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पृथ्वीराज चौहान

पृथ्वीराज चौहान मतलब भारतीय इतिहास का अद्भुत नाम, श्रेष्ठ योद्धा, धाडसी सम्राट, दयालु राजा, एक उत्तम शासक ये चीजे हमारे झेहेन मे आती है। वे चाहमान (चौहान) वंश के एक राजा थे। उन्होंने वर्तमान उत्तर-पश्चिमी भारत में पारंपरिक चाहमान क्षेत्र पर शासन किया। उन्होंने वर्तमान राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के अधिकांश हिस्सा और पंजाब, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से उनके अधिपत्य में थें। उनकी राजधानी अजयमेरु आज का अजमेर शहर में स्थित थी। हालांकि मध्यकालीन लोककथाओं ने उन्हें पुर्व-मुघलिय भारतीय शक्ति के प्रतिनिधि के रूप में देखा गया है उनको भारत के राजनीतिक केंद्र दिल्ली के राजा के रूप में वर्णित किया। राजा पृथ्वीराज चौहान अपनी बीस की उमर मे शासक बने थे।

अपने शासन काल की शुरुआत में, पृथ्वीराज