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दुर्गापदुद्धारस्तोत्रम्


नमस्ते शरण्ये शिवे सानुकम्पे नमस्ते जगद्‌व्यापिके विश्‍वरूपे |
नमस्ते जगद्वन्द्यपादारविन्दे नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे ॥ १ ॥
नमस्ते जगच्चिन्त्यमानस्वरूपे नमस्ते महायोगिनि ज्ञानरूपे ।
नमस्ते नमस्ते सदानन्दरूपे नमस्ते० ॥ २ ॥
अनाथस्य दीनस्य तृष्णातुरस्य भयार्तस्य भीतस्य बद्धस्य जन्तो: ।
त्वमेका गतिर्देवि निस्तारकर्त्री नम० ॥ ३ ॥
अरण्ये रणे दारुणे शत्रुमध्येऽनले सागरे प्रान्तरे राजगेहे ।
त्वमेका गतिर्देवि निस्तारनौका नम० ॥ ४ ॥
अपारे महादुस्तरेऽत्यन्तघोरे विपत्सागरे मज्जतां देहभाजाम् ।
त्वमेका गतिर्देवि निस्तारहेतुर्नम० ॥ ५ ॥
नमश्‍चण्डिके चण्डदुर्दण्डलीलासमुत्कण्डिताखण्डितशेषशत्रो ।
त्वमेका गतिर्देवि निस्तारबीजं नम० ॥ ६ ॥
त्वमेवाघभावधृतासत्यवादीन्न जाता जित क्रोधानात् क्रोधनिष्ठा ।
इडा पिङ्गला त्वं सुषुम्ना च नाडी नम० ॥ ७ ॥
नमो देवि दुर्गे शिवे भिमनादे सरस्वत्यरुन्धत्यमोघस्वरूपे ।
विभूति: शची कालरात्रि: सती त्वं नम० ॥ ८ ॥
शरणमसि सुराणां सिद्धविद्याधराणां मुनिमनुजपशूनां दस्युभिस्त्रासितानाम् ।
नृपतिगृहगतानां व्याधिभि: पीडितानां त्वमसि शरणमेका देवि दुर्गे प्रसीद ॥ ९ ॥
इदं स्तोत्रं मया प्रोक्तमापदुद्धारहेतुकम् ।
त्रिसंध्यमेकसंध्यं वा पठनाद्‌घोरसंकटात् ॥ १० ॥
मुच्यते नात्र संदेहो भुवि स्वर्गे रसातले ।
सर्वं वा श्‍लोकमेकं वा य: पठेद्भक्तिमान् सदा ॥ ११ ॥
स सर्वं दुष्कृतं त्यक्त्वा प्राप्नोति परमं पदम् ।
पठनादस्य देवेशि किं न सिद्ध्यति भूतले ॥ १२ ॥
स्तवराजमिद देवि संक्षेपात्कथितं मया ॥ १३ ॥
इति श्री सिद्धेश्‍वरीतंत्रे उमामहेश्वरसंवादे श्रीदुर्गापदुद्धारस्तोत्रम् संपूर्णम् ।

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