श्री व्यंकटेश स्तोत्र २
शंकरे धरिले हाळाहळा |
तेणे नीळवर्ण झाला गळा |
परी त्यागिले नाही गोपाळा |
भक्तवत्सला गोविंदा || २६ ||
माझ्या अपराधांच्या परी |
वर्णिता शिणली वैखरी |
दृष्ट पतीत दुराचारी |
अधमाहुनि अधम || २७ ||
विषयासक्त मंदमति आळशी |
कृपण कुव्यसनी मलिन मानसी |
सदा सर्वकाळ सज्जनांशी |
द्रोह करी सर्वदा || २८ ||
वचनोक्ति नाही मधुर |
अत्यंत जनांसी निष्ठुर |
सकळ पामरांमाजी पामर |
व्यर्थ बडिवार जगी वाजे || २९ ||
काम क्रोध मद मत्सर |
हे शरीर त्यांचे बिढार |
कामकल्पनेसी थार |
दृढ येथे केला असे || ३० ||
अठरा भार वनस्पतींची लेखणी |
समुद्र भरला मषीकरुनी |
माझे अवगुण लिहिता धरणी |
तरी लिहिले न जाती || ३१ ||
ऐसा पतित मी खरा |
परी तू पतितपावन शारद्गधरा |
तुवा अंगीकार केलिया गदाधरा |
कोण दोषगुण गणील || ३२ ||
नीच रतली रायाशी |
तिसी कोण म्हणेल दासी |
लोह लागता परिसासी |
पूर्वास्थिती मग कैंची || ३३ ||
गावीचे होते लेंडवोहळ |
गंगेसी मिळता गंगाजळ |
कागविष्ठेचे झाले पिंपळ |
तयांसी निद्य कोण म्हणे || ३४ ||
तसा कुजाति मी अमंगळ |
परी तुझा म्हणवितो केवळ |
कन्या देऊनिया कुळ |
मग काय विचारावे || ३५ ||
जाणत असता अपराधी नर |
तरी का केला अंगीकार |
अंगीकारावरी अव्हेर |
समर्थे न केला पाहिजे || ३६ ||
धाव पाव रें गोविंदा |
हाती घेवोनिया गदा |
करी माझ्या कर्माचा चेंदा |
सच्चिदानंदा श्रीहरी || ३७ ||
तुझिया नामाची अपरिमित शक्ति |
तेथें माझी पापे किती |
कृपाळुवा लक्ष्मीपती |
बरवे चित्ती विचारी || ३८ ||
तुझे नाम पतितपावन |
तुझे नाम कलिमलदहन |
तुझे नाम भवतारण |
संकटनाशन नाम तुझे || ३९ ||
आता प्रार्थना ऐके कमळापती |
तुझे नामी राहे माझी मती |
हेचि मागतो पुढतपुढती |
परंज्योती व्यंकटेशा || ४० ||
तू अनंत तुझी अनंत नामे |
तयांमाजी अति सुगमे |
ती मी अल्पमति प्रेमे |
स्मरूनी प्रार्थना करीतसे || ४१ ||
श्रीव्यंकटेशा वासुदेवा |
प्रद्युमन्ना अनंता केशवा |
संकर्षणा श्रीधरा माधवा |
नारायणा आदिमूर्ते || ४२ ||
पद्मनाभा दामोदरा |
प्रकाशगहना परात्परा |
आदिअनादि विश्वंभरा |
जगदुद्धारा जगदीशा || ४३ ||
कृष्णा विष्णो हृषीकेशा |
अनिरुद्धा पुरुषोत्तमा परेशा |
नृसिंह वामन भार्गवेशा |
बौद्ध कलंकी निजमूर्ती || ४४ ||
अनाथरक्षका आदिपुरुषा |
पूर्णब्रम्ह सनातन निर्दोषा |
सकळ मंगळ मंगळाधीशा |
सज्जनजीवना सुखमूर्ते || ४५ ||
गुणातीता गुणज्ञा |
निजबोधरूपा निमग्ना |
शुद्ध सात्विका सुज्ञा |
गुणप्राज्ञा परमेश्वरा || ४६ ||
श्रीनिधीश्रीवत्सलांछन धरा |
भयकृद्भयनाशना गिरीधरा |
दृष्टदैत्यसंहारकरा |
वीर सुखकरा तू एक || ४७ ||
निखिल निरंजन निर्विकारा |
विवेकखाणी- वैरागरा |
मधुमुरदैत्यसंहारकरा |
असुरमर्दना उग्रमुर्ते || ४८ ||
शंखचक्रगदाधरा |
गरुडवाहना भक्तप्रियकरा |
गोपीमनरंजना सुखकरा |
अखंडित स्वभावे || ४९ ||
नानानाटक - सूत्रधारिया |
जगद्व्यापका जगद्वर्या| कृपासमुद्रा करुणालया |
मुनिजनध्येया मूळमूर्ति || ५० ||