Get it on Google Play
Download on the App Store

मयमतम्‌ - परिशिष्ट


 
(कूपारम्भ)
कूपारम्भ - ग्राम आदि में यदि कूप नैऋत्य कोण में हो तो व्याधि एवं पीड़ा, वारुण दिधा में पशु की वृद्धि, वायव्य कोण में शत्रु-नाश, उत्तर दिशा में सभी सुखों को प्रदान करने वाला तथा ईशान कोण में शत्रुं का नाश करने वाला होता है । ऐसा कहा गया है ॥१-२॥
चन्द्रगुप्त -
चन्द्रगुप्त ने कहा है कि खेत एवं उद्यानों में ईशान तथा पश्चिम दिशा में कूप प्रशस्त होता है ॥३॥
वराहमिहिर -
यदि ग्राम के या पुर के आग्नेय कोण में कूप हो तो वह सदा भय प्रदान करता है तथा मनुष्य का नाश करता है । नैऋत्य कोण में कूप होने पर धन की हानि तथा वायव्य कोण में होने पर स्त्री की हाने होती है । इन तीनों दिशाओं को छोड़कर शेष दिशाओं में कूप शुभ होता है ॥४-५॥
तिथि के विधि के विषय में नृसिंह ने इस प्रकार कहा है - चित्रा नक्षत्र, अमावस्या तिथि तथा रिक्ता तिथियाँ (चार, नौ, चौदह) छोड़कर शेष तिथियाँ शुभ होती है । शकुन (अपशकुन) होने पर विशेष रूप से छोड़ देना चाहिये । अथवा शुक्र, बुध, बृहस्पति एवं चन्द्र वर्गों का उदय शुभ होता है ॥६-७॥
नक्षत्रविधिमाह -
नक्षत्र-विधि के विषय में कहा गया है कि कूप-खनन में अधोमुख ये नक्षत्र शुभ होते है- मूल, कृत्तिका, मघा, आश्लेषा, विशाखा, भरणी तथा तीनों पूर्वा (पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा एवं पूर्वाभाद्रपदा) ऊर्ध्वमुख ये नक्षत्र प्रशस्त होते है - रोहिणी, आर्द्रा, श्रविष्ठा, पुष्य, शतभिषा, श्रवण तथा तीनों उत्तरा (उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा एवं उत्तराभाद्रपदा) तुला आदि राशियाँ क्रमशः वृद्धि-कार्यों आदि में प्रशस्त होती है । अश्विनी से प्रारम्भ कर पाँच नक्षत्र, चित्रा से प्रारम्भ कर पाँच नक्षत्र तथा मुल से प्रारम्भ कर पाँच नक्षत्र वृद्धि प्रदान करते है । कुछ विद्वानों के मतानुसार ये सभी सेतु, कुल्या (नहर) आदि कार्यों में प्रशस्त होते है ॥८-१०॥
चार नक्षत्र - पूर्वाषाढ़ा, स्वाती, कृत्तिका एवं शतभिषा का अवरोहन काल (उतरता काल) वापी- कूप तथा तटाक (तालाब) आदि के खनन (खुदाई) में शुभ होते है ॥११-१२॥
चन्द्रगुप्त-
चित्रगुप्त के मतानुसार हस्त, (तीनो) उत्तरा, धनिष्ठा, मघा, शतभिषा, ज्येष्ठा, रोहिणी, श्रवण, मूल, आश्लेषा, चित्रा तथा तिष्य नक्षत्र खुदाई के लिये प्रशस्त होते है ॥१३॥
कूपखनन के प्रारम्भ की विधि कही जा रही है - ईशान कोण से प्रारम्भ कूपखनन से पुष्टि, भूति (धन), पुत्रहानि, स्त्री-नाश, मृत्यु, सम्पदा, शस्त्र-बाधा तथा कुछ सुख प्राप्त होता है । गृह के मध्य में कूप मनुष्यों के लिये क्षयकारक होता है ॥१४॥
तथाह देवरात-
देवरात ने कहा है- (गृह के) मध्य में कूप धन-नाशकारक तथा पूर्व में सुखकारक होता है । आग्नेय कोण में होने पर पुत्र की मृत्यु तथा दक्षिण में होने पर सर्वस्व का नाश होता है ॥१५॥
 

मयमतम्‌

Contributor
Chapters
मयमतम् - अध्याय १ मयमतम् - अध्याय २ मयमतम् - अध्याय ३ मयमतम् - अध्याय ४ मयमतम् - अध्याय ५ मयमतम् - अध्याय ६ मयमतम् - अध्याय ७ मयमतम् - अध्याय ८ मयमतम् - अध्याय ९ मयमतम् - अध्याय १० मयमतम् - अध्याय ११ मयमतम् - अध्याय १२ मयमतम् - अध्याय १३ मयमतम् - अध्याय १४ मयमतम् - अध्याय १५ मयमतम् - अध्याय १६ मयमतम् - अध्याय १७ मयमतम् - अध्याय १८ मयमतम् - अध्याय १९ मयमतम् - अध्याय २० मयमतम् - अध्याय २१ मयमतम् - अध्याय २२ मयमतम् - अध्याय २३ मयमतम् - अध्याय २४ मयमतम्‌ - अध्याय २५ मयमतम्‌ - अध्याय २६ मयमतम्‌ - अध्याय २७ मयमतम्‌ - अध्याय २८ मयमतम्‌ - अध्याय २९ मयमतम्‌ - अध्याय ३० मयमतम् - अध्याय ३१ मयमतम् - अध्याय ३२ मयमतम् - अध्याय ३३ मयमतम् - अध्याय ३४ मयमतम् - अध्याय ३५ मयमतम् - अध्याय ३६ मयमतम्‌ - परिशिष्ट