Get it on Google Play
Download on the App Store

श्रीवामनपुराण - अध्याय २४


 ऋषियोंने कहा - आप हमें यह बतलाये कि देवताओंने कौन - सा कर्म किया, जिससे प्रभावित होकर वे ( दैत्य ) पराजित हुए तथा देवाधिदेव भगवान् विष्णु कैसे वामन ( बौना ) बने ॥१॥ 
लोमहर्षणने कहा ( उत्तर दिया ) - इन्द्रदेवने जब तीनों लोकोंको बलिके अधिकारमें देखा तब वे मेरु ( पर्वत ) - पर स्थित ( रहनेवाली ) अपनी कल्याणमयी माताके घर गये । माताके समीप जाकर उन्होंने उनसे ( मातासे ) यह बात कही - जिससे देवगण युद्धमें दानव बलिसे पराजित हुए थे ॥२ - ३॥
माता अदितिने कहा - पुत्र ! यदि ऐसी बात है तो तुमलोग सम्पूर्ण मरुदगणोंके साथ मिलकर भी संग्राममें विरोचनके पुत्र बलिको नहीं मार सकते । सहस्त्राक्ष ! युद्धमें केवल हजारों सिरवाले ( सहस्त्रशीर्षा ) भगवान् विष्णु ही ( उसे ) मार सकते हैं । उनके सिवा किसी दूसरेसे वह नहीं मारा जा सकता । अतः इस विषयमें उस महान् आत्मा ( महाबलवान् ) बलि नामक दैत्यकी पराजयके लिये मैं तुम्हारे पिता ब्रह्मवादी कश्यपसे ( उपाय ) पूछूँगी ॥४ - ६॥ 
इस प्रकार माता अदितिके कहनेपर सभी देवता उनके साथ कश्यपजीके पास पहुँच गये । वहाँ ( जाकर उन लोगोंने ) तपस्याके धनी, मरीचिके पुत्र, आद्य एवं दिव्य पुरुष, देवताओंके गुरु, ब्रह्मतेजसे देदीप्यमान और अपने तेजसे सूर्यके समान तेजस्वी, अग्निशिखाकी भाँति दीप्त, संन्यासीके रुपमें, तपोयुक्त वल्कल तथ मृगचर्म धारण किये हुए ( आहुतिके ) घीकी गन्धसे आप्यायित ( वासित ) अग्निके समान जलते हुए, स्वाध्यायमें लगे हुए मानो शरीरधारी अग्नि ही हों एवं ब्रह्मवादी, सत्यवादी देवों तथा दानवोंके गुरु, अनुपम ब्रह्मतेजसे पूर्ण एवं शोभासे दीप्त कश्यपजीको देखा ॥७ - ११॥ 
वे ( देवताओंके पिता श्रीकश्यपजी ) सभी लोकोंके रचनेवाले, श्रेष्ठ प्रजापति एवं आत्मभाव अर्थात् अध्यात्मतत्त्वकी विज्ञाताकी विशिष्टताके कारण ऐसे लग रहे थे जैसे तीसरे प्रजापति ही हों । फिर अदितिके साथ समस्त देववीर उन्हें प्रणाम कर उनसे हाथ जोड़कर ऐसे बोले जैसे ब्रह्मासे उनके मानस - पुत्र बोलते हैं - बलशाली दैत्यराज बलि युद्धमें इन्द्रसे अपराजेय हो गया है । अतः हम देवोंके सामर्थ्यकी पुष्टि - वृद्धिके लिये आप कल्याणकारी उपाय करें । उन पुरुषोंकी बातें सुनकर लोकोंको रचनेवाले सामर्थ्यशाली कश्यपने ब्रह्मलोकमें जानेका विचार किया ॥१२ - १५॥
