

“हे भगवान..! मेरी स्त्री भालू बन जाय।” वह खूब जानता था कि, उस दुष्ट राजा को अपनी करनी का फल मिल जाएगा।

राजा के महल में बैठी विद्वान की स्त्री एका एक भयंकर भालू बन गई। भूखा, और सूखा-प्यासा..! अब क्या था? भालू ने राज-महल के शीशे, अल्मारियाँ, खिड़फियाँ, किवाड़ और भी बहुत-सी किंमती चीजें तोड़-फोड़ डालीं। जब तोड़ने-फोड़ने के लिए कोई सामान न बचा तो बैठ कर गुर्राने लगा। उस रात को राजा खूब बन-ठनफर विद्वान की स्त्री को देखने आया। वह चुपके से चोर की तरह महल के अन्दर घुसा। उसका अन्दर पाँव रखा था कि भालू गुर्रा कर उस पर टूट पड़ा और अपने नखो से उसको चीरने-फाड़ने लगा।

राजा जोर से चीखने-चिल्लाने लगा। लेकिन उसकी पुकार सुनने वाला यहाँ था कौन पहरेदार सब पहले ही भाग गए थे। भालू ने राजा की जान ले ली। इस तरह उसे अपने पापों का फल मिल गया। कुछ देर बाद पहरेदार लोग बहुत से सिपाहियों को बुला लाए। उन सब ने अंदर जाकर देखा तो राजा मरा पड़ा था। इतने में भालु उन पर भी टूट पड़ा। बस, सब लोग अपनी जान लेकर सिर पर पाँव रख कर भगे। भालू महल में से गुर्राता हुआ निकला और विद्वान के घर चला। भालू को देख कर विद्वान को बड़ा दुख हुआ। उसने सोचा,

“हाय ! मेरी स्त्री को कितने कष्ट उठाने पड़े आखिर उसकी सुन्दरता ही उसकी दुर्दशा का कारण बनी। यह काली-कलटी ही बनी रहती तो कितना अच्छा होता तब तो हमे ये सब कष्ट नहीं उठाने पड़ते।”

यह सोच कर उसने तीसरा नारियल निकाला और फोड़ते हुए मन ही मन कहा,

“मेरी स्त्री का रूप फिर पहले-सा हो जाय।”

तुरन्त उसकी पत्नी भालू का रूप छोड़ कर फिर पहले जैसी हो गई। अब विद्वान को बड़ी खुशी हुई। उसने कहा,

“ये नारियल ही सारी खुराफात की जड़ थे। अगर हमें अपने भाग्य पर संताप होता तो इतने कष्ट झेलने नहीं पड़ते।”

यह कह कर वह अपनी स्त्री को समझाने-बुझाने लगा। उस दिन से वे बड़े सुख से रहने लगे।

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