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सम्राट अशोक महान

सम्राटों के महानतम सम्राट अशोक अपने साम्राज्य की विशालता के साथ-साथ अपने चरित्र, आदर्श और सिद्धान्तों के लिए आज भी जनप्रिय हैं। हर युग, हर राष्ट्र ऐसे सम्राट को जन्म नहीं दे सकता। अभी १५० वर्ष पहले तक अशोक मौर्य सम्राटों में बहुत महत्वपूर्ण नहीं थे। १८३७ ई. में प्रिंसप ने ब्राह्मी लिपि में लिखित एक अभिलेख में 'देवनामपियदसी' उपाधि के एक राजा का वर्णन पढ़ा। अन्य अभिलेखों में भी इस उपाधि से राजा के विवरण मिले। १९१५ में 'अशोक पियदसी' नाम के राजा का पता चला। सम्राट अशोक को ही यह उपाधि मिली थी। श्रीलंका के बौद्धग्रंथ 'महावंश' में अशोक को पियदर्शी कहा गया है। इस प्रकार सम्राट अशोक पर विवरण बढ़ते चले गये।

बौद्ध जनश्रुति के अनुसार अशोक ने अपने ९९ भाइयों को मार डाला, तब गद्दी पाया। पर, यह अतिशयोक्ति है। इतने भाई कहाँ से हो जायेंगे? हाँ भाई से संघर्ष अशोक का अवश्य हुआ। अशोक का पूर्व नाम चण्डाशोक था। ये पहले शैव थे। अशोक ने एक युद्ध जीता वह कलिंगयुद्ध था। शासन के आठवें वर्ष में कलिंग पर आक्रमण अशोक ने किया। अशोक ने इस युद्ध के बाद युद्ध- भेरी को धर्म-भेरी के रूप में परिवर्तित कर दिया और भविष्य में कोई न करने का व्रत लिया।

श्रीलंका के साथ अशोक के संबंध मधुर थे। नेपाल के एक कुलीन सरदार से अशोक ने अपनी पुत्री का विवाह किया। सीरिया के शासक अष्टिओकस थियोज, सेल्यूकस के प्रपौत्र प्लोटेमी तृतीय, मिश्र के शासक फिलो डेलफस, मेसीडोनिया के शासक एण्टीगोनस इजिट्स के शासक एलेक्जेण्डर के साथ मित्रता के सम्बन्ध थे। अशोक ने खरोष्ठी लिपि और ब्राह्मी लिपि में, कहते हैं चौरासी हजार अभिलेख स्थापित किये। ये सारे अभिलेख निम्न वर्गों में रखे जा सकते हैं

(१) चौदह शिलालेख - पेशावर, हजारा, गिरनार (काठियावाड़), देहरादून, थाना (मुम्बई), फौली, जौगढ़ (उड़ीसा) कुर्नूल जिलों में १४ संख्या में ये मिलते हैं।

(२) लघुशिलालेख - वैराट (जयपुर) रूपनाथ (जबलपुर), सहसाराम (बिहार), मस्की (रायपुर), मैसूर में पाँच स्थानों पर, गुज्जरा (मध्यप्रदेश), कुर्नूल में एक स्थान पर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में एक स्थान पर और एक आन्ध्रप्रदेशों में मिले हैं, जिनकी संख्या ३ है।

(३) सात स्तम्भलेख - भारत में अलग-अलग सात स्थानों पर मिले हैं, जिनमें से एक स्तम्भलेख फिरोजशाह तुगलक दिल्ली लाया था।

(४) अन्य अभिलेख - तक्षशिला, लुम्बिनीवन, जलालाबाद, बारबा आदि स्थानों पर ये अभिलेख पाये गये हैं।

शिकार आदि पर पति अशोक प्रजावत्सल धर्मनिष्ठ सम्राट थे। शिकार आदि पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इनके उत्तराधिकारी थे - कुणाल, जो इन्हीं की तरह महान थे, पर स्वयं को अन्धा कर लिये। दशरथ, सम्पति, शालिशूक देववर्मा, शतधन्वा, वृहद्रथ इनके उत्तरकालीन मौर्य सम्राट हुए।

(फणीन्द्र नाथ चतुर्वेदी के लेख)