भाग ५
मदयंतिका का एक भाई था नन्दन। वह अधेड़ उम्र का विधुर था। उसने एक बार मालती को देखा था और वह उससे प्रेम करने लगा था। वह अच्छी तरह जानता था कि वैसे तो वह कभी भी मालती का हृदय जीतने की आशा नहीं कर सकता। वह दरबारी था और बड़ा ही चालाक आदमी था। वह राजा के पास पहुंचा और मालती को अपनी पत्नी बनाने के लिए उनकी सहायता चाही। राजा बहुत सीधे थे और वे नन्दन को पसन्द करते थे। उन्होंने वायदा किया कि वह उसकी इच्छा पूरी करने में उसकी सहायता करेंगे।
राजा ने एक दिन भूरिवसु--मालती के पिता से--अपनी बेटी का विवाह नन्दन से कर देने के लिए कहा। भूरिवसु अपनी बेटी का विवाह नन्दन जैसे वृद्ध से नहीं करना चाहते थे। लेकिन वह राजा का विरोध कर के उन्हें कुपित भी नहीं करना चाहते थे। सो बिना राजा को रुष्ट किये वह बोले कि पिता का बेटी पर अधिकार है। राजा ने इसे मालती के पिता की सहमति" समझा और मालती तथा नन्दन की सगाई की घोषणा कर दी।
मालती और माधव को इस बात से बहुत दुख हुआ। उन्हें लगा कि बस यह उनकी खुशी और आशाओं का अन्त है। मालती की एक सखी लवंगिका उनके साथ थी। उसने उनको सान्त्वना देने का प्रयत्न किया और कहा कि भगवती कामन्दकी उनके लिए कोई न कोई रास्ता ढूंढ निकालेंगी। लवंगिका ने विश्वास दिलाया कि भगवती कामन्दकी भूरिवसु या राजा से यह भी कह सकती कि यह विवाह सुखदायी नहीं होगा। मालती को अपने परिवार से बहुत लगाव था।
वह बोली, “मेरे भद्र पिता और कुलीन माता और निष्कलंक परिवार सब मुझे बहुत प्यारे हैं। मैं उन सब का विरोध कैसे कर सकूँगी??”अब तो मेरे लिए केवल एक ही रास्ता है कि अपने जीवन का अन्त कर दूं।”
उसी समय वहां भगवती कामन्दकी आ पहुंचीं। वे भी राजा की घोषणा सुन चुकी थीं।
वे मालती और माधव से बोलीं, “बच्चो, भूरिवसु पर ऐसा कोई बन्धन नहीं है कि वह मालती का विवाह नन्दन से ही करे। उसका कभी भी यह मतलब नहीं था कि वह इस प्रस्ताव से सहमत हैं। उसने तो टालने के लिए ही ऐसा उत्तर दिया था।”
लवंगिका बोली, “भगवती, आप ठीक कह रही हैं। राजा ने भी कैसे एक बूढ़े खूसट को कमसिन मालती पर थोपना ठीक समझा?? भगवती आप ही मालती को इस अपमानजनक स्थिति से बचा सकती हैं।”
“सौभाग्य से या भूरिवसु की कुशलता से ही इस स्थिति से बचा जा सकता है|" कामन्दकी बोलीं|
फिर कहा, "पहले भी ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं रही जब कि अन्त में सच्चा प्रेम ही विजयी हुआ है। शकुन्तला का ही उदाहरण ले लो-कण्व की स्वीकृति के बिना उसने चुपचाप राजा दुष्यन्त से विवाह किया। रुक्मिणी का श्रीकृष्ण के साथ भाग जाना, वासवदत्ता का उदयन को आत्मसमर्पण करना, लेकिन मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मालती को ऐसी सलाह देना ठीक होगा या नहीं। फिर माधव के बारे में भी मुझे सोचना है। वह देवव्रत का बेटा है। वह बड़ा आदमी और विदर्भ के राजा का मन्त्री है। उसकी कीर्ति पर किसी भी प्रकार का कलंक नहीं लगा है। भूरिवसु और देवव्रत दोनों इकट्ठे पढ़ते थे। वे दोनों घनिष्ठ मित्र हैं। माधव उसका इकलौता बेटा है। वह शिक्षित और सुन्दर है। वह यहां पद्मावती में ऊंची शिक्षा ग्रहण कर रहा है। केवल उसे देखने के लिए ही यहां की स्त्रियां आपस में होड़ लगाती रहती हैं।"