श्री व्यंकटेश स्तोत्र ४
ऐसा षोडशोपचारे भगवंत |
यथाविधी पूजिला हृदयात |
मग प्रार्थना आरंभिली बहुत |
वरप्रसाद मागावया || ७६ ||
जयजयाजी श्रुतिशास्त्रआगमा |
जयजयाजी गुणातीत परब्रम्हा |
जयजयाजी हृदयवासिया रामा |
जगदुद्धारा जगद्गुरो || ७७ ||
जयजयाजी पंकजाक्षा |
जयजयाजी कमळाधीशा |
जयजयाजी पूर्णपरेशा |
अव्यक्तव्यक्ता सुखमूर्ते || ७८ ||
जयजयाजी भक्तरक्षका |
जयजयाजी वैकुंठनायका |
जयजयाजी जगपालका |
भक्तांसी सखा तू एक || ७९ ||
जयजयाजी निरंजना |
जयजयाजी परात्परगहना |
जयजयाजी शुन्यातीत निर्गुणा |
परिसावी विज्ञापना एक माझी || ८० ||
मजलागी देई ऐसा वर |
जेणे घडेल परोपकार |
हेचि मागणे साचार |
वारंवार प्रार्थितसे || ८१ ||
हा ग्रंथ जो पठण करी |
त्यासी दु:ख नसावे संसारी |
पठणमात्रे चराचरी |
विजयी करी जगाते || ८२ ||
लग्नार्थीयाचे व्हावे लग्न |
धनार्थियासी व्हावे धन |
पुत्रार्थियासे मनोरथ पूर्ण |
पुत्र देऊनी करावे || ८३ ||
पुत्र विजयी आणि पंडित |
शतायुषी भाग्यवंत |
पितृसेवेसी अत्यंत रत |
जायचे चित्त सर्वकाळ || ८४ ||
उदार आणि सर्वज्ञ |
पुत्र देई भक्तांलागून |
व्याधिष्ठांची पीडा हरण |
तत्काळ कीजे गोविंदा || ८५ ||
क्षय अपस्मार कुष्ठादिरोग |
ग्रंथपठणे सरावा भोग |
योगाभ्यासियासी योग |
पठणमात्रे साधावा || ८६ ||
दरिद्री व्हावा भाग्यवंत |
शत्रूचा व्हावा नि:पात |
सभा व्हावी वश समस्त |
ग्रंथपठणेकरुनिया || ८७ ||
विद्यार्थीयासी विद्या व्हावी |
युद्धी शस्त्रे न लागावी |
पठणे जगात कीर्ती व्हावी |
साधु साधु म्हणोनिया || ८८ ||
अंती व्हावे मोक्षसाधन |
ऐसे प्रार्थनेसी दीजे मन |
एवढे मागती वरदान |
कृपानिधे गोविंदा || ८९ ||
प्रसन्न झाला व्यंकटरमण |
देवीदासासी दिधले वरदान |
ग्रंथाक्षरी माझे वचन |
यथार्थ जाण निश्चयेसी || ९० ||
ग्रंथी धरोनी विश्वास |
पठण करील रात्रंदिवस |
त्यालागी मी जगदीश |
क्षण एक न विसंबे || ९१ ||
इच्छा धरुनी करील पठण |
त्याचे सांगतो मी प्रमाण |
सर्व कामनेसी साधन |
पठण एक मंडळ || ९२ ||
पुत्रार्थियाने तीन मास |
धनार्थियाने एकवीस दिवस |
कन्यार्थियाने षण्मास |
ग्रंथ आदरे वाचवा || ९३ ||
क्षय अपस्मार कुष्ठादिरोग |
इत्यादि साधने प्रयोग |
त्यासी एक मंडळ सांग |
पठणे करुनी कार्यसिद्धी || ९४ ||
हे वाक्य माझे नेमस्त |
ऐसे बोलिला श्रीभगवंत |
साच न मानी जयाचे चित्त |
त्यासी अध:पात सत्य होय || ९५ ||
विश्वास धरील ग्रंथपठणी |
त्यासी कृपा करील चक्रपाणी |
वर दिधला कृपा करूनि |
अनुभवे कळो येईल || ९६ ||
गजेंद्राचिया आकांतासी |
कैसा पावला हृषीकेशी |
प्रल्हादाचिया भावार्थासी |
स्तंभातूनि प्रकटला || ९७ ||
वज्रासाठी गोविंदा |
गोवर्धन परमानंदा |
उचलोनिया स्वानंदकंदा |
सुखी केलें तये वेळी || ९८ ||
वत्साचेपरी भक्तांसी |
मोहे पान्हावे धेनु जैसी |
मातेच्या स्नेहतुलनेसी |
त्याचपरी घडलेसे || ९९ ||
ऐसा तू माझा दातार |
भक्तासी घालिसी कृपेची पाखर |
हा तयाचा निर्धार |
अनाथनाथ नाम तुझे || १०० ||