सातवाँ भाग : बयान - 4
शाम का वक्त है। सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं तथापि पश्चिम तरफ आसमान पर कुछ-कुछ लाली अभी तक दिखाई दे रही है। ठण्डी हवा मन्द गति से चल रही है। गरमी तो नहीं मालूम होती लेकिन इस समय की हवा बदन में कंपकंपी भी पैदा नहीं कर सकती। हम इस समय आपको एक ऐसे मैदान की तरफ ध्यान देने के लिए कहते हैं, जिसकी लम्बाई और चौड़ाई का अन्दाज करना कठिन है। जिधर निगाह दौड़ाइये, सन्नाटा नजर आता है। कोई पेड़ भी ऐसा नहीं है, जिसके पीछे या जिस पर चढ़कर कोई आदमी अपने को छिपा सके। हां, पूरब तरफ निगाह कुछ ठोकर खाती है और एक धुंधली चीज को देखकर गौर करने वाला कह सकता है कि उस तरफ शायद कोई छोटी-सी पहाड़ी या पुराने जमाने का कोई ऊंचा टीला है।
ऐसे मैदान में तीन औरतें घोड़ियों पर सवार धीरे-धीरे उसी तरफ जा रही हैं, जिधर उस टीले या छोटी पहाड़ी की स्याही मालूम हो रही है। यद्यपि उन औरतों की पोशाक जनाना वजः की है। मगर, फिर भी चुस्त और दक्षिणी ढंग की है। तीनों के चेहरे पर नकाब पड़ी है, तथापि बदन की सुडौली और कलाई तथा नाजुक उंगलियों पर ध्यान देने से देखने वाले के दिल में यह बात जरूर पैदा होगी कि ये तीनों ही नाजुक नौजवान और खूबसूरत हैं। इन औरतों के विषय में हम अपने पाठकों को ज्यादा देर तक खटके में न डालकर इसी समय इनका परिचय दे देना उत्तम समझते हैं। वह देखिये ऊंची और मुश्की घोड़ी पर जो सवार है, वह मायारानी है। चोगर आंखों वाली सफेद पचकल्यान घोड़ी पर जो पटरी जमाये है वह उसकी छोटी बहिन लाडिली है, जिसे अभी तक हम रामभोली के नाम से लिखते चले आये हैं, और सब्जी घोड़ी पर सवार चारों तरफ निगाह दौड़ा-दौड़ाकर देखने वाली धनपत है। ये तीनों आपस में धीरे-धीरे बातें करती जा रही हैं। लीजिए तीनों ने अपने चेहरों पर से नकाबें उलट दीं, अब हमें तीनों की बातों पर ध्यान देना उचित है।
मायारानी - न मालूम चण्डूल कम्बख्त तीसरे नम्बर के बाग में क्योंकर जा पहुंचा! इसमें तो कुछ सन्देह नहीं कि जिस राह से हम लोग आते-जाते हैं उस राह से वह नहीं गया था।
लाडिली - तिलिस्म बनाने वालों ने वहां पहुंचने के लिए कई रास्ते बनाए हैं शायद उन्हीं रास्तों में से कोई रास्ता उसे मालूम हो गया हो।
धनपत - मगर उन रास्तों का हाल किसी दूसरे को मालूम हो जाना तो बड़ी भयानक बात है।
मायारानी - और यह एक ताज्जुब की बात है कि उन रास्तों का हाल जब मुझको जो तिलिस्म की रानी कहलाती है, नहीं मालूम तो किसी दूसरे को कैसे मालूम हुआ!
लाडिली - ठीक है, तिलिस्म की बहुत-सी बातें ऐसी हैं, जो तुम्हें मालूम हैं। मगर नियमानुसार तुम मुझसे भी नहीं कह सकती हो। हां, उन रास्तों का हाल जीजाजी1 को जरूर मालूम था। अफसोस, उन्हें मरे पांच वर्ष हो गये, अगर जीते होते तो...।
मायारानी - (कुछ घबड़ाकर और जल्दी से) तुम कैसे जानती हो कि उन रास्तों का हाल उन्हें मालूम था?
लाडिली - हंसी-हंसी में उन्होंने एक दिन मुझसे कहा था कि बाग के तीसरे दर्जे में जाने के लिए पांच रास्ते हैं, बल्कि वे मुझे अपने साथ वहां ले चलकर नया रास्ता दिखाने को तैयार भी थे मगर मैं तुम्हारे डर से उनके साथ न गई।
मायारानी - आज तक तूने यह हाल मुझसे क्यों न कहा?
