दिन अँधेरा-मेघ झरते - रबीन्द्रनाथ टैगोर
यहाँ रवीन्द्रनाथ ठाकुर की रचना "मेघदूत' के आठवें पद का हिंदी भावानुवाद (अनुवादक केदारनाथ अग्रवाल) दे रहे हैं। देखने में आया है कि कुछ लोगो ने इसे केदारनाथ अग्रवाल की रचना के रूप में प्रकाशित किया है लेकिन केदारनाथ अग्रवाल जी ने स्वयं अपनी पुस्तक 'देश-देश की कविताएँ' के पृष्ठ 215 पर नीचे इस विषय में टिप्पणी दी है।
दिन अँधेरा-मेघ झरते,
खल पवन के, आक्रमण से
वन दुखी बाहें उठाए
रोर हाहाकार करता
चपल चपला जलद पट को
छिन्न करके झाँकती है
हास बंकिम हृदयभेदी
शून्य से भू पर बरसता।