Get it on Google Play
Download on the App Store

वो रात

चारुदत्त को वसन्तसेना को देखने के लिए एक दिन और प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। प्रतीक्षा करना बड़ा दुखदायी होता है। उसने मैत्रेय से पूछा कि वसन्तसेना के आने पर वे उसका मनोरंजन कैसे करेंगे। “क्या वह अकेली आयेगी या मदनिका के साथ?” मैत्रेय चाहता था कि दोनों आये।

उसने दासी को बुलाकर पूछा, “अतिथियों के लिए क्या बनाओगी?” 

उसने उत्तर दिया कि “घर में विशेष कुछ भी नहीं है। इसलिए वह कुछ कह नहीं सकती।”

“यह तो बड़ी वैसी बात है," मैत्रेय बोला, “मेरे विचार में हमें बाज़ार से कुछ चीजें ले आनी चाहिएं। इतने पैसे तो हमारे पास होंगे।”

"हाँ, हाँ,” चारुदत्त बोला, “ मेरे पास कुछ पैसे हैं। चलो जल्दी से चलकर कुछ ले आयें जिससे दासी कुछ विशेष व्यंजन तैयार कर सके।”

दोनों बाहर जाकर कुछ चीजें खरीद लाये और दासी को दे दी। फिर मेहमानों की राह देखने लगे । सन्ध्या को वसन्तसेना अकेली ही वहाँ आ पहुंची। चारुदत्त इतना खुश हुआ कि उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह उससे क्या कहे। उसने और मैत्रेय ने वसन्तसेना का मनोरंजन करने का भरसक प्रयत्न किया। जब वे खाने के लिए बैठे तो बहुत देर हो चुकी थी। इसी बीच में एकाएक मौसम भी बिगड़ गया। बादल गरजने लगे और फिर वर्षा आ गई। देर तक मौसम इसी तरह खराब रहा। वसन्तसेना के लिए घर लौटना असंभव हो गया। उसे उस रात चारुदत्त के घर ही रुकना पड़ा। अगले दिन सुबह वसन्तसेना देर से सोकर उठी। चारुदत्त और मैत्रेय तब तक बाहर जा चुके थे।

“आर्य चारुदत्त कहाँ गये हैं ?" वसन्तसेना ने दासी से पूछा|

“मेरे स्वामी और मैत्रेय फूलबाग गये हैं। आज वहाँ एक बड़ा उत्सव है। वे आशा करते हैं कि आप भी वहाँ जाकर सारा दिन उनके साथ बितायेंगी। उन्होंने आपको वहाँ ले जाने का प्रबन्ध कर दिया है। उनकी बैलगाड़ी आपको लेने अभी यहाँ आयेगी। इसलिए जल्दी से तैयार हो जाइये।" दासी ने कहा|