दमयन्ती
नल ने हंस को छोड़ दिया। वह अपने साथियों के साथ जा मिला और विदर्भ की ओर उड़ गया। वे हंस उस उपवन में उतरे जहाँ दमयन्ती और उसकी सेविकायें खेल रही थीं। सुन्दर हंसों को देखकर वे बड़ी प्रसन्न हुई। दमयन्ती हंसों के राजा को अच्छी तरह से देखने के लिए उसके पास पहुंची। वह हंस एकान्त स्थान की ओर बढ़ चला। दमयन्ती ने उसका पीछा किया।
जब दोनों एकान्त में पहुंच गये तो हंस ने मुड़कर दमयन्ती से कहा, “निषध में एक युवक राजा राज्य करता है, नाम है नल। वह बहुत ही सुन्दर, शिक्षित और अच्छे स्वभाव का है। दुनिया में उससे अच्छा योग्य वर तुम्हारे लिए और नहीं हो सकता । ऐसा लगता है जैसे तुम एक दूसरे के लिए ही बने हो।"
हंस की बात सुनकर दमयन्ती नल के बारे में जानने को उत्सुक हो उठी। वह उसके बारे में और अधिक जानना चाहती थी। हंस ने उसे नल बारे में और उसके गुणों के बारे में सब कुछ बताकर कहा,
“अब मैं तुम्हें बताता हूँ कि वह देखने में कैसा है।" और उसने कमल का एक पत्ता लेकर उस पर अपनी चोंच से नल का एक चित्र बना दिया।
चित्र को देखकर दमयन्ती के हृदय की धड़कन तेज हो गई। वह नल से प्रेम करने लगी। उसने हंस से अनुरोध किया कि वह नल के पास जाकर उसके बारे में बातचीत करे। हंस ने वायदा किया कि वह उसके कहे अनुसार ही करेगा। और फिर वह अपने मित्रों के साथ उड़ गया।
दमयन्ती अपने कमरे में चली गई और बिछौने पर लेटकर नल के सपने देखने लगी। हंस नल के पास जा पहुँचा और उसे दमयन्ती का सन्देश दिया। नल भी दमयन्ती के प्रेम में डूब गया। वह उससे जल्दी से जल्दी मिलना चाहता था।
हंस से मिलने के बाद दमयन्ती बहुत दुखी और बेचैन रहने लगी। उसका हंसना-खेलना सब छूट गया। अब उसे किसी का संग भी अच्छा नहीं लगता था। वह कभी-कभार ही अपने कमरे से बाहर निकलती थी। उसकी सेविकाओं को लगा कि वह बहुत बदल गई है। उन्होंने यह बात उसके पिता राजा को बताई।