पतंग का परिणाम
रोते हुए कहा रामू ने
'मुझे चार पैसे दे माँ!
यदि तू पैसे अभी न दे
तो मुझे मिठाई लेदे माँ!"
माँ से पैसे लेकर रामू
जल्दी से बाज़ार गया।
उसने एक पतंग खरीदी
पक्का तागा मोल लिया।
घर में आकर छत पर जाकर
सुखी हुआ नटखट रामू।
लगा पतंग उड़ाने ऊपर
आँख बचा कर झट रामू।
उड़ने लगी पतंग दूर तक
हुई आँख से झट से ओझल।
फुर-फुर्र उड़ना सुन सुनकर
रामू का था मन चंचल।
रामू देख रहा था ऊपर
नीचे का था ध्यान नहीं।
था मुंड़ेर के पास खड़ा वह
उसे जरा था ज्ञान नहीं।
जब पतंग की डोर खींचने
रामू छत पर जरा फिरा-
फिसला पैर अचानक उसका
नीचे गेंद-समान गिरा।
रामू के दादा ने जल्दी
अस्पताल में पहुँचाया।
घण्टों कोशिश करने पर भी
होश नहीं उसको आया।
बहुत देर के बाद कहीं
तब रामू ने आँखें खोलीं- '
कहाँ और कैसा हूँ ?' इसके
उत्तर में माँ यह बोली-
'तेरे पास खड़ी हूँ बेटा!
मन में जरा न घबराओ।
जल्दी अच्छे हो जाओगे,
तुम मन में हिम्मत लाओ!
तीन माह के बाद कहीं जा
रामू को आराम हुआ।
तब से रामू ने पतंग को
अपने हाथों नहीं छुआ।