नल-दमयन्ती
नल को देवताओं की इच्छा पूरी करनी ही पड़ी। वह राजा भीम के महल में गया। किसी चौकीदार ने उसे नहीं रोका क्योंकि कोई उसे देख ही नहीं एक साथ बोल उठे। देवराज इन्द्र भी इससे सहमत थे। बस चारों देवता दमयन्ती के स्वयंवर के लिए चल पड़े। देवता जब पृथ्वी पर पहुंचे और विदर्भ की ओर जा रहे थे तो रास्ते में उन्हें नल मिला।
वह सीधे दमयन्ती के पास गया। वह अपनी सखियों के साथ बैठी थी। दमयन्ती ने उसे देख लिया। वह ऐसा लग रहा था जैसे सपनों का देवता। एकाएक उसने उसे पहचान लिया।
“यह राजा नल है," उसने अपने आप से कहा। इसकी शक्ल बिल्कुल वैसी है जैसी हंस ने चित्र में बनायी थी।"
नल उससे अकेले में बात करना चाहता था। वह ज़रा वहाँ से दूर चला गया और उसने दमयन्ती को अपने पीछे आने का संकेत किया। दमयन्ती उसके पीछे हो ली और जब दोनों ने अपने आपको एकान्त में पाया तो
दमयन्ती ने पूछा, “सुन्दर राजकुमार, तुम कौन हो? तुम भीतर कैसे और किस लिए आये? क्या तुम्हें पहरेदारों ने रोका नहीं?"
नल ने उत्तर दिया, "मैं निषध का राजा नल हूँ। मुझे इन्द्र, अग्नि, वरुण और यम देवता रास्ते में मिले थे। तुम्हारे लिए उन्होंने एक सन्देश दिया है। तुम तक आने के लिए उन्होंने मुझे अदृश्य होने की शक्ति भी दी है। तुम्हारे सिवाय दूसरा कोई मुझे देख नहीं सकता।”
“देवताओं ने तुम्हारे द्वारा मेरे लिए क्या सन्देश भेजा है ?" दमयन्ती ने पूछा।
"वे तुम्हारे स्वयंवर में आ रहे हैं और चाहते हैं कि तुम विवाह के लिए उन में से किसी एक को चुनो। वे तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे हैं," नल ने कहा।
दमयन्ती ने देवताओं के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए कहा, “श्रेष्ठ राजकुमार, मैं समझती थी कि तुम जानते हो कि मैंने तुम से विवाह करने का निश्चय किया है। अब मैं किसी दूसरे के साथ विवाह की बात सोच भी नहीं सकती।"
"लेकिन अपने भविष्य के बारे में भी तो सोचो,” नल ने कहा, “यदि तुम उन में से किसी एक से विवाह कर लोगी तो अमर होकर स्वर्ग का सुख भोगोगी।"
"लेकिन मैं तो केवल पृथ्वी का ही सुख चाहती हूँ।" दमयन्ती ने उत्तर दिया। “जब से उस भले हंस ने मुझे तुम्हारे बारे में बताया है, तब से मैं केवल तुम्हारे बारे में ही सोचती रही हूँ और मन ही मन तुम्हारा वरण कर चुकी हूँ। मैं केवल तुम्हारी हूं और किसी दूसरे की नहीं हो सकती।"
"तुम केवल एक मनुष्य को कैसे चुन सकती हो जब शक्तिशाली देवता तुम से विवाह करने के लिए इच्छुक हैं। मैं तो उनके पैरों की धूल के बराबर भी नहीं हूँ। अपना अन्तिम निश्चय करने से पहले एक बार फिर सोच लो।"
दमयन्ती नल के ये शब्द न सह सकी। वह रो पड़ी।
“तुम इतने कठोर क्यों हो ?" उसने पूछा, “देवताओं का मैं सम्मान करती हूँ, किन्तु मैंने नल को ही अपना पति चुना है। यही मेरा अन्तिम निश्चय और उत्तर है।"
नल ने कहा, “मुझे क्षमा कर दो। देवताओं का आदेश था कि मैं उनका सन्देश तुम तक पहुंचाऊं और उनकी ओर से उनके पक्ष की वकालत भी करूं। मुझे उनकी आज्ञा माननी पड़ी। यदि मेरा बस होता तो मैं तुम से अपने लिए कहता। किन्तु मैं उसके लिए स्वतन्त्र नहीं था।"
दमयन्ती ने मुस्कराकर उत्तर दिया, “मैं तुम्हारी कठिनाई समझ गई हूँ। जब स्वयंवर में निर्णय का समय आयेगा तो मैं सच्चे हृदय से सब देवताओं और उपस्थित लोगों के सामने तुम्हारा वरण करूँगी। तब यह चुनाव मेरा होगा और तुम्हें कोई दोषी नहीं ठहरायेगा।"
"अब मुझे जाना होगा क्योंकि तुम्हारा उत्तर देवताओं के पास ले जाना है|" नल ने कहा।
“इतनी जल्दी ?" दमयन्ती ने पूछा
"हाँ,” नल ने कहा, “इस समय मैं अपना स्वामी नहीं हूँ। यहाँ पर मैं केवल दूत की हैसियत से आया हूँ।" नल देवताओं के पास लौट गया।
“क्या तुम दमयन्ती से मिले ? उसने हमारे प्रस्ताव के बारे में क्या कहा ?" देवताओं ने नल से पूछा।
दमयन्ती ने जो कहा था नल ने सब देवताओं को बता दिया। फिर उसने कहा, “अब आप ही सोचें, आपको क्या करना है?”
देवताओं ने स्वयंवर में जाने का निश्चय किया और अपनी यात्रा जारी रखी। नल ने भी स्वयंवर का रास्ता पकड़ा।