Get it on Google Play
Download on the App Store

भाग २

जब मालती और उसकी सखियां बाहर आई तो माधव मालती के पास गया और बोला, “हे सुन्दरी, कृपा कर के फूलों की यह माला स्वीकार करो।"

मालती जानती थी कि माधव वही युवक है जो उसके घर के नीचे उसकी ओर देखते हुए इधर उधर चक्कर काटा करता है।

लेकिन वह बोली, “मैं आप से कोई उपहार क्यों स्वीकार करूं? मेरे लिए उपहार लाने वाले आप कौन हैं? मैं आपको नहीं जानती।"

“मेरा नाम माधव है," माधव ने उत्तर दिया, “मैं यहां के विश्व- विद्यालय का छात्र हूँ। मेरे पिता विदर्भ देश के राजा के मन्त्री हैं। केवल आपको देखने और जानने के लिए ही बहुत दिनों से, हर दिन सांझ पड़े में आप के घर के नीचे टहलता रहा हूँ। आप से मिलने और बात करने की मेरी हार्दिक इच्छा है। कृपा कर के मेरी इस छोटी-सी भेंट को स्वीकार कीजिए|"

उसने विनती की। मालती एक क्षण सोचकर बोली, “लगता है मुझे यह सुन्दर भेंट स्वीकार करनी ही पड़ेगी। अब मुझे याद आया कि मैंने आपको पहले भी देखा है । मैं भी आप से मिलना और बात करना चाह रही थी।"

माधव के मित्र मकरन्द ने भी उसी तरह मदयन्तिका को हार भेंट किया। उसने उस हार को ऐसे स्वीकार किया मानों विजयी राजकुमारी हो। माधव और मकरन्द वहां खड़े-खड़े मालती और उसकी सखियों को घर जाते देखते रहे। जिन्हें वे चाहते थे उन लड़कियों से मिलने में वे दोनों थे। यह आरम्भ अच्छा हुआ था, अब दोनों यह जानने के लिए उत्सुक थे कि आगे क्या होता है। यही सोचते हुए वे दोनों भी घर की ओर चल पड़े।

माधव मालती के बारे में बातें कर रहा था और मकरन्द मदयंतिका के बारे में। लेकिन दोनों ही नहीं जानते थे कि दूसरा क्या बोल रहा है। सफल हुए अगले दिन सांझ को मालती अपने छज्जे पर बैठी ठंडी हवा का आनन्द ले रही थी। तभी उसने माधव को नीचे टहलते देखा। वह उसी की ओर देख रहा था।

इस बार मालती ने संकेत द्वारा बताया कि वह उसे पहचानती है। उसने उसे घर के बगल के एक दरवाजे से भीतर पाने का संकेत किया। माधव भीतर चला गया। वहां एक गलियारे में मालती और माधव अकेले में मिले। वे एक दूसरे के आमने सामने खड़े रहे लेकिन देर तक किसी के मुँह से एक शब्द भी नही निकला।