शंकराची आरती - कुलदैवत तूं मेरी सेवक मै ...
कुलदैवत तूं मेरी सेवक मै तेरो ।
सुरनर सेवा करले पायो सुख सारो ॥
दुज्यों पाव तुमारों तनमनधन वारों ।
तुम बिन जाणु न दुज्यों मोकूं तुम भ्यारो ॥ १ ॥
जयजयाजी महादेव प्रभूजी देवनको ।
पंचारती करहों ॥ मैं दास पदरजको ॥ धृ. ॥
उदधिमथनबिखे जब बिख जालन लागो ।
सुरनर ब्रह्मा विष्णू तब सब ले भागो ॥
शरणागतहो तुमपे रच बोलन लागो ।
तवकृपासे गलबिख दूरदे ससि भागॊ ॥ जय. ॥ २ ॥
त्रिपारसुर मारनथे रथ धरती कीन्हो ।
शशिसूरज दो चक्कर घोडे बेद बनो ॥
ब्रह्मा सारथी विष्णू अच्छो शरमान्यो ॥
विधिजाल त्रिपुरन सो करित सब जानो ॥ जय. ॥ ३ ॥
सुख पाई सब सृष्टी आई पूजनकू।
धुप दिप भोग लगाये ठाडे आरतीकूं ।
बेल फूल कमल चढाये रिझायें हर तुमकूं ॥
मनवांछा सुख पायके आये निजपदकूं ॥ जय. ॥ ४ ॥
ऎसे तुम महाराज दयाल दीननके ।
पांचो निरांजन वारो देहनके ॥
बलजाऊं चरनोपर कंथज गिरिजाके ।
दास सदाशिव निश्चळ नाथ रहो तुम वाके ॥ जय. ॥ ५ ॥
सुरनर सेवा करले पायो सुख सारो ॥
दुज्यों पाव तुमारों तनमनधन वारों ।
तुम बिन जाणु न दुज्यों मोकूं तुम भ्यारो ॥ १ ॥
जयजयाजी महादेव प्रभूजी देवनको ।
पंचारती करहों ॥ मैं दास पदरजको ॥ धृ. ॥
उदधिमथनबिखे जब बिख जालन लागो ।
सुरनर ब्रह्मा विष्णू तब सब ले भागो ॥
शरणागतहो तुमपे रच बोलन लागो ।
तवकृपासे गलबिख दूरदे ससि भागॊ ॥ जय. ॥ २ ॥
त्रिपारसुर मारनथे रथ धरती कीन्हो ।
शशिसूरज दो चक्कर घोडे बेद बनो ॥
ब्रह्मा सारथी विष्णू अच्छो शरमान्यो ॥
विधिजाल त्रिपुरन सो करित सब जानो ॥ जय. ॥ ३ ॥
सुख पाई सब सृष्टी आई पूजनकू।
धुप दिप भोग लगाये ठाडे आरतीकूं ।
बेल फूल कमल चढाये रिझायें हर तुमकूं ॥
मनवांछा सुख पायके आये निजपदकूं ॥ जय. ॥ ४ ॥
ऎसे तुम महाराज दयाल दीननके ।
पांचो निरांजन वारो देहनके ॥
बलजाऊं चरनोपर कंथज गिरिजाके ।
दास सदाशिव निश्चळ नाथ रहो तुम वाके ॥ जय. ॥ ५ ॥