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वापसी

स्वयं में सृजन और त्रासदी को समेटता हुआ एक लफ्ज़ ।हुनरमंदी की दुनिया हो , या सियासत की बिसात , कलाकारों का अनूठा जगत हो या फैशन का संसार , किसी धर्मात्मा की बोध यात्रा हो या फिर विचारक का बनता जमता विश्वास , प्रदेश से लेकर परदेश तक, सुबह के भूले से लेकर शाम को लौटे तक । हर एक को संचरण कराती सुपथ  दिखाने का रास्ता लिए होती है वापसी ।

कितनी चर्चित रही है ये वापसी हालिया दिनों में कि जिसने वातानुकूलित कक्षो में बैठे कुछ बौद्धिक जुगालीबाजों को एक बार पुनः संवेदनशीलता के भौंडे प्रदर्शन का मानो अवसर दे दिया हो । हैरान मजदूर, क्लांत किसान या फिर बेबस आम जनता हमेशा से इनके वैचारिक प्रयोगशाला के गिनीपिग ही रहे हैं । इनकी वास्तविक भूख और  प्यास की मरुभूमि पर आभासी संवेदना की चंद छीटें डाल कर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान चुके हैं, और नवीन आर्थिक नीति पर जुगाली अब इनका प्रिय शग़ल है ।.

बावजूद इसके वापसी की अपनी नैसर्गिकता रही है । इसकी अपरिहार्यता प्रकृति से लेकर संस्कृति और भौतिकता से लेकर आध्यात्मिकता सर्वत्र अधिव्याप्त है ।

भरतपुर के पक्षी विहार में हर साल नए प्रवासी पक्षी आते हैं कुछ दिन निवास करके फिर उड़ जाते हैं , कोई साइबेरिया की ओर तो कोई दूर हिन्द महासागर के द्वीपों की तरफ , क्योंकि उन्हें भी किसी के इंतेज़ार को परिणति देनी होती है , वापसी करनी होती है ।

महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन में चम्पारण सत्याग्रह से लेकर असहयोग और सविनय अवज्ञा में अंग्रेजों को विवश कर देने वाले राष्ट्रीय आंदोलनों का बिगुल बजाया , अपने हर आंदोलन को उसकी नियति देकर वो पुनः वापस होते थे अपनी सृजनात्मकता की तरफ , चरखा चलाते गांधी जी ने अपने प्रत्येक चरण के परिणति में कुछ न कुछ प्राप्त किया और वापस हुए , उनकी ये नीति संघर्ष-विराम-संघर्ष की नीति के रूप में जानी जाती है ।

वापसी अंग्रेजों को भी करनी पड़ी क्योंकि उनके शोषक स्वरूप को भारतीय मिट्टी के साथ पूरे  तृतीय विश्व ने नकार दिया था । वापसी एक शाश्वत सत्य है और इस परम सत्य से विलग कोई भी अस्तित्ववान कण नही ।  श्रीकृष्ण रण के मैदान से आवश्यकता पड़ने पर वापस हुए और रणछोड़ कहलाये तो वापसी श्रीराम की भी हुई जब चौदह वर्ष के सार्थक वनवास के बाद वो अयोध्या लौटे और रामराज्य की कीर्ति फैलाई जो आज भी जन जन में गेय है ।

.वापसी तो हर आत्मा की तय है उस परम तत्व में जिसके लघु अंश हम और आप है , जिसकी बोनसाई हम सबमें भी निवसित है । इन मायनों में वापसी स्वागत योग्य है और श्रद्धेय भी । गंभीर बातों से इतर एक मुस्कान बिखेरिये और सभी को शामिल करिए इस खुशी में ,क्योंकि लौट के बुद्धू  घर को ही आता है । नहीं क्या ? ~

Writer - Ritesh Ojha
Place - Delhi, India
Contact - aryanojha10@gmail.com