Get it on Google Play
Download on the App Store

बारहवां भाग : बयान - 9

दिन पहर भर से ज्यादा चढ़ चुका है। रोहतासगढ़ के महल में एक कोठरी के अन्दर जिसके दरवाजे में लोहे के सींखचे लगे हुए हैं मायारानी सिर नीचा किये हुए गर्म-गर्म आंसुओं की बूंदों से अपने चेहरे की कालिख धोने का उद्योग कर रही है, मगर उसे इस काम में सफलता नहीं होती। दरवाजे के बाहर सोने की पीढ़ियों पर, जिन्हें बहुत-सी लौंडियां घेरे हुई हैं कमलिनी, किशोरी, कामिनी, लाडिली, लक्ष्मीदेवी और कमला बैठी हुई मायारानी पर बातों के अमोघ बाण चला रही हैं।

किशोरी - (कमलिनी से) तुम्हारी बहिन मायारानी है बड़ी खूबसूरत!

कमला - केवल खूबसूरत ही नहीं, भोली और शर्मीली भी हद से ज्यादा है। देखिये, सिर ही नहीं उठाती, बात करना तो दूसरी बात है।

कामिनी - इन्हीं गुणों ने तो राजा गोपालसिंह को लुभा लिया था।

कमलिनी - मगर मुझे इस बात का बहुत रंज है कि ऐसी नेक बहिन की सोहबत में ज्यादा दिन तक रह न सकी।

किशोरी - जो हो मगर एक छोटी-सी भूल तो मायारानी से भी हो गई।

कामिनी - वह क्या?

कमलिनी - यही कि राजा गोपालसिंह को इन्होंने कोठरी में बन्द करके कैदियों की तरह रख छोड़ा था।

किशोरी - इसका कोई न कोई सबब तो जरूर ही होगा। मैंने सुना है कि राजा गोपालसिंह इधर-उधर आंखें बहुत लड़ाया करते थे, यहां तक कि धनपत नामी एक वेश्या को अपने घर में डाल रक्खा था। (मायारानी से) क्यों बीबी, यह बात सच है?

लक्ष्मीदेवी - ये तो बोलती ही नहीं, मालूम होता है हम लोगों से कुछ खफा हैं।

कमला - हम लोगों ने इनका क्या बिगाड़ा है जो हम लोगों से खफा होंगी, हां अगर तुमसे रंज हों तो कोई ताज्जुब की बात नहीं, क्योंकि तुम मुद्दत तक तो तारा के भेष में रहीं और आज लक्ष्मीदेवी बनकर इनका राज्य छीनना चाहती हो। बीबी, चाहे जो हो, मैं तो महाराज से इन्हीं की सिफारिश करूंगी तुम चाहे भला मानो चाहे बुरा।

कामिनी - तुम भले ही सिफारिश कर लो मगर राजा गोपालसिंह के दिल को कौन समझावेगा

कमला - उन्हें भी मैं समझा लूंगी कि आदमी से भूल-चूक हुआ ही करती हैं, ऐसे छोटे-छोटे कसूरों पर ध्यान देना भले आदमियों का काम नहीं है, देखो बेचारी ने कैसी नेकनामी के साथ उनका राज्य इतने दिनों तक चलाया।

किशोरी - गोपालसिंह तो बेचारे भोले-भाले आदमी ठहरे, उन्हें जो कुछ समझा दोगी, समझ जायेंगे, मगर ये तारारानी मानें तब तो! ये जो हकनाहक लक्ष्मीदेवी बनकर बीच में कूदी पड़ती हैं और इस बेचारी भोली औरत पर जरा रहम नहीं खातीं!

लक्ष्मीदेवी - अच्छा रानी, लो मैं वादा करती हूं कि कुछ न बोलूंगी बल्कि धनपत को छुड़वाने का भी उद्योग करूंगी, क्योंकि मुझे इस बेचारी पर दया आती है।

कमला - हां देखो तो सही, राजा गोपालसिंह की जुदाई में कैसा बिलख-बिलखकर रो रही है, कम्बख्त मक्खियां भी ऐसे समय में इसके साथ दुश्मनी कर रही हैं। किसी से कहो नारियल का चंवर लाकर इसकी मक्खियां तो झले।

किशोरी - इस काम के लिए तो भूतनाथ को बुलाना चाहिए।

कमला - इस बारे में तो मैं खुद शर्माती हूं।

इतना सुनते ही सब की सब मुस्कुरा पड़ीं और कमलिनी तथा लक्ष्मीदेवी ने मुहब्बत की निगाह से कमला को देखा।

लक्ष्मीदेवी - मेरा दिल यह गवाही देता है कि भूतनाथ का मुकद्दमा एकदम से पलट जायगा।

कमलिनी - ईश्वर करे ऐसा ही हो, मैं तो चाहती हूं कि मायारानी का मुकद्दमा भी एकदम से औंधा हो जाय और तारा बहिन तारा की तारा ही बनी रह जायं।

ये सब बड़ी देर तक बैठी हुई मायारानी के जख्मों पर नमक छिड़कती रहीं और न मालूम कितनी देर तक बैठी रहतीं अगर इनके कानों में यह खुशखबरी न पहुंचती कि राजा वीरेन्द्रसिंह की सवारी इस किले में दाखिल हुआ ही चाहती है।

चंद्रकांता संतति - खंड 3

देवकीनन्दन खत्री
Chapters
नौवां भाग : बयान - 1 नौवां भाग : बयान - 2 नौवां भाग : बयान - 3 नौवां भाग : बयान - 4 नौवां भाग : बयान - 5 नौवां भाग : बयान - 6 नौवां भाग : बयान - 7 नौवां भाग : बयान - 8 नौवां भाग : बयान - 9 नौवां भाग : बयान - 10 नौवां भाग : बयान - 11 नौवां भाग : बयान - 12 नौवां भाग : बयान - 13 दसवां भाग : बयान - 1 दसवां भाग : बयान - 2 दसवां भाग : बयान - 3 दसवां भाग : बयान - 4 दसवां भाग : बयान - 5 दसवां भाग : बयान - 6 दसवां भाग : बयान - 7 दसवां भाग : बयान - 8 दसवां भाग : बयान - 10 ग्यारहवां भाग : बयान - 1 ग्यारहवां भाग : बयान - 2 ग्यारहवां भाग : बयान - 3 ग्यारहवां भाग : बयान - 4 ग्यारहवां भाग : बयान - 5 ग्यारहवां भाग : बयान - 6 ग्यारहवां भाग : बयान - 7 ग्यारहवां भाग : बयान - 8 ग्यारहवां भाग : बयान - 9 ग्यारहवां भाग : बयान - 10 बारहवां भाग : बयान - 1 बारहवां भाग : बयान - 2 बारहवां भाग : बयान - 3 बारहवां भाग : बयान - 4 बारहवां भाग : बयान - 5 बारहवां भाग : बयान - 6 बारहवां भाग : बयान - 7 बारहवां भाग : बयान - 8 बारहवां भाग : बयान - 9 बारहवां भाग : बयान - 10