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वसंतसेना कि हत्या

अगले दिन संस्थानक कचहरी में पहुंचा और न्यायाधीश के सामने उपस्थित होकर बोला,“महोदय, मुझे एक बहुत ही गम्भीर शिकायत करनी है। वसन्तसेना की मृत्यु हो गई है। उसकी हत्या की गई है।"

"तुम्हें यह कैसे पता है ?" न्यायाधीश ने पूछा।

“आज सुबह मैं फूलबाग में सैर कर रहा था तो गाँववाले भागे भागे मेरे पास आये और बोले, सड़क के किनारे झाड़ियों में एक सुन्दर स्त्री की लाश पड़ी है। मैं भागकर वहाँ पहुंचा। हाँ, वहाँ झाड़ियों में वसन्तसेना का मृत शरीर पड़ा हुआ था। मैं उसके घर गया और उसकी माँ से मिला। इस समाचार से उसकी माँ को इतना धक्का लगा कि वह कुछ देर तक बोल ही नहीं सकी। फिर उससे पता चला कि पिछली रात वसन्तसेना एक गरीब व्यापारी चारुदत्त के घर पर रही थी। वसन्तसेना के शरीर पर कोई भी गहना नहीं था। मैंने उसकी माँ से इस बारे में पूछा लेकिन वह नहीं बता सकी कि गहने कहाँ हैं। मेरे विचार में चारुदत्त जो अब बहुत गरीब है उसीने उसके गहने उतारकर उसे मार डाला होगा।"

“बिना कारण ही किसी परिणाम पर नहीं पहुंचना चाहिये, संस्थानक महोदय । मेरे अधिकारी जाकर वहाँ पूछताछ करेंगे| तुमने वसन्तसेना का मृत शरीर कहाँ पड़े देखा था?" न्यायाधीश पूछा।

"तुमने वसन्तसेना की लाश अब वहाँ नहीं है जहाँ मैंने उसे देखा था," संस्थानक बोला। “उसकी माँ ने वहाँ जाकर उसे देखने का हठ किया तो मैं उसे वहाँ ले गया। मुझे यह देखकर बड़ा अचम्भा हुआ कि वह मृत शरीर अब वहाँ पर नहीं था। चारुदत्त ने उसे वहाँ से हटाकर कहीं छिपा दिया होगा। उसे पकड़कर एकदम फांसी की सजा दे दो। मैंने शिकायत कर दी है। तुम मेरा विश्वास करो। मैं झूठ नहीं बोल रहा।”

“कानून अपने अनुसार कार्य करेगा|" न्यायाधीश ने कहा और संस्थानक को चेतावनी दी कि इस मामले में और हस्तक्षेप न करे। “वसन्तसेना की माता जी को अदालत में लाना पड़ेगा। यदि गवाही से यह साबित हो गया कि वसन्तसेना को आखिरी बार चारुदत्त के साथ देखा गया था तो उसे भी अदालत में बुलाना पड़ेगा। तुमने शिकायत की है, मैं कानूनी कार्यवाही प्रारम्भ करूंगा।”

“आप केवल समय नष्ट कर रहे हैं|" संस्थानक बोला, “क्या आप मुझ पर विश्वास नहीं करते?"

“आप भूल कर रहे हैं, संस्थानक महोदय," न्यायाधीश ने कहा, “कानून व्यक्तियों से ऊपर होता है। यदि आप मेरे काम में हस्तक्षेप करेंगे तो मैं आप को गिरफ्तार करवा दूंगा।”

न्यायाधीश के अधिकारियों ने छानबीन प्रारम्भ कर दी। यह बात सच थी कि गाँववालों ने झाड़ियों में एक सुन्दर स्त्री की लाश देखी थी। संस्थानक ने भी यही कहा था। वसन्तसेना की माता ने बताया कि पिछली रात वसन्तसेना ने चारुदत्त के साथ बिताई थी। चारुदत्त को अदालत में लाया गया।

"वसन्तसेना की मृत्यु हो गई है," न्यायाधीश ने उसे बताया|

“वसन्तसेना मर गई है!” चारुदत्त भौचक-सा बोला, "वह कब मरी? कहाँ मरी? कैसे मरी? किसने उसे मरते देखा? कृपा कर के मुझे बताइये। क्या आपको विश्वास है कि वह सचमुच मर गई है?"

“अरे बदमाश, नाटक मत कर,” संस्थानक चिल्लाया, “तुम सब कुछ जानते हो। गहनों के लिए तुमने ही उसे मारा है।”