( फिर ) कश्यपने कहा - इन्द्र ! हम सभी अपनी पराजयकी बात ब्रह्माजीसे कहनेके लिये तैयार होकर उनके परम अद्भुत लोकको चलें । कश्यपके इस प्रकार कहनेपर अदितिके साथ कश्यपके आश्रममें आये हुए सभी देवताओंने महर्षिगणोंसे सेवित ब्रह्मसदनकी ओर प्रस्थान किया । यथायोग्य इच्छाके अनुसार चलनेवाले दिव्य यानोंसे महाबली एवं तेजस्वी वे सभी देवता क्षणमात्रमें ही ब्रह्मलोकमें पहुँच गये और तब वे लोग तपोराशि अव्यय ब्रह्माको देखनेकी इच्छा करते हुए ब्रह्माकी विशाल परम श्रेष्ठ सभामें पहुँचे ॥१६ - १९॥
वे ( देवतालोग ) भ्रमरोंकी गुञ्जारसे गुञ्जित, सामगानसे मुखरित, कल्याणकी विधायिका और शत्रुओंका विनाश करनेवाली उस सभाको देखकर प्रसन्न हो गये । ( उस स्थानपर ) उन श्रेष्ठ देवगणोंने विस्तृत ( विशाल ) अनेक कर्मानुष्ठानोंके समय श्रेष्ठ ऋग्वेदियोंके द्वारा ' क्रमपदादि ' ( वेद पढ़नेकी विशिष्ट शैलियोंसे ) उच्चरित ऋचाओं ( वेदमन्त्रों ) - को सुना । वह सभा यज्ञविद्याके ज्ञाता एवं ' पदक्रम ' प्रभृति वेदपाठके ज्ञानवाले परमर्षियोंके उच्चारणकी ध्वनिसे प्रतिध्वनित हो रही थी । देवोंने वहाँ यज्ञके संस्तवोंके ज्ञाताओं, शिक्षाविदों और वेदमन्त्रोंके अर्थ जाननेवालों, समस्त विद्याओंमें पारङ्गत द्विजों एव श्रेष्ठ लोकायतिकोंके ( चार्वाकके मतानुयायियों ) - द्वारा उच्चरित स्वरको भी सुना । कश्यपके पुत्रोंने वहाँ सर्वत्र नियमपूर्वक तीर्थ - व्रतको धारण करनेवाले जप - होम करनेमें लगे हुए श्रेष्ठ विप्रोंको देखा । उसी सभामें लोक पितामह ब्रह्मा विराजमान थे ॥२० - २५॥ 
( उस ) सभामें वेदमाया विद्यासे सम्पन्न, सुरों एवं असुरोंके गुरु ( श्रीमान् ब्रह्माजी ) भी उपस्थित थे । प्रजापतिगण उन ( प्रभुता - सम्पन्न ) प्रभुकी उपासना कर रहे थे । द्विजोत्तमो ! दक्ष, प्रचेता, पुलह, मरीचि, भृगु, अत्रि, वसिष्ठ, गौतम और नारद एवं सभी विद्याएँ, आकाश, वायु, तेज, जल, पृथ्वी, शब्द, स्पर्श, रुप, रस और गन्ध एवं प्रकृति, विकृति, अन्यान्य महत् कारण, अङ्गों एवं उपाङ्गोंके साथ चारों वेद और लोकपति, नीति, यज्ञ, संकल्प, प्राण - ये तथा अन्यान्य देव, ऋषि, भूत, तत्त्वादि ब्रह्माकी उपासना कर रहे थे । द्विजश्रेष्ठो ! अर्थ, धर्म, काम, क्रोध, हर्ष, शुक्र, बृहस्पति, संवर्त्त, बुध, शनैश्वर और राहु आदि सभी ग्रह भी वहाँ यथास्थान बैठे थे । मरुदगण, विश्वकर्मा, वसु, सूर्य, चन्द्रमा, दिन, रात्रि, पक्ष, मास तथा छः ऋतुएँ भी वहाँ उपस्थित थीं ॥२६ - ३३॥ 
