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वनवास

वे बिना किसी उद्देश्य चलते-चलते बहुत दूर निकल गये और अन्त में एक जंगल में जा पहुंचे। वे भूखे थे और थक गये थे। फिर भी उन्होंने अपनी यात्रा जारी रखी। रास्ते में उन्होंने कुछ पक्षी देखे। नल ने अपने कपड़े से उनके लिये जाल बनाया कि उन्हें खाने के लिए पकड़े। 

लेकिन पक्षी कपड़ा लेकर ही उड़ गये और उड़ते-उड़ते बोले, "ओ मूर्ख नल, तुम नहीं जानते कि हम कौन हैं। हम वही पासे हैं जिन्होंने तुम्हें जुये में हराया। हम इस बात से खुश नहीं थे कि तुम्हारे पास एक भी कपड़ा था, इसी को लेने के लिए हमने तुम्हारा पीछा किया था।"

नल बहुत दुखी हुआ|अपनी पत्नी की ओर मुड़कर उसे सलाह देने लगा कि वह उसे छोड़कर अपने पिता के घर चली जाये।

दमयन्ती ने उत्तर दिया, “मैं तुम्हें इस वन में कैसे छोड़ सकती हूँ? तुम भी मेरे साथ चलो। हम दोनों ही मेरे पिता के घर चलेंगे।"

लेकिन नल इस फटे-हाल विदर्भ जाने को तैयार नहीं हुआ। नल और दमयन्ती इसी तरह घूमते रहे। उन्हें एक झोंपड़ी दिखाई दी। वे उसके भीतर चले गये। दमयन्ती इतनी थक चुकी थी कि वह लेटते ही सो गई।

नल कुछ समय तक उसे देखता रहा। वह बहुत बेचैन था। झोंपड़ी में वह चक्कर लगाता रहा और सोचता रहा कि क्या करे?

अन्त में उसने निश्चय किया कि वह दमयन्ती को वहीं छोड़ देगा। उसे आशा थी कि उसे अपने पास न पाकर दमयन्ती अपने पिता के पास चली जायेगी। उसके पास कोई वस्त्र नहीं था। बिना वस्त्रों के वह इधर उधर कैसे घूम सकता था। उसने अपनी पत्नी के पहने हुए वस्त्र को देखा।

उसने सोचा कि कितना अच्छा हो यदि उसका एक भाग उसे पहनने के लिए मिल जाये। अचानक उसकी दृष्टि कोने में पड़ी एक पुरानी तलवार पर गयी। उसने उसे उठा लिया। उसने फिर पत्नी के वस्त्र को देखा। 

"हाँ" उसने सोचा “वह थोड़ा सा वस्त्र मुझे दे सकती है।” 

तब उसने दमयन्ती के वस्त्र का एक भाग काट लिया और फिर तलवार को फेंक दिया। इस कपड़े को लंगोटी की तरह पहन कर वह अपनी पत्नी से दूर, घने जंगल में चला गया।