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अदृश्य भाँजी

बूढा आसमान में उड़ रहा था और उसकी बगल में अदृश्य रूप से धीरसेन भी। देखने वाले को धीरसेन के मुकुट के सिवा और कुछ नहीं दिखाई देता। उसी समय धीरसेन के अलावा एक और मुकुट भी हवा में उड़ रहा था। वह उस बूढ़े की भाँजी का था। बूढ़ा जहाँ जहाँ जाता, वह भी अदृश्य रूप से उसका पीछा करती। जब से धीरसेन की उस बूढ़े से मुलाकात हुई थी तब से वह उन दोनों के पीछे पीछे आ रही थी।

लेकिन धीरसेन यह बात न जानता था। लेकिन एक बार बूढ़े की भाँजी उनके बहुत ही नजदीक आ गई। उसके मुकुट में पंख लगे थे। धीरसेन ने उन पंखों के फड़फड़ाने की आवाज सुन ली। उसने बूढ़े से पूछा-

'यह आवाज कैसी है?" तब बूढ़े ने जवाब दिया-

'वह आवाज पंखों के फड़फड़ाने की है। मेरी एक भाँजी है। वह भी तुम्हारी ही तरह एक जादू का मुकुट पहन कर हमारा पीछा कर रही है। उसके मुकुट में पंख लगे हैं। देखो न सर उठा कर! वह ठीक हमारे सिर पर उड़ती आ रही है।' बूढ़े ने ऊपर की ओर इशारा किया।

धीरसेन ने सर उठा कर देखा। बूढ़े के कथनानुसार एक जादू का मुकुट पंख फड़फड़ाते हुए ठीक उनके सिर पर उड़ रहा था। इस तरह कुछ दूर तक जाने के बाद बूढ़े ने धीरसेन को रोक कर कहा

‘बच्चे ! अब हम राक्षस के नजदीक आ गए हैं। अब तुम्हें बड़ी सवाधानी से काम लेना है। कहीं तुम्हारी नजर उस राक्षस पर पड़ गई तो तुम तुरंत पत्थर बन जाओगे और हमारा किया कराया सब मिट्टी में मिल जाएगा। इसलिए सावधान रहो!' बूढ़े ने उसे चेताया।

 

'अच्छा ! मैं उसकी ओर नहीं देखुंगा। लेकिन क्या तुम्हें आँखें नहीं मूंदनी पड़ेंगी?' धीरसेन ने पूछा।

‘हम उसके तो नजदीक नहीं जाएँगे। इसलिए हमारी आँखें मूंदने की जरूरत नहीं। सारा काम तो करना तुम्हें है। इसीलिए मैंने तुम्हें अपनी ढाल माँज कर साफ कर लाने को कहा था। तुम एक आइने की तरह राक्षस को देखने के लिए उसका इस्तेमाल करो!' बूढ़े ने कहा।

 

धीरसेन ने सिर हिला दिया। उस समय वे एक समुंदर के ऊपर उड़ रहे थे। बूढ़े को वहाँ से थोड़ी ही दूर पर समुंदर के किनारे राक्षस के खुर्राटे लेने की आवाज सुनाई दी। साथ साथ उसके सिर पर साँपों के फुफकारने की आवाज भी सुनाई देती थी।

 

'लो! देखो, वह समुंदर के किनारे सो रहा है। अब तुम्हें उसे मारना है। तुम अपनी ढाल में उसकी परछाई देख सकते हो। लेकिन वह मुकुट के प्रभाव से तुम्हें नहीं देख सकता। तुम बड़ी सावधानी  से ढाल में उसे देखते हुए धीरे धीरे उसके पास जाओ। मैंने जो तलवार तुम्हारी कमर में बाँध दी है उसे निकाल कर एक ही वार में उसके तीनों सिर काट डालो। फिर उन्हें इस जादू की थैली में डाल कर, बाँध लो और जल्दी से ले आओ!'

 

यह कह कर बूढ़े ने जादू की थैली धीरसेन को दे दी।

 

'अरे! यह क्या ? इसी थैली ने तो हमें खाने-पीने की चीजें दी थीं। इसमें वे खून से सने सिर रख कर इसे क्यों खराब कर दें? तिस पर वे तीनों सिर इसमें कैसे समाएँगे?' धीरसेन ने पूछा।

 

'देखो! अब बहस करने का समय नहीं रहा। देर करोगे तो सारा मामला बिगड़ जाएगा। वह एक बार जग गया तो फिर एक साल तक सोने का नाम न लेगा। जाओ, जल्दी जाओ!' बूढ़े ने जल्दी की।

 

धीरसेन सीधे समुंदर के किनारे गया। वह राक्षस के सिर पर मँडराते हुए मौके की ताक में रहा। नीचे राक्षस गाढ़ी नींद में था। लेकिन उसके सिर पर के साँप भयङ्कर फुफकार मार रहे थे। धीरसेन यह सब अपनी ढाल के जरिए देख रहा था।

 

थोड़ी दूर पर आसमान में उड़ता हुआ बूढ़ा भी धीरसेन की हरेक चाल ताक रहा था। उसे देर करते देख कर बूढ़े ने चिल्ला कर कहा

 

'देखते क्या हो? टूट पड़ो न उस पर ?'

 

उसकी चिल्लाहट सुन कर धीरसेन ने तलवार निकाल कर पलक मारते ऐसा वार किया कि राक्षस के तीनों सिर धड़ से एक दम जुदा हो गए। तब उसने थैली निकाली और राक्षस के तीनों सिर उसमें रखे। थैली थी तो बहुत ही छोटी। लेकिन राक्षस के सिर ज्यों ही उसमें पड़े वह बड़ी हो गई।  यह देख कर धीरसेन के अचरज का ठिकाना न रहा।

 

आखिर उसने तीनों सिर उसमें रख कर हिफाजत के साथ थैली का मुँह बाँध दिया। लेकिन अंदर से अब भी साँपों के फुफकारने की आवाज सुनाई दे रही थी। धीरसेन जब वह थैली लेकर बूढ़े के पास पहुँचा तो उसने कहा-

 

'राक्षस के सिर कटने के बाद भी छ: महीने तक जिंदा रहते हैं। इसलिए छः महीने तक किसी भी हालत में यह थैली नहीं खोलनी चाहिए।'

 

इसके बाद धीरसेन, बूढ़ा और उसकी भाँजी दो तीन दिन में अपने देश पहुँच गए।