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भाग 34

 


नानक इस बात को सोच रहा था कि मैं पहले किस पर वार करूं अगर पहले शांता पर वार करूंगा तो आहट पाकर भूतनाथ जाग जाएगा और मुझे गिरफ्तार कर लेगा क्योंकि मैं अकेला किसी तरह उसका मुकाबला नहीं कर सकता। अतएव पहले भूतनाथ ही का काम तमाम करना चाहिए। अगर इसकी आहट पाकर शांता जाग भी जायगी तो कोई चिंता नहीं, मैं उसे सांस लेने की भी मोहलत न दूंगा। वह औरत जात मेरे मुकाबिले में क्या कर सकती है। मगर ऐसा करने के लिए यह जानने की जरूरत है कि इन दोनों में शांता कौन है और भूतनाथ कौन?
थोड़ी ही देर के अंदर ऐसी बहुत-सी बातें नानक के दिमाग में दौड़ गर्ईं और उन दोनों में भूतनाथ कौन है इसका पता न लगा सकने के कारण लाचार होकर उसने एक निश्चय किया कि इन दोनों ही को बेहोश करके यहां से ले चलना चाहिए। ऐसा करने से मेरी मां बहुत ही प्रसन्न होगी।
नानक ने अपने बटुए में से बहुत ही तेज बेहोशी की दवा निकाली और उन दोनों के मुंह पर चादर के ऊपर ही छिड़ककर उनके बेहोश होने की इंतजार करने लगा।
थोड़ी ही देर में उन दोनों ने हाथ-पैर हिलाये जिससे नानक समझ गया कि अब इन पर बेहोशी का असर हो गया, अस्तु उसने दोनों के ऊपर से चादर हटा दी और तभी देखा कि इन दोनों में भूतनाथ नहीं है बल्कि ये दोनों औरतें ही हैं जिनमें एक भूतनाथ की औरत शांता है उस दूसरी औरत को नानक पहचानता न था।
नानक ने फिर एक दफे बेहोशी की दवा सुंघाकर शांता को अच्छी तरह बेहोश किया और चारपाई पर से उठाकर बहुत हिफाजत और होशियारी के साथ खेमे के बाहर निकाल लाया जहां उसने अपने एक साथी को मौजूद पाया। दोनों ने मिलकर उसकी गठरी बांधी और फुर्ती से लश्कर के बाहर निकाल ले गये।
शांता को पा जाने से नानक बहुत ही खुश था और सोचता था कि इसे पाकर मेरी मां बहुत ही प्रसन्न होगी और हद से ज्यादे मेरी तारीफ करेगी, मैं इसे सीधे अपने घर ले जाऊंगा और जब दूसरी दफे लौटूंगा तो भूतनाथ पर कब्जा करूंगा। इसी तरह धीरे-धीरे अपने सब दुश्मनों को जहन्नुम में मिला डालूंगा।
कोस भर निकल जाने के बाद नानक एक संकेत पर पहुंचा तो उसके और साथियों से भी मुलाकात हुई जो कसे-कसाये कई घोड़ों के साथ उसका इंतजार कर रहे थे।
एक घोड़े पर सवार होने के बाद नानक ने शांता को अपने आगे रख लिया, उसके साथी लोग भी घोड़ों पर सवार हुए, और सभों ने पूरब का रास्ता लिया।
दूसरे दिन संध्या के समय नानक अपने घर पहुंचा। रास्ते में उसने और उसके साथियों ने कई दफे भोजन किया मगर शांता की कुछ भी खबर न ली बल्कि जब इस बात का खयाल हुआ कि अब उसकी बेहोशी उतरा चाहती है तब पुनः दवा सुंघाकर उसकी बेहोशी मजबूत कर दी गई।
नानक को देखकर उसकी मां बहुत प्रसन्न हुई और जब उसे यह मालूम हुआ कि उसका सपूत शांता को गिरफ्तार कर लाया है तब तो उसकी खुशी का कोई ठिकाना ही न रहा। उसने नानक की बहुत ही आवभगत की और बहुत तारीफ करने के बाद बोली, “इससे बदला लेने में अब क्षणभर की भी देर न करनी चाहिए, इसे तुरंत खंभे के साथ बांधकर होश में ले आओ और पहले जूतियों से खूब अच्छी तरह खबर लो फिर जो कुछ होगा देखा जायगा। मगर इसके मुंह में खूब अच्छी तरह कपड़ा ठूंस दो जिससे कुछ बोल न सके और हम लोगों को गालियां न दे।”
