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श्रीविष्णुपुराण - द्वितीय अंश - अध्याय १६


 
ब्राह्मण बोले - 
हे नरेश्वर ! तदनन्तर सहस्त्र वर्ष व्यतीत होनेपर महर्षि ऋभु निदाघको ज्ञानोपदेश करनेके लिये उसी नगरको गये ॥१॥
वहाँ पहूँचनेपर उन्होंने देखा कि वहाँका राजा बहुत - सी सेना आदिके साथ बड़ी धूम - धामसे नगरमें प्रवेश कर रहा हैं और वनसे कुशा तथा समिध लेकर आया हुआ महाभाग निदाघ जनसमूहसे हटकर भूखा - प्यासा दूर खड़ा है ॥२-३॥
निदाघको देखकर ऋभु उसके निकट गये और उसका अभिवादन करके बोलें - ' हे द्विज ! यहाँ, एकान्तमें आप कैसे खड़े हैं' ॥४॥
निदाघ बोले - 
हे विप्रवर ! आज इस अति रमणीक नगरमें राजा जाना चाहता है, सो मार्गमें बड़ी भीड़ हो रही है; इसलिये मैं यहाँ खड़ा हूँ ॥५॥
ऋभु बोले - 
हे द्विजश्रेष्ठ ! मालूम होता है आप यहाँकी सब बातें जानते हैं । अतः कहिये इनमें राजा कौन है ? और अन्य पुरुष कौन हैं ? ॥६॥
निदाघ बोले - 
यह जो पर्वतके समान ऊँचे मत्त गजराजपर चढ़ा हुआ है वही राजा हैं, तथा दूसरे लोग परिजन हैं ॥७॥
ऋभु बोले - 
आपने राज और गज, दोनों एक साथ ही दिखाये, किंतु इन दोनोंके पृथक् - पृथक् विशेष चिह्न अथवा लक्षण नहीं बतलाये ॥८॥
अतः हे महाभाग ! इन दोनोंमें क्या- क्या विशेषताएँ हैं, यह बतलाइये । मैं यह जानना चाहता हूँ कि इनमें कौन राजा है और कौन गज हैं ? ॥९॥
निदाघ बोले - 
इनमें जो नीचे है वह गज है और उसके ऊपर राजा है । हे द्विज ! इन दोनोंका वाह्य - वाहक-सम्बन्ध है - इस बातकों कौन नहीं जानता ? ॥१०॥
ऋभु बोले - 
( ठीक है, किन्तु ) हे ब्रह्मन् ! मुझे इस प्रकार समझाइये, जिसमें मैं यह जान सकूँ कि ' नीचे' इस शब्दका वाच्य क्या है ? और 'ऊपर' किसे कहते हैं ॥११॥
ब्राह्मणने कहा - 
ऋभुके ऐसा कहनेपर निदाघने अकस्मात् उनके ऊपर चढ़्कर कहा - "सुनिये, आपने जो पूछा है वही बतलता हूँ - ॥१२॥
इस समय राजाकी भाँति मैं तो ऊपर हूँ और गजकी भाँति आप नीचे हैं । हे ब्रह्मन ! आपको समझानेके लिये ही मैंने यह दृष्टान्त दिखलाया हैं" ॥१३॥
ऋभु बोले - 
हे द्विजश्रेष्ठ ! यदि आप राजाके समान हैं और मैं गजके समान हूँ तो यह बताइये कि आप कौन हैं ? और मैं कौन हूँ ? ॥१४॥
ब्राह्मणने कहा - 
ऋभुके ऐसा कहनेपर निदाघने तुरन्त ही उनके दोनों चरण पकड़ लिये और कहा - 'निश्चय ही आप आचार्यचरण महर्षि ऋभु हैं ॥१५॥
हमारे आचार्यजीके समान अद्वैत-संस्कारयुक्त चित्त और किसीका नहीं है; अतः मेरा विचार है कि आप हमारे गुरुजी ही आकर उपस्थित हुए है' ॥१६॥
ऋभु बोले - 
हे निदाघ ! पहले तुमने सेवा - शुश्रुषा करके मेरा बहुत आदर किया था अतः तुम्हारे स्त्रेहवश में ऋभु नामक तुम्हारा गुरु ही तुमको उपदेश देनेके लिये आया हूँ ॥१७॥
हे महामते ! ' समस्त पदार्थोंमें अद्वैत- आत्म- बुद्धि रखना ' यही परमार्थका सार है जो मैंने तुम्हें संक्षेपमें उपदेश कर दिया ॥१८॥
ब्राह्मण बोले - 
निदाघसे ऐसा कह परम विद्वान् गुरुवर भगवान् ऋभु चले गये और उनके उपदेशसे निदाघ भी अद्वैत चिन्तनमें तत्पर हो गया ॥१९॥
और समस्त प्राणियोंको अपनेसे अभिन्न देखने लगा हे धर्मज्ञ ! हे पृथिवीपते ! जिस प्रकार उस ब्रह्मापरायण ब्राह्मणने परम मोक्षपद प्राप्त किया, उसी प्रकार उस ब्रह्मापरयण ब्राह्मणने परम मोक्षपद प्राप्त किया, उसी प्रकार तू भी आत्मा, शत्रु और मित्रादिमें समान भाव रखकर अपनेको सर्वगत जानता हुआ मुक्ति लाभ कर ॥२०-२१॥
जिस प्रकार एक ही आकाश श्वेत-नील आदि भेदोंवाला दिखायी देता है, उसी प्रकार भ्रान्तदृष्टियोंको एक ही आत्मा पृथक् पृथक् दीखता हैं ॥२२॥
इस संसारमें जो कुछ है वह सब एक आत्मा ही है और वह अविनाशी है, उससे अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है; मैं तु और ये सब आत्मस्वरूप ही हैं । अतः भेद-ज्ञानरूप मोहको छोड़ ॥२३॥
श्रीपराशरजी बोले - 
उनके ऐसा कहनेपर सौवीरराजने परमार्थदृष्टिका आश्रय लेकर भेद - बुद्धिको छोड़ दिया और वे जातिस्मर ब्राह्मणश्रेष्ठ भी बोधयुक्त होनेसे उसी जन्ममें मुक्त हो गये ॥२४॥
इस प्रकार महाराज भरतके इतिहासके इस सारभूत वृत्तान्तको जो पुरुष भक्तिपूर्व कहता या सुनता है उसकी बुद्धि निर्मल हो जाती है, उसे कभी आत्म-विस्मृति नहीं होती और वह जन्म-जन्मान्तरमें मुक्तिकी योग्यता प्राप्त कर लेता है ॥२५॥
इति श्रीविष्णुपुराणे द्वितीयेंऽशें षोड्शोऽध्यायः ॥१६॥
इति श्रीपराशरमुनिविरचिते श्रीविष्णूपरत्वनिर्णायके श्रीमति विष्णुमहापुराणे द्वितीयोंऽशः समाप्तः ॥
 

