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मयमतम् - अध्याय १


 
संग्रहाध्याय
मङ्गलाचरण
सर्वस्व के ज्ञाता, संसार के स्वामी देवता को सिर झुका कर प्रणाम करने के पश्चात् मैं (मय) ने उनसे (वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित) प्रश्न किया एवं उनसे पर्याप्त शास्त्र-श्रवण करने के पश्चात् क्रमानुसार उस शास्त्र का उपदेश करता हूँ ॥१॥ देवों एवं मनुष्यों के सभी प्रकार के वास्तु आदि (भूमि, भवन एवं उपस्कर आदि) के विद्वान स्थपति मय मुनि सुख प्रदान करने वाले सभी प्रकार के वास्तु के लक्षण का उपदेश करते हैं ॥२॥
ग्रन्थविषयसूचना
वास्तुकार्य के प्रारम्भिक चरण में प्रथमतः ध्यातव्य तथ्य है - सर्वप्रथम भूमि एवं भवन के प्रकार (भेदों) का ज्ञान, तत्पश्चात् भूमि के गूण-दोषों की परीक्षा । उपयुक्त भूमि के चयन के पश्चात् उसका मापन एवं इसके पश्चात् भूमि में शङ्कु की स्थापना की जाती है ॥३॥ इसके पश्चात भूमि में वास्तुपद का विन्यास किया जाता है एवं पदोंमें वास्तुदेवों की स्थापना की जाती है । वास्तुदेवों का बलिकर्म विधि (किस देवता की पूजा किस सामग्री से की जाय, यही बलिकर्म विधि है) से पूजन किया जाता है । तत्पश्चात् नगर आदि में विविध प्रकार के ग्रामों का लक्षण एवं उनके विन्यास का वर्णन किया गया है (इसी भाँति नगर-योजना पर भी विचार किया गया है) ॥४॥इसके पश्चात इस ग्रन्थ में भूलम्ब (गृह के तल), गर्भ-विन्यास, उपपीठ एवं गृह के अधिष्ठान के लक्षणों का वर्णन किया गया है ॥५॥भवननिर्माण के प्रसङ्ग में स्तम्भों का लक्षण, गृह की प्रस्तारविधि, भवन के विभिन्न अङ्गों की आपस में सन्धिं एवं भवन के शिखरों के लक्षण वर्णित है ॥६॥भवन के तलों के प्रसङ्ग में (विशेषतः मन्दिरनिर्माण में) एक तल का विधान. दूसरे तल का विधान, तीसरे तल का विधान एवं चतुर्थ तल आदि का विधान लक्षणों-सहित वर्णित है ॥७॥देवालय के सेवकों के आवास, गोपुर (मन्दिर का प्रवेश-मार्ग), मण्डपादिकों का विधान एवं शालाओं का लक्षण प्राप्त होता है ॥८॥इसके पश्चात् गृह-विन्यास-मार्ग, गृहप्रवेश, राजगृह का विधान एवं द्वारविन्यास का लक्षण वर्णित है ॥९॥तदनन्तर यान के लक्षण, शयन के लक्षण, लिङ्ग (देवलिङ्ग) एवं उनके पीठ के लक्षण एवं उसके अनुरूप उचित कर्म की विधि वर्णित है ॥१०॥देवालय के प्रसङ्ग में मूर्ति के लक्षण, देवता एवं देवियों के प्रमाण का लक्षण, नेत्रों के उन्मीलन की विधि क्रमानुसार संक्षेप में वर्णित है ॥११॥ब्रह्मा आदि देवों ने एवं श्रेष्ठ मुनियों ने जिस प्रकार विद्वानों, देवों एवं मनुष्यों के सम्पूर्ण भवनलक्षणों का उपदेश किया है, उसी प्रकार मय ऋषि ने उन सभी लक्षणों का वर्णन प्रस्तुत किया है ॥१२॥इति मयमते वास्तुशास्त्रे संग्रहाध्यायः प्रथमः
 

मयमतम्‌

Contributor
Chapters
मयमतम् - अध्याय १ मयमतम् - अध्याय २ मयमतम् - अध्याय ३ मयमतम् - अध्याय ४ मयमतम् - अध्याय ५ मयमतम् - अध्याय ६ मयमतम् - अध्याय ७ मयमतम् - अध्याय ८ मयमतम् - अध्याय ९ मयमतम् - अध्याय १० मयमतम् - अध्याय ११ मयमतम् - अध्याय १२ मयमतम् - अध्याय १३ मयमतम् - अध्याय १४ मयमतम् - अध्याय १५ मयमतम् - अध्याय १६ मयमतम् - अध्याय १७ मयमतम् - अध्याय १८ मयमतम् - अध्याय १९ मयमतम् - अध्याय २० मयमतम् - अध्याय २१ मयमतम् - अध्याय २२ मयमतम् - अध्याय २३ मयमतम् - अध्याय २४ मयमतम्‌ - अध्याय २५ मयमतम्‌ - अध्याय २६ मयमतम्‌ - अध्याय २७ मयमतम्‌ - अध्याय २८ मयमतम्‌ - अध्याय २९ मयमतम्‌ - अध्याय ३० मयमतम् - अध्याय ३१ मयमतम् - अध्याय ३२ मयमतम् - अध्याय ३३ मयमतम् - अध्याय ३४ मयमतम् - अध्याय ३५ मयमतम् - अध्याय ३६ मयमतम्‌ - परिशिष्ट