नानक को भी यह बात पसंद आई और उसने ऐसा ही किया। शांता के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया गया और वह दालान में एक खंभे के साथ बांधकर होश में लाई गई। होश आते ही अपने को ऐसी अवस्था में देखकर वह बहुत ही घबड़ाई और जब उद्योग करने पर भी कुछ बोल न सकी तो आंखों से आंसू की धारा बहाने लगी।
नानक ने उसकी दशा पर कुछ भी ध्यान न दिया। अपनी मां की आज्ञा पाकर उसने शांता को जूते से मारना शुरू किया और यहां तक मारा कि अंत में वह बेहोश होकर झुक गई। उस समय नानक की मां कागज का एक लपेटा हुआ पुर्जा नानक के आगे फेंककर यह कहती हुई घर के बाहर निकल गई कि “इसे अच्छी तरह पढ़ तब तक मैं आती हूं।”
उसकी कार्रवाई ने नानक को ताज्जुब में डाल दिया। उसने जमीन पर से पुर्जा उठा लिया और चिराग के सामने ले जाकर पढ़ा, यह लिखा हुआ था –
“भूतनाथ के साथ ऐयारी करना या उसका मुकाबला करना नानक जैसे नौसिखे लौंडों का काम नहीं है। तैं समझता होगा कि मैंने शांता को गिरफ्तार कर लिया, मगर खूब समझ रख कि वह कभी तेरे पंजे में नहीं आ सकती। जिस औरत को तू जूतियों से मार रहा है वह शांता नहीं है, पानी से इसका चेहरा धो डाल और भूतनाथ की कारीगरी का तमाशा देख! अब अगर अपनी जान तुझे प्यारी है तो खबरदार, भूतनाथ का पीछा कभी न कीजियो।”
पुर्जा पढ़ते ही नानक के होश उड़ गये। झटपट पानी का लोटा उठा लिया और मुंह में ठूंसा हुआ लत्ता निकालकर शांता का चेहरा धोने लगा, तब तक वह भी होश में आ गई। चेहरा साफ होने पर नानक ने देखा कि वह तो उसकी असली मां, रामदेई है। उसने होश में आते ही नानक से कहा, “क्यों बेटा, तुमने मेरे ही साथ ऐसा सलूक किया!”
नानक के ताज्जुब की कोई हद न रही। वह घबड़ाहट के साथ अपनी मां का मुंह देखने लगा और ऐसा परेशान हुआ कि आधी घड़ी तक उसमें कुछ बोलने की शक्ति न रही, इस बीच में रामदेई ने उसे तरह-तरह की बेतुकी बातें सुनाईं जिन्हें वह सिर नीचा किए हुए चुपचाप सुनता रहा। जब उसकी तबीयत कुछ ठिकाने हुई तब उसने सोचा कि पहले उस रामदेई को पकड़ना चाहिए जो मेरे सामने चिट्ठी फेंककर मकान के बाहर निकल गई है, परंतु यह उसकी सामर्थ्य के बाहर था क्योंकि उसे घर से बाहर गए हुए देर हो चुकी थी, अस्तु उसने सोचा कि अब वह किसी तरह नहीं पकड़ी जा सकती।
नानक ने अपनी मां के हाथ-पैर खोल डाले और कहा, “मेरी समझ में कुछ नहीं आता कि यह क्या हुआ, तुम वहां कैसे जा पहुंचीं, और तुम्हारी शक्त में यहां रहने वाली कौन थी या क्योंकर आई!!”
रामदेई - मैं इसका जवाब कुछ भी नहीं दे सकती और न मुझे कुछ मालूम ही है। मैं तुम्हारे चले जाने के बाद इसी घर में थी, इसी घर में बेहोश हुई और होश आने पर अपने को इसी घर में देखती हूं अब तुम्हीं बयान करो कि क्या हुआ और तुमने मेरे साथ ऐसा सलूक क्यों किया?
नानक ने ताज्जुब के साथ अपना किस्सा पूरा-पूरा बयान किया और अंत में कहा, “अब तुम ही बताओ कि मैंने इसमें क्या भूल की?'