Get it on Google Play
Download on the App Store

बाईसवां भाग बयान - 13

विवाह का सब सामान ठीक हो गया मगर हर तरह की तैयारी हो जाने पर भी लोगों की मेहनत में कमी नहीं हुई। सब कोई उसी तरह दौड़-धूप और काम-काज में लगे हुए दिखाई दे रहे हैं। महाराज सुरेन्द्रसिंह सभों को लिए हुए चुनारगढ़ चले गये। अब इस तिलिस्मी मकान में सिर्फ जरूरत की चीजों के ढेर और इंतजामकार लोगों के डेरे भर ही दिखाई दे रहे हैं। इस मकान में उन लोगों के लिए भी रास्ता बनाया गया है जो हंसते-हंसते उस तिलिस्मी इमारत में कूदा करेंगे जिसके बनाने की आज्ञा इंद्रदेव को दी गई थी और जो इस समय बनकर तैयार हो गई।

यह इमारत बीस गज लंबी और इतनी ही चौड़ी थी। ऊंचाई इसकी लगभग चालीस हाथ से कुछ ज्यादे होगी। चारों तरफ दीवार साफ और चिकनी थी तथा किसी तरफ कोई दरवाजे का निशान दिखाई नहीं देता था। पूरब तरफ ऊपर चढ़ जाने के लिए छोटी सीढ़ियां बनी हुइ थीं जिनके दोनों तरफ हिफाजत के लिए लोहे के सींखचे लगा दिए गए थे। उसी पूरब तरफ वाली दीवार पर बड़े-बड़े हरफों में यह भी लिखा हुआ था -

''जो आदमी इन सीढ़ियों की राह ऊपर जायगा और एक नजर अंदर की तरफ झांक वहां की केफियत देखकर इन्हीं सीढ़ियों की राह नीचे उतर आवेगा उसे एक लाख रुपये इनाम दिये जायेंगे।''

इस इमारत ने चारों तरफ एक अनूठा रंग पैदा कर दिया था। हजारों आदमी इस इमारत के ऊपर चढ़ जाने के लिए तैयार थे और हर एक आदमी अपनी-अपनी लालसा पूरी करने के लिए जल्दी मचा रहा था, मगर सीढ़ी का दरवाजा बंद था। पहरेदार लोग किसी को ऊपर जाने की इजाजत नहीं देते थे और यह कहकर सभों को संतोष करा देते थे कि बारात वाले दिन दरवाजा खुलेगा और पंद्रह दिन तक बंद न होगा।

यहां से चुनारगढ़ की सड़कों के दोनों तरफ जो सजावट की गई थी उसमें भी एक अनूठापन था। दोनों तरफ रोशनी के लिए जाफरी बनी हुई थी और उसमें अच्छे-अच्छे नीति के श्लोक दरसाए गये थे। बीच-बीच में थोड़ी-थोड़ी दूर पर नौबत खाने के बगल में एक मचान था जिस पर एक या दो कैदियों के बैठने के लिए जगह बनी हुई थी। जाफरी के दोनों तरफ दस हाथ चौड़ी जमीन में बाग का नमूना तैयार किया गया था और इसके बाद आतिशबाजी लगाई गई थी। आध-आध कोस की दूरी पर सर्वसाधारण और गरीब तमाशबीनों के लिए महफिल तैयार की गई थी और उसके लिए अच्छी-अच्छी गाने वाली रंडियां और भांड मुकर्रर किये गये थे। रात अंधेरी होने के कारण रोशनी का सामान ज्यादे तैयार किया गया था और वह तिलिस्मी चंद्रमा जो दोनों राजकुमारों को तिलिस्म के अंदर से मिला था चुनारगढ़ किले के ऊंचे कंगूरे पर लगा दिया गया था जिसकी रोशनी इस तिलिस्मी मकान तक बड़ी खूबी और सफाई के साथ पड़ रही थी।

पाठक, दोनों कुमारों के बारात की सजावट, महफिलों की तैयारी, रोशनी और आतिशबाजी की खूबी, मेहमानदारी की तारीफ और खैरात की बहुतायत इत्यादि का हाल विस्तारपूर्वक लिखकर पढ़ने वालों का समय नष्ट करना हमारी आत्मा और आदत के विरुद्ध है। आप खुद समझ सकते हैं कि दोनों कुमारों की शादी का इंतजाम किस खूबी के साथ किया गया होगा, नुमाइश की चीजें कैसी अच्छी होंगी। बड़प्पन का कितना बड़ा खयाल किया गया होगा, और बारात किस धूमधाम से निकली होगी। हम आज तक जिस तरह संक्षेप में लिखते आये हैं अब भी उसी तरह लिखेंगे, तथापि हमारी उन लिखावटों से जो ब्याह के संबंध में ऊपर कई दफे मौके पर लिखी जा चुकी हैं आपको अंदाजा के साथ-साथ अनुमान करने का हौसला भी मिल जायगा और विशेष सोच-विचार की जरूरत न रहेगी। हम इस जगह पर केवल इतना ही लिखेंगे कि -

बारात बड़े धूमधाम से चुनारगढ़ के बाहर हुई। आगे-आगे नौबत निशान और उसके बाद सिलसिलेवार फौजी, सवार, पैदल और तोपखाने वगैरह थे, जिसके बाद ऐसी फुलवारियां थीं जिनके देखने से खुशी और लूटने से दौलत हासिल हो। इसके बाद बहुत बड़े सजे हुए अम्बारीदार हाथी पर दोनों कुमार हाथी ही पर सवार अपने बड़े बुजुर्गों, रिश्तेदारों और मेहमानों से घिरे हुए धीरे-धीरे दोतरफों बहार लूटते और दुश्मनों के कलेजों को जलाते हुए जा रहे थे और उनके बाद तरह-तरह की सवारियों और घोड़ों पर बैठे हुए बड़े-बड़े सरदार लोग दिखाई दे रहे थे। अंत में फिर फौजी सिपाहियों का सिलसिला था। आगे वाले नौबत निशान से लेकर कुमारों के हाथी तक कई तरह के बाजे वाले अपने-अपने मौके से अपना इल्म और हुनर दिखा रहे थे।

कुशलपूर्वक बारात ठिकाने पहुंची और शास्त्रानुसार कर्म तथा रीति होने के बाद कुंअर इंद्रजीतसिंह का विवाह किशोरी और आनंदसिंह का कामिनी के साथ हो गया और इस काम में रणधीरसिंह ने भी वित्त के अनुसार दिल खोलकर खर्च किया। दूसरे रोज पहर भर दिन चढ़ने के पहले ही दोनों बहुओं की रुखसती करा महाराज चुनारगढ़ की तरफ लौट पड़े।

चुनारगढ़ पहुंचने पर जो कुछ रस्में थीं वे पूरी होने लगीं और मेहमान तथा तमाशबीन लोग तरह-तरह के तमाशों और महफिलों का आनंद लूटने लगे। उधर तिलिस्मी मकान की सीढ़ियों पर लाख रुपया इनाम पाने की लालसा से लोगों ने चढ़ना आरंभ किया। जो कोई दीवार के ऊपर पहुंचकर अंदर की तरफ झांकता वह अपने दिल को किसी तरह न सम्हाल सकता और एक दफे खिलखिलाकर हंसने के बाद अंदर की तरफ कूद पड़ता तथा कई घंटे के बाद उस चबूतरे वाली बहुत बड़ी तिलिस्मी इमारत की राह से बाहर निकल जाता।

बस, विवाह का इतना ही हाल संक्षेप में लिखकर हम इस बयान को पूरा करते हैं और इसके बाद सोहागरात की एक अनूठी घटना का उल्लेख करके इस बाईसवें भाग को समाप्त करेंगे क्योंकि हम दिलचस्प घटनाओं ही का लिखना पसंद करते हैं।

चंद्रकांता संतति - खंड 6

देवकीनन्दन खत्री
Chapters
इक्कीसवां भाग : बयान - 1 इक्कीसवां भाग बयान - 2 इक्कीसवां भाग बयान - 3 इक्कीसवां भाग बयान - 4 इक्कीसवां भाग बयान - 5 इक्कीसवां भाग बयान - 6 इक्कीसवां भाग बयान - 7 इक्कीसवां भाग बयान - 8 इक्कीसवां भाग बयान - 9 इक्कीसवां भाग बयान - 10 इक्कीसवां भाग बयान - 11 इक्कीसवां भाग बयान - 12 बाईसवां भाग बयान - 1 बाईसवां भाग बयान - 2 बाईसवां भाग बयान - 3 बाईसवां भाग बयान - 4 बाईसवां भाग बयान - 5 बाईसवां भाग बयान - 6 बाईसवां भाग बयान - 7 बाईसवां भाग बयान - 8 बाईसवां भाग बयान - 9 बाईसवां भाग बयान - 10 बाईसवां भाग बयान - 11 बाईसवां भाग बयान - 12 बाईसवां भाग बयान - 13 बाईसवां भाग बयान - 14 तेईसवां भाग बयान - 1 तेईसवां भाग बयान - 2 तेईसवां भाग बयान - 3 तेईसवां भाग बयान - 4 तेईसवां भाग बयान - 5 तेईसवां भाग बयान - 6 तेईसवां भाग बयान - 7 तेईसवां भाग बयान - 8 तेईसवां भाग बयान - 9 तेईसवां भाग बयान - 10 तेईसवां भाग बयान - 11 तेईसवां भाग बयान - 12 चौबीसवां भाग बयान - 1 चौबीसवां भाग बयान - 2 चौबीसवां भाग बयान - 3 चौबीसवां भाग बयान - 4 चौबीसवां भाग बयान - 5 चौबीसवां भाग बयान - 6 चौबीसवां भाग बयान - 7 चौबीसवां भाग बयान - 8