धार्मिकोंमें श्रेष्ठ कश्यपने अपने पुत्र देवताओंके साथ ब्रह्माकी उस सर्वमनोरथमयी, सर्वतेजोमयी, दिव्य एवं ब्रह्मर्षिगणोंसे सेवित तथा ब्रह्म - विचारमयी सरस्वती एवं लक्ष्मीसे सेवित अचिन्त्य तथा खिन्नतासे रहित सभामें प्रवेश किया । तब उनके साथमें गये सभी देवताओंने श्रेष्ठ आसनपर विराजमान ब्रह्माजीको देखा और उन्हें ब्रह्मर्षियोंके साथ झुककर सिरसे प्रणाम किया । नियमका पालन करनेवाले वे सभी परमात्माके चरणोंमें प्रणाम करके सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त होकर निर्मल एवं शान्त हो गये । ( फिर ) महान् तेजस्वी देवेश्वर ब्रह्माने कश्यपके साथ आये हुए उन सभी देवताओंको देखकर कहा - ॥३४ - ३८॥
॥ इस प्रकार श्रीवामनपुराणमें चौबीसवाँ अध्याय समाप्त हुआ ॥२४॥
 

वामन पुराण Vaman Puran

Contributor
Chapters
श्रीवामनपुराण - अध्याय १ श्रीवामनपुराण - अध्याय २ श्रीवामनपुराण - अध्याय ३ श्रीवामनपुराण - अध्याय ५ श्रीवामनपुराण - अध्याय ६ श्रीवामनपुराण - अध्याय ७ श्रीवामनपुराण - अध्याय ८ श्रीवामनपुराण - अध्याय ९ श्रीवामनपुराण - अध्याय १० श्रीवामनपुराण - अध्याय ११ श्रीवामनपुराण - अध्याय १२ श्रीवामनपुराण - अध्याय १३ श्रीवामनपुराण - अध्याय १४ श्रीवामनपुराण - अध्याय १५ श्रीवामनपुराण - अध्याय १६ श्रीवामनपुराण - अध्याय १७ श्रीवामनपुराण - अध्याय १८ श्रीवामनपुराण - अध्याय १९ श्रीवामनपुराण - अध्याय २० श्रीवामनपुराण - अध्याय २१ श्रीवामनपुराण - अध्याय २२ श्रीवामनपुराण - अध्याय २३ श्रीवामनपुराण - अध्याय २४ श्रीवामनपुराण - अध्याय २५ श्रीवामनपुराण - अध्याय २६ श्रीवामनपुराण - अध्याय २७ श्रीवामनपुराण - अध्याय २८ श्रीवामनपुराण - अध्याय २९ श्रीवामनपुराण - अध्याय ३० श्रीवामनपुराण - अध्याय ३१ श्रीवामनपुराण - अध्याय ३२ श्रीवामनपुराण - अध्याय ३३ श्रीवामनपुराण - अध्याय ३४ श्रीवामनपुराण - अध्याय ३५ श्रीवामनपुराण - अध्याय ३६ श्रीवामनपुराण - अध्याय ३७ श्रीवामनपुराण - अध्याय ३८ श्रीवामनपुराण - अध्याय ३९ श्रीवामनपुराण - अध्याय ४० श्रीवामनपुराण - अध्याय ४१ श्रीवामनपुराण - अध्याय ४२ श्रीवामनपुराण - अध्याय ४३ श्रीवामनपुराण - अध्याय ४४ श्रीवामनपुराण - अध्याय ४५ श्रीवामनपुराण - अध्याय ४६ श्रीवामनपुराण - अध्याय ४७ श्रीवामनपुराण - अध्याय ४८ श्रीवामनपुराण - अध्याय ४९ श्रीवामनपुराण - अध्याय ५० श्रीवामनपुराण - अध्याय ५१ श्रीवामनपुराण - अध्याय ५२ श्रीवामनपुराण - अध्याय ५३ श्रीवामनपुराण - अध्याय ५४ श्रीवामनपुराण - अध्याय ५५ श्रीवामनपुराण - अध्याय ५६ श्रीवामनपुराण - अध्याय ५७ श्रीवामनपुराण - अध्याय ५८ श्रीवामनपुराण - अध्याय ५९ श्रीवामनपुराण - अध्याय ६० श्रीवामनपुराण - अध्याय ६१ श्रीवामनपुराण - अध्याय ६२ श्रीवामनपुराण - अध्याय ६३ श्रीवामनपुराण - अध्याय ६४ श्रीवामनपुराण - अध्याय ६५ श्रीवामनपुराण - अध्याय ६६ श्रीवामनपुराण - अध्याय ६७ श्रीवामनपुराण - अध्याय ६८