सर्वदमन
शकुन्तला का अभी तक कुछ पता नहीं चला था। पर अब से राजा अधिक बार बाहर जाने लगे। वे हर बार अलग-अलग दिशा में जाते। वे अनेक आश्रमों में भी गये लेकिन उन्हें अपनी प्रिय पत्नी का कोई समाचार नहीं मिला। एक दिन दुष्यन्त ने सारथि को हिमालय पर्वत पर चलने को कहा। सारथि उन्हें बहुत ऊंचाई तक ले गया। वहां कुछ दूर पर उन्हें कई मकान दिखाई दिये। पास पहुंचने पर पता चला कि वहां एक बहुत बड़ा आश्रम है। राजा ने सारथि को रुकने के लिए कहा।
पूछताछ करने पर पता चला कि उस स्थान का नाम हेमकूट है और यहां विश्व प्रसिद्ध महर्षि मारीच रहते हैं।
दुष्यन्त रथ में से उतरे और महर्षि को प्रणाम करने के लिए चल पड़े। वहां उन्होंने दो तपस्वी कन्यायें देखीं। उनके साथ एक सुन्दर बालक था । वह एक शेर के बच्चे से छेड़छाड़ कर रहा था। तपस्विनियां उससे बार-बार कह रही थीं कि वह शेर के बच्चे को छोड़ दे। लेकिन बालक उनकी बात पर ध्यान ही नहीं दे रहा था।
“वाह, क्या बालक है ! कितना साहसी !” राजा मन ही मन बालक की प्रशंसा कर रहे थे।
बालक बरबस शेर के बच्चे का मुँह खोलने की कोशिश कर रहा था। “अपना मुँह खोलो और मुझे दांत गिनने दो," वह शेर के बच्चे से बोला।
"तुम बहुत शैतान हो,” एक तपस्विनी ने कहा। “बेचारे जानवर को इस तरह परेशान मत करो। तुम्हारा नाम सर्वदमन ठीक ही रखा गया है क्योंकि तुम हर एक को दबाना और तंग करना चाहते हो।"
राजा बालक को दिलचस्पी से देखते रहे। उनके दिल में बालक के लिए प्रेम उमड़ रहा था। दूसरी तपस्विनी ने सर्वदमन को समझाने की कोशिश की। “शेर के बच्चे को छोड़ दो नहीं तो इसकी मां तुम पर हमला कर देगी। ज़रा सोचो तो। एक बड़ी शेरनी आकर तुम पर हमला कर दे तो।"
"मैं उसकी मां से नहीं डरता, वह तो केवल शेरनी है," बालक बोला।
"यदि तुम शेर के बच्चे को छोड़ दोगे तो मैं तुम्हें एक नया खिलौना दूंगी|” एक तपस्विनी बोली।
"पहले दो,” बालक शेर के बच्चे से चिपकता हुआ बोला।
बालक राजकुमार जैसा लगता है, राजा सोचने लगे।
"जो नया खिलौना तुमने देने का वायदा किया था वह कहां है ?" सर्वदमन ने पूछा।
"मैं अभी लाती हूँ ," वह तपस्विनी यह कहकर वहां से चली गई।
दूसरी तपस्विनी के बहुत मनाने पर भी सर्वदमन शेर के बच्चे के साथ खेलता ही रहा। "कोई यहां है ?" वह चिल्लाई, “यह बच्चा मेरे काबू में नहीं आ रहा । जरा यहां आकर इस सम्भालने में मेरी मदद करो।"
ये शब्द सुनकर राजा दुष्यन्त जल्दी से उसकी सहायता के लिए आ गये।
"अच्छा, प्यारे बालक,” वह बच्चे की ओर देखकर बोले, “क्या तुम नहीं जानते कि तपस्वियों के बालक छोटे-छोटे पशुओं को परेशान नहीं करते ? वे पशु पक्षियों पर दया करते हैं।"
"श्रीमान,” तपस्विनी बोली, “सर्वदमन तपस्वी का पुत्र नहीं है।"