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अजीबोगरीब बुढा

यह कह कर उसने राजा से छुट्टी ले ली। दूसरे दिन धीरसेन पीठ पर ढाल बाँध कर, कमर से तलवार लटका कर घोड़े पर सवार हुआ। उसने घोड़े को ऐंड लगाई और सरपट दौड़ाने लगा।  इस तरह घोड़े पर सवार होकर जाते जाते धीरसेन अनेकों जंगल-पहाड़, नदी-नाले पार करता चला। राह में उसने अनेकों कष्ट उठाए। यो वह बहुत दूर निकल गया। लेकिन कहीं उसे राक्षस का पता न चला।

 

कुछ ही दिनों में धीरसेन को एक बहुत बड़ा रेगिस्तान दिखाई पड़ा। जहाँ तक नज़र जाती थी बालू ही बालू दीख पड़ती थी। वहाँ आदमी और जन्तुओं का नामोनिशान भी न था । अब धीरसेन को शक हुआ कि वह राह भूल गया है। घोड़े पर से उतर कर वह वहीं एक जगह बैठ गया और सोचने लगा कि अब क्या किया जाए? बेचारा इसी सोच में था कि इतने में किसी ने पीछे से उसकी पीठ पर थपकी दी। धीरसेन चौंक पड़ा। उसने सोचा कि वह कोई राक्षस है। इसलिए झट से तलवार निकाल ली।

 

लेकिन वह तो एक बूढ़ा था। उसने कहा-

 

'बेटा ! तुम कौन हो? इधर कहाँ जा रहे हो? यह जगह ख़तरनाक है जिस पर तुम अकेले जा रहे हो? शायद तुम राह भूल कर इधर आ निकले हो। मेरी बात मान कर अब भी तुम लौट जाओ! नहीं तो बहुत कष्ट उठाओगे।

 

तब धीरसेन ने अपना सारा हाल कह सुनाया। उस बूढ़े ने कहा-

 

'ओ पगले! उस राक्षस को तुम्हारे जैसे छोकरे नहीं मार सकते । उससे बड़े बड़े शूरवीर हार मान कर लौट गए हैं। फिर तुम्हारी हस्ती क्या है ! क्यों नाहक अपनी जान गँवाते हो? मेरी बात मान लो और अभी घर लौट जाओ।

 

मगर धीरसेन ऐसे मानने वाला नहीं था।

 

'यह नहीं हो सकता। मैंने अपने मामू से वादा किया है कि मैं यह काम पूरा किए बिना घर नहीं लौटूंगा। चाहे जान रहे या जाए! हमारे वंश के लोग अपना वादा कभी नहीं तोड़ते। उस राक्षस को मारे बिना मैं घर नहीं लौटूंगा।' उसने जवाब दिया।

उस राजकुमार की साहस भरी बातें सुन कर उस बूढ़े को बड़ा अचरज हुआ। उसे दुष्टपाल पर गुस्सा आया कि उसने इस नौजवान को ऐसे खतरनाक काम पर क्यों भेज दिया ? जरूर उसने इस बेचारे को खतम करने की नीयत से ही यहाँ भेजा है।

 

इसलिए कोई ऐसा उपाय करना चाहिए जिससे उस दुष्ट की अक्ल ठिकाने आ जाए। बूढ़े ने यों सोच कर धीरसेन से कहा-

 

'बेटा ! तुम बहुत कठिन काम पर जा रहे हो। इसमें मैं भी तुम्हारी मदद करूँगा। लेकिन पहले मुझे यह तो बताओ कि तुम्हारे पास कौन कौन से हथियार हैं?'

 

'मैं यह ढाल-तलवार लाया हूँ।' यह कह कर धीरसेन ने वे दोनों चीजें बूढ़े को दिखाई।

 

उन्हें देख कर बूढ़ा खिलखिला कर कहने लगा-

 

'वाह! वाह ! कैसे हथियार लाए हो! मालूम होता है कि बाबा आदम के जमाने के हैं। क्या इन्हीं के सहारे तुम राक्षस को मारने चले हो?" यह सुन कर धीरसेन ने अपना मुँह लटका लिया।

 

तब बूढ़े ने कहा-

 

'अच्छा, तुम फिक्र न करो। यहाँ से चलने के पहले ढाल को अच्छी तरह माँज कर चमका लो। उसको इस तरह माँजो कि आइने की तरह तुम को अपना मुँह उसमें दिखाई पड़े।'

 