लाडिली - मेरी समझ में यह कोई जरूरी बात न थी जो तुमसे कहती।
लाडिली की बात सुन मायारानी चुप हो गई और बड़े गौर में पड़ गई। उसकी अवस्था और उसकी सूरत पर ध्यान देने से मालूम होता था कि लाडिली की बात से उसके दिल पर एक सख्त सदमा पहुंचा है और वह थोड़ी देर के लिए अपने को बिल्कुल ही भूल गई है। मायारानी की ऐसी अवस्था क्यों हो गई और इस मामूली-सी बात से उसके दिल पर क्यों चोट लगी इसका सबब उसकी छोटी बहिन लाडिली भी न समझ सकी। कदाचित् यह कहा जाय कि वह अपने पति को याद करके इस अवस्था में पड़ गई, सो भी नहीं हो सकता। क्योंकि लाडिली खूब जानती थी कि मायारानी अपने खूबसूरत, हंसमुख और नेक चाल-चलन वाले पति को कुछ भी नहीं चाहती थी। इस समय लाडिली के दिल में एक तरह का खटका पैदा हुआ और शक की निगाह से मायारानी की तरफ देखने लगी। मगर मायारानी कुछ भी नहीं जानती थी कि उसकी छोटी बहिन उसे किस निगाह से देख रही है। लगभग दो सौ कदम चले जाने बाद वह चौंकी और लाडिली की तरफ जरा-सा मुंह फेरकर बोली, ''हां, तो वह उन रास्तों का हाल जानता था'
लाडिली के दिल में और भी खुटका पैदा हुआ बल्कि इस बात का रंज हुआ कि मायारानी ने अपने पति या लाडिली के प्यारे बहनोई की तरफ ऐसे शब्दों में इशारा किया जो किसी नीच या खिदमतगार तथा नौकर के लिए बरता जाता है। लाडिली का ध्यान धनपत की तरफ भी गया जिसके चेहरे पर उदासी और रंज की निशानी मामूली से कुछ ज्यादा पाई जाती थी और जिसकी घोड़ी भी पांच-सात कदम पीछे रह गई थी। मगर मायारानी और धनपत की ऐसी अवस्था ज्यादा देर तक न रही, उन दोनों ने बहुत जल्द अपने को सम्हाला और फिर मामूली तौर पर बातचीत करने लगीं।
धनपत - अब वह टीला भी आ पहुंचा। देखा चाहिए बाबाजी से मुलाकात होती है या नहीं!
1. जीजाजी से मतलब मायारानी के पति से है जो लाड़िली का बहनोई था।
मायारानी - मुलाकात अवश्य होगी क्योंकि वे कहीं नहीं जाते मगर अब मेरा जी नहीं चाहता कि वहां तक जाऊं या उनसे मिलूं।
लाडिली - सो क्यों! तुम तो बड़े उत्साह से उनसे मिलने के लिए आई हो!
माया - ठीक है, मगर अब जो मैं सोचती हूं तो यही जान पड़ता है कि बेचारे बाबाजी इन सब बातों का जवाब कुछ भी न दे सकेंगे।
लाडिली - खैर, जब इतनी दूर आ चुकी हो तो अब लौट चलना भी उचित नहीं।
माया - नहीं, अब मैं वहां न जाऊंगी!
इतना कहकर मायारानी ने घोड़ा फेरा, लाचार होकर लाडिली और धनपत को भी घूमना पड़ा, मगर इस कार्रवाई से लाडिली के दिल का शक और भी ज्यादा हुआ और उसे निश्चय हो गया कि मेरी बात से मायारानी के दिल पर गहरी चोट बैठी है मगर ठीक इसका सबब क्या है सो कुछ भी नहीं मालूम होता।
मायारानी ने जैसे ही घोड़े की बाग फेरी, वैसे ही उसकी निगाह तेजसिंह पर पड़ी जो तीर और कमान हाथ में लिए बहुत दूर से कदम बढ़ाए इन तीनों के पीछे-पीछे आ रहे थे। मायारानी तेजसिंह को अच्छी तरह से जानती थी। यद्यपि इस समय कुछ अंधेरा हो गया था परन्तु मायारानी की तेज निगाहों ने तेजसिंह को तुरन्त ही पहचान लिया और इसके साथ ही वह तलवार खींचकर तेजसिंह पर झपटी।
मायारानी को नंगी तलवार लिए झपटते देख तेजसिंह ने ललकारके कहा, ''खबरदार, आगे न बढ़ना, नहीं तो एक ही तीर में काम तमाम कर दूंगा!''
तेजसिंह के ललकारने से मायारानी रुक गई मगर धनपत से न रहा गया। वह तलवार खींचकर यह कहती हुई आगे बढ़ी, ''मैं तेरे तीर से डरने वाली नहीं!''
तेजसिंह - मालूम होता है तुझे अपनी जान प्यारी नहीं है, इसे खूब समझ लेना कि तेजसिंह के हाथ से छूटा तीर खाली न जायगा।
धनपत - मालूम होता है कि तू केवल एक तीर ही से हम तीनों को डराकर अपना काम निकालना चाहता है। अफसोस, इस समय मेरे पास तीर-कमान नहीं है, यदि होता तो तुझे जान पड़ता कि तीर चलाना किसे कहते हैं।
तेजसिंह - (हंसकर) न मालूम तूने औरत होने पर भी अपने को क्या समझ रखा है खैर, अब मैं एक कमसिन औरत पर तीर न चलाऊंगा।
इतना कहकर तेजसिंह ने तीर तरकस में रख लिया और कमान बगल में लटकाने के बाद ऐयारी के बटुए में से एक छोटा-सा लोहे का गोला निकालकर सामने खड़े हो गये और धनपत को वह गोला दिखाकर बोले, ''तुम लोगों के लिए यही बहुत है, मगर मैं फिर कहे देता हूं कि मुझ पर तलवार चलाकर भलाई की आशा मत रखना!''
धनपत - (मायारानी की तरफ इशारा करके) क्या तू जानता नहीं कि यह कौन हैं?
तेजसिंह - मैं तुम तीनों को खूब जानता हूं और यह भी जानता हूं कि मायारानी सैंतालीस नम्बर की कोठरी को पवित्र करके बेवा हो गई और इस बात को पांच वर्ष का जमाना हो गया।
इतना कहकर मुस्कुराते हुए तेजसिंह ने एक भेद की निगाह मायारानी पर डाली और देखा कि मायारानी का चेहरा पीला पड़ गया और शर्म से उसकी आंखें नीचे की तरफ झुकने लगीं। मगर यह अवस्था उसकी बहुत देर तक न रही, तेजसिंह के मुंह से बात निकलने के बाद जैसे ही लाडिली की ताज्जुब-भरी निगाह मायारानी पर पड़ी वैसे ही मायारानी ने अपने को सम्हालकर धनपत की तरफ देखा।
अब धनपत अपने को रोक न सकी, उसने घोड़ी बढ़ाकर तेजसिंह पर तलवार का वार किया। तेजसिंह ने फुर्ती से वार खाली देकर अपने को बचा लिया और वही लोहे का गोला धनपत की घोड़ी के सिर में इस जोर से मारा कि वह सम्हल न सकी और सिर हिलाकर जमीन पर गिर पड़ी। लोहे का गोला छिटककर दूर जा गिरा और तेजसिंह ने लपककर उसे उठा लिया।
आशा थी कि घोड़ी के गिरने से धनपत को भी कुछ चोट लगेगी मगर वह घोड़ी पर से उछल कुछ दूर जा रही और बड़ी चालाकी से गिरते-गिरते उसने अपने को बचा लिया। तेजसिंह फिर वही गोला लेकर सामने खड़े हो गए।
तेजसिंह - (गोला दिखाकर) इस गोले की करामात देखी अगर अबकी फिर वार करने का इरादा करेगी तो यह गोला तेरे घुटने पर बैठेगा और तुझे लंगड़ी होकर मायारानी का साथ देना पड़ेगा। मैं यह नहीं चाहता कि तुम लोगों को इस समय जान से मारूं मगर हां जिस काम के लिए आया हूं, उसे किए बिना लौट जाना भी मुनासिब नहीं समझता।
मायारानी - अच्छा बताओ, तुम हम लोगों के पीछे-पीछे क्यों आए हो और क्या चाहते हो
तेजसिंह - (लाडिली की तरफ इशारा करके) केवल इनसे एक बात कहनी है और कुछ नहीं।
लाडिली - कहो, क्या कहते हो?
तेजसिंह - मैं इस तरह नहीं कहना चाहता कि तुम्हारे सिवाय कोई दूसरा सुने, इन दोनों से अलग होकर सुन लो फिर मैं चला जाऊंगा। डरो मत, मैं दगाबाज नहीं हूं, यदि चाहूं तो ललकारकर तुम तीनों को यमलोक पहुंचा सकता हूं, मगर नहीं, तुमसे केवल एक बात कहने के लिए आया हूं जिसके सुनने का अधिकार सिवाय तुम्हारे और किसी को नहीं है।
कुछ सोचकर लाडिली वहां से हट गई और कुछ दूर जाकर तेजसिंह की तरफ देखने लगी मानो वह तेजसिंह की बात सुनने के लिए तैयार हो। तेजसिंह लाडिली के पास गए और बटुए में से एक चीठी निकाल उसके हाथ में देकर बोले, ''इसे जल्द पढ़ लो, देखो, मायारानी को इसका हाल न मालूम हो!''
लाडिली ने बड़े गौर से वह चीठी पढ़ी और इसके बाद टुकड़े-टुकड़े कर फेंक दी।
तेजसिंह - इसका जवाब?
लाडिली - केवल इतना ही कह देना कि 'बहुत अच्छा!'
अब तेजसिंह को ठहरने की कोई जरूरत न थी। उन्होंने उत्तर का रास्ता लिया, मगर घूम-घूमकर देखते जाते थे कि पीछे कोई आता तो नहीं। तेजसिंह के जाने के बाद मायारानी ने लाडिली से पूछा, ''वह चीठी किसकी थी और उसमें क्या लिखा था!'' लाडिली ने असल भेद तो छिपा रखा, मगर कोई विचित्र बात गढ़कर उस समय मायारानी की दिलजमई कर दी।