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चेदि राज

सोकर उठी तो दमयन्ती ने देखा कि नल वहाँ नहीं है। उसने यह भी देखा कि उसके कपड़े का कुछ भाग कटा हुआ है। उसने बहुत ज़ोर से नल को पुकारा लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला। जंगल वह ‘नल नल' चिल्लाती हुई इधर उधर घूमती रही, किन्तु उसे अपने पति का कोई निशान नहीं मिला।

रात भर वह उसे खोजती रही और जब उसे पाने की आशा जाती रही, तब बिना सोचे- समझे, कि वह कहाँ जा रही है, चलने लगी। 

रास्ते में उसे कई जंगली जानवर मिले पर किसी ने उसे हानि पहुँचाने का यत्न नहीं किया। कुछ दिन उसने ऐसे ही इधर-उधर घूमते हुए बिताये--जंगली फल-फूल खा लेती और नदी- नालों से पानी पी लेती।

इसी समय उसे सौदागरों का एक काफिला मिला। दमयन्ती ने उन्हें अपने साथ घटी हुई दुर्घटना के बारे में बताया। उन्होंने दया करके उसे अपने साथ आने दिया। काफिला चेदि राज्य को जा रहा था। रास्ते में नदी के किनारे उन्होंने अपना पड़ाव डाला।

रात में जंगली हाथियों के एक दल ने पड़ाव पर हमला कर दिया। बहुत सारे आदमी और पशु मारे गये। दूसरे बहुत से जख्मी हो गये। जो बच गये थे उन्होंने अपने दुर्भाग्य का कारण दमयन्ती को ठहराया।

वे सब उससे इतना नाराज़ थे कि उसे मार ही देते यदि वह संकट को भांपकर जंगल में न भाग गई होती। 

उसने ईश्वर से प्रार्थना की कि उसे किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दे और नल को खोजने में उसकी सहायता करे। फिर वह आश्रय की खोज में चल पड़ी। उसे ब्राह्मणों का एक दल मिला। वह उनके साथ हो ली और उनके साथ चेदि राज की राजधानी में पहुंच गई।

चेदि राज की राजधानी में वह अकेली ही घूमती रही और इसी तरह घूमती-फिरती महल के दरवाजे पर जा पहुंची। एक पागल भिखारी की तरह खड़ी हो गई|

अधनंगी और गंदी। चेदि की रानी ने उसे देखा और उसकी ओर आकर्षित हुई, हालाँकि वह बहुत गरीब और एकाकी दिखाई देती थी। रानी ने उसे बुलाया और पूछा कि वह कौन है और इस तरह से क्यों घूम रही है। 

दमयन्ती ने उत्तर दिया, “मैं एक कुलीन परिवार की लड़की हूँ। दुर्भाग्य ने ही मुझ से और मेरे पति से अपना घर छुड़वाया है। रास्ते में मेरा पति खो गया और अब मैं उसकी खोज में घूम रही हूँ।" 

रानी को दमयन्ती पर दया आ गई और उसने उसे अपने पास ठहरने के लिए कहा। उसने यह भी वायदा किया कि वह दमयन्ती की देखरेख करेगी और साथ में उसके पति को खोजने का यत्न भी करेगी। उसने कहा कि दमयन्ती राजकुमारी सुनन्दा की सखी के रूप में उनके पास रहे।

दमयन्ती ने रानी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और राजमहल में रहने लगी।