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अपना अहवाल-ए-दिल-ए-ज़ार कहूँ
ये न थी हमारी क़िस्मत के विसाले यार
[1]
होता
अगर और जीते रहते यही इन्तज़ार होता
शब्दार्थ:
↑
प्रिय से मिलन
मिर्ज़ा ग़ालिब की रचनाएँ
ग़ालिब
Chapters
आमों की तारीफ़ में
अपना अहवाल-ए-दिल-ए-ज़ार कहूँ
कलकत्ते का जो ज़िक्र किया तूने हमनशीं
ख़ुश हो ऐ बख़्त कि है आज तेरे सर सेहरा
फिर हुआ वक़्त कि हो बाल कुशा मौजे-शराब
हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझसे
नवेदे-अम्न है बेदादे दोस्त जाँ के लिए
ज़हर-ए-ग़म कर चुका था मेरा काम
शुमार-ए सुबह मरग़ूब-ए बुत-ए-मुश्किल पसंद आया
तुम न आए तो क्या सहर न हुई
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
आ कि मेरी जान को क़रार नहीं है
फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
नुक्तह-चीं है ग़म-ए दिल उस को सुनाए न बने
बाद मरने के मेरे घर से यह सामाँ निकला
वह हर एक बात पर कहना कि यों होता तो क्या होता
बिजली इक कौंद गयी आँखों के आगे तो क्या
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं
वह शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहां
तेरे वादे पर जिये हम
बिजली सी कौंद गयी आँखों के आगे
अज़ मेहर ता-ब-ज़र्रा दिल-ओ-दिल है आइना
अफ़सोस कि दनदां का किया रिज़क़ फ़लक ने
'असद' हम वो जुनूँ-जौलाँ गदा-ए-बे-सर-ओ-पा हैं
आमद-ए-सैलाब-ए-तूफ़न-ए सदाए आब है
उग रहा है दर-ओ-दीवार से सबज़ा ग़ालिब
क्या तंग हम सितमज़दगां का जहान है
कहते तो हो तुम सब कि बुत-ए-ग़ालिया-मू आए
क़यामत है कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना
कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है
कोह के हों बार-ए-ख़ातिर गर सदा हो जाइये
गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँग
गरम-ए-फ़रयाद रखा शक्ल-ए-निहाली ने मुझे
गुलशन में बंदोबस्त ब-रंग-ए-दिगर है आज
घर में था क्या कि तिरा ग़म उसे ग़ारत करता
चशम-ए-ख़ूबां ख़ामुशी में भी नवा-परदाज़ है
जब तक दहान-ए-ज़ख़्म न पैदा करे कोई
ज़-बस-कि मश्क़-ए-तमाशा जुनूँ-अलामत है
ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद
ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री 'ग़ालिब'
जादा-ए-रह ख़ुर को वक़्त-ए-शाम है तार-ए-शुआ
जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी
तपिश से मेरी वक़्फ़-ए-कशमकश हर तार-ए-बिस्तर है
ता हम को शिकायत की भी बाक़ी न रहे जा
तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो
दिल लगा कर लग गया उन को भी तनहा बैठना
देख कर दर-पर्दा गर्म-ए-दामन-अफ़्शानी मुझे
नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच
न लेवे गर ख़स-ए-जौहर तरावत सबज़-ए-ख़त से
नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब
पीनस में गुज़रते हैं जो कूचे से वह मेरे
फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर
है बज़्म-ए-बुतां में सुख़न आज़ुर्दा लबों से
ब-नाला हासिल-ए-दिल-बस्तगी फ़राहम कर
बर्शकाल-ए-गिर्या-ए-आशिक़ है देखा चाहिए
बीम-ए-रक़ीब से नहीं करते विदा-ए-होश
मस्ती ब-ज़ौक़-ए-ग़फ़लत-ए-साक़ी हलाक है
मुँद गईं खोलते ही खोलते आँखें 'ग़ालिब'
मुझ को दयार-ए-ग़ैर में मारा वतन से दूर
रफ़्तार-ए-उम्र क़त-ए-रह-ए-इज़्तिराब है
रहा गर कोई ता क़यामत सलामत
लब-ए-ईसा की जुम्बिश करती है गहवारा-जम्बानी
लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले
लो हम मरीज़-ए-इश्क़ के बीमार-दार हैं
वां उस को हौल-ए-दिल है तो यां मैं हूं शरम-सार
वुसअत-स-ईए-करम देख कि सर-ता-सर-ए-ख़ाक
सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर
सितम-कश मस्लहत से हूँ कि ख़ूबाँ तुझ पे आशिक़ हैं
सियाहि जैसे गिर जावे दम-ए-तहरीर काग़ज़ पर
हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुशकिल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़
हासिल से हाथ धो बैठ ऐ आरज़ू-ख़िरामी
हुज़ूर-ए-शाह में अहल-ए-सुख़न की आज़माइश है
हुजूम-ए-नाला हैरत आजिज़-ए-अर्ज़-ए-यक-अफ़्ग़ँ है
हुश्न-ए-बेपरवा ख़रीदार-ए-मता-ए-जलवा है