इक्कीसवां भाग बयान - 6
रात आधे घंटे से कुछ ज्यादे जा चुकी थी जब सब कोई अपने जरूरी कामों से निश्चिंत हो बंगले के अंदर घूमते-फिरते उसी चलती-फिरती तस्वीरों वाले कमरे में पहुंचे। इस समय बंगले के अंदर हर कमरे में रोशनी बखूबी हो रही थी जिसके विषय में भूतनाथ और देवीसिंह ने ताज्जुब के साथ खयाल किया कि यह काम बेशक उन्हीं लोगों का होगा जिन्हें यहां पहुंचने के साथ ही हम लोगों ने पहरा देते देखा था या जो हम लोगों को देखते ही बंगले के अंदर घुसकर गायब हो गए थे। ताज्जुब है कि महाराज को तथा और लोगों को भी उनके विषय में कुछ खयाल नहीं है और न कोई पूछता ही है कि वे कौन थे और कहां गए मगर हमारा दिल उनका हाल जाने बिना बेचैन हो रहा है।
चलती - फिरती तस्वीरों वाले कमरे में फर्श बिछा हुआ था और गद्दी लगी हुई थी जिस पर सब कोई कायदे से अपने-अपने ठिकाने पर बैठ गए और इसके बाद इंद्रजीतसिंह की आज्ञानुसार रोशनी गुल कर दी गई। कमरे में बिल्कुल अंधकार छा गया, यह नहीं मालूम होता था कि कौन क्या कर रहा है, खास करके इंद्रजीतसिंह की तरफ लोगों का ध्यान था जो इस तमाशे को दिखाने वाले थे मगर कोई कह नहीं सकता था कि वह क्या कर रहे हैं।
थोड़ी ही देर बाद चारों तरफ की दीवारें चमकने लगीं और उन पर की कुल तस्वीरें बहुत साफ और बनिस्बत पहले के अच्छी तरह पर दिखाई देने लगीं। पहले तो तस्वीरें केवल चित्रकारी ही मालूम पड़ती थीं परंतु अब सचमुच की बातें दिखाई देने लगीं। मालूम होता था कि जैसे हम बहुत दूर से सच्चे किले, पहाड, जंगल, मैदान, आदमी, जानवर और फौज इत्यादि को देख रहे हैं। सब कोई ताज्जुब के साथ उस कैफियत को देख रहे थे कि यकायक बाजे की आवाज कान में आई। उस समय सभों का ध्यान जमानिया के किले की तस्वीर पर जा पड़ा जिधर से बाजे की आवाज आ रही थी। देखा कि -
एक बहुत बड़े मैदान में बेहिसाब फौज खड़ी है जिसके आमने-सामने दो हिस्से हैं मानो दो फौजें लड़ने के लिए तैयार खड़ी हैं। पैदल और सवार दोनों तरह की फौज हैं तथा तोप इत्यादि और भी जो कुछ फौज में होना चाहिए सब मौजूद है। इन दोनों फौजों में एक की पोशाक सुर्ख और दूसरी की आसमानी थी। बाजे की आवाज केवल सुर्ख वर्दी वाली फौज में से आ रही थी बल्कि बाजे वाले अपना काम करते हुए साफ दिखाई दे रहे थे। यकायक सुर्ख वर्दी वाली फौज हिलती हुई दिखाई पड़ी। गौर करने पर मालूम हुआ कि सिपाहियों का मुंह घूम गया है और वे दाहिनी तरफ वाली एक पहाड़ी की तरफ तेजी के साथ बाजे की गत पर पैर रखते हुए जा रहे हैं। जैसे-जैसे फौज दूर होती जाती वैसे ही वेसे बाजे की आवाज भी दूर होती जाती है। देखते ही देखते वह फौज मानो कोसों दूर निकल गई और एक पहाड़ी के पीछे की तरफ जाकर आंखों की ओट हो गई। अब यह मैदान ज्यादा खुलासा दिखाई देने लगा। जितनी जगह दोनों फौजों से भरी थी वह एक फौज के हिस्से में रह गई। अब दूसरी अर्थात् आसमानी वर्दी वाली फौज में से बाजे की आवाज आने लगी और सवार तथा पैदल भी चलते हुए दिखाई देने लगे। एक सवार हाथ में झंडा लिए तेजी के साथ घोड़ा दौड़ाकर मैदान में आ खड़ा हुआ और झंडे के इशारे से फौज को कवायद कराने लगा। यह कवायद घंटे भर तक होती रही और इस बीच में आले दर्जे की होशियारी, चालाकी, मुस्तैदी, सफाई और बहादुरी दिखाई दी जिससे सब कोई बहुत ही खुश हुए और महाराज बोले, ''बेशक फौज को ऐसा ही तैयार करना चाहिए।''
कवायद खत्म करने के बाद बाजा बंद हुआ और वह फौज एक तरफ को रवाना हुई, मगर थोड़ी ही दूर गई होगी कि उस लाल वर्दी वाली फौज ने यकायक पहाड़ी के पीछे से निकलकर इस फौज पर धावा मारा। इस कैफियत को देखते ही आसमानी वर्दी वाली फौज के अफसर होशियर हो गए, झंडे का इशारा पाते ही बाजा पुनः बजने लगा, और फौजी सिपाही लड़ने के लिए तैयार हो गए। इस बीच में वह फौज भी आ पहुंची और दोनों में घमासान लड़ाई होने लगी।
इस कैफियत को देखकर महाराज सुरेन्द्रसिंह, वीरेन्द्रसिंह, गोपालसिंह, जीतसिंह, तेजसिंह वगैरह तथा ऐयार लोग हौरान हो गए, और हद्द से ज्यादे ताज्जुब करने लगे। लड़ाई के फन की ऐसी कोई बात नहीं थी जो इसमें न दिखाई पड़ी हो। कई तरह की घुसबंदी और किलेबंदी के साथ ही साथ घुड़सवारों की कारीगरी ने सभों को सकते में डाल दिया और सभों के मुंह से बार-बार 'वाह-वाह' की आवाज निकलती रही। यह तमाशा कई घंटे में खत्म हुआ और इसके बाद एकदम से अंधकार हो गया, उस समय इंद्रजीतसिंह ने तिलिस्मी खंजर की रोशनी और देवीसिंह ने इशारा पाकर कमरे में रोशनी की जो पहले बुझा दी गई थी।
इस समय रात थोड़ी-सी बच गई थी जो सभों ने सोकर बिता दी मगर स्वप्न में भी इसी तरह के खेल-तमाशे देखते रहे। जब सभों की आंखें खुलीं तो दिन घंटे भर से ज्यादे चढ़ चुका था। घबड़ाकर सब कोई उठ खड़े हुए और कमरे के बाहर निकलकर जरूरी कामों से छुट्टी पाने का बंदोबस्त करने लगे। इस समय जिन चीजों की सभों को जरूरत पड़ी वे सब चीजें वहां मौजूद पाई गईं मगर उन दोनों स्त्रियों पर किसी की निगाह न पड़ी जिन्हें यहां आने के साथ ही सभों ने देखा था।