धीरसेन ने अपनी ढाल-तलवार को ऐसा माँजा कि वे शीशे की तरह चमकने लगीं। यह देख कर वह बूढ़ा बहुत खुश हुआ। उसने धीरसेन की पीठ ठोंक कर कहा-

 

'हाँ, तुम काम तो खूब मन लगा कर करते हो।'

 

इसके बाद वे दोनों वहाँ से चले। आगे आगे बूढ़ा चला और उसके पीछे घोड़े पर सवार धीरसेन चलने लगा। पर चलते चलते बूढ़ा एकाएक गायब हो गया। यह देख कर धीरसेन घबरा गया। उसने चारों ओर देखा। लेकिन बूढ़े का कहीं पता न था। इतने में सौ गज की दूरी पर बूढ़ा हवा में उड़ता दिखाई दिया।

 

'यह कैसा अचरज है? मेरे साथ आते आते यह बूढ़ा पछी की तरह उड़ने कैसे लग गया ?'

 

यह सोच कर धीरसेन ने ध्यान से बूढ़े की तरफ देखा। उसे मालूम हुआ कि बूढ़े के जूतों में पंख लगे हैं।

 

उसने मन में कहा- ‘बात यह है ?'

 

अब उसने अपने घोड़े को जोर से दौड़ाना शुरू किया। लेकिन बहुत कोशिश करने पर भी वह बूढ़े के पास नहीं पहुँच सका।  यों हवा में उड़ते उड़ते बूढ़े ने पीछे फिर कर देखा और मजाक उड़ाते हुए कहा—

 

'क्यों भाई ! तुम तो घोड़े पर सवार हो। फिर पिछड़ क्यों गए ! क्या यही है तुम्हारी वीरता?'

 

बूढ़े ने सोचा था कि उसकी करामात का रहस्य धीरसेन को बिलकुल नहीं मालूम है। अगर मैं भी तुम्हारी तरह पंख वाले जूते पहन लूँ तो फिर घोड़े की जरूरत नहीं होगी। तब देखना, कौन पिछड़ता है ?' धीरसेन ने जवाब दिया।

 

ओहो, तो तुम पर मेरा रहस्य खुल गया ? तुम्हारी बुद्धि तो बड़ी तेज है। लेकिन मैं जूते कहाँ से लाऊँ ? इसलिए लो, मेरी छड़ी पकड़ लो ! तब तुम भी मेरी तरह हवा में उड़ने लगोगे।' यह कह कर बूढ़े ने अपनी छड़ी नीचे फेंक दी।

 

वह छड़ी हाथ में लेते ही धीरसेन भी हवा में उड़ने लगा। उड़ते उड़ते उसने बूढ़े से पूछा-

‘अब तुम मुझे उस राक्षस का हाल बताओ न!'  

 

तब बूढ़े ने यों कहना शुरू किया-

 

'वह कोई मामूली राक्षस नहीं है। उसका सारा बदन लोहे का बना हुआ है। उसे किसी अस्त्र से नहीं छेदा जा सकता। उस राक्षस की डाढ़ें बड़ी डरावनी हैं। उसके तीन सिर हैं। लेकिन सिर पर बालों की जगह अनगिनत जिन्दा साँप फुफकारते रहते हैं। उसके सुनहरे चमकीले पंख भी हैं। उनकी सहायता से वह आसमान में उड़ सकता है। लेकिन सबसे अचरज की बात तो यह है कि जो उस राक्षस की ओर देखता है वह पत्थर बन जाता है। इसलिए उस राक्षस के पास पहुँचना ही बहुत मुश्किल है। अगर तुम वहाँ पहुँच गए तो भी तुम्हें आँख मूंद कर उसकी ओर देखे बिना ही उसे मार डालना होगा। बोलो, क्या तुम यह काम कर सकते हो? अगर नहीं कर सकते हो तो तुम अब भी घर लौट सकते हो। कोई हर्ज नहीं है।'

 

यह सुन कर धीरसेन ने कहा-

 

'मैंने पहले ही कह दिया है कि मैं कायर नहीं हैं। अब वापस लौटना असम्भव है। चाहे इस कोशिश में मेरी जान ही क्यों न चली जाए!'

 

‘तब तो हमें पहले तीन अन्धों के पास जाना होगा। वे ही बता सकते हैं कि राक्षस को मारने का आसान तरीका क्या है?' बूढ़े ने कहा।

 

'ये तीन अन्धे कौन हैं? वे कहाँ रहते हैं?' धीरसेन ने बड़ी उतावली से पूछा।