विष्णु पुराण द्वितीय सर्ग Vishnu Puran

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Chapters
श्रीविष्णुपुराण - द्वितीय अंश - अध्याय १ श्रीविष्णुपुराण - द्वितीय अंश - अध्याय २ श्रीविष्णुपुराण - द्वितीय अंश - अध्याय ३ श्रीविष्णुपुराण - द्वितीय अंश - अध्याय ४ श्रीविष्णुपुराण - द्वितीय अंश - अध्याय ५ श्रीविष्णुपुराण - द्वितीय अंश - अध्याय ६ श्रीविष्णुपुराण - द्वितीय अंश - अध्याय ७ श्रीविष्णुपुराण - द्वितीय अंश - अध्याय ८ श्रीविष्णुपुराण - द्वितीय अंश - अध्याय ९ श्रीविष्णुपुराण - द्वितीय अंश - अध्याय १० श्रीविष्णुपुराण - द्वितीय अंश - अध्याय ११ श्रीविष्णुपुराण - द्वितीय अंश - अध्याय १२ श्रीविष्णुपुराण - द्वितीय अंश - अध्याय १३ श्रीविष्णुपुराण - द्वितीय अंश - अध्याय १४ श्रीविष्णुपुराण - द्वितीय अंश - अध्याय १५ श्रीविष्णुपुराण - द्वितीय अंश - अध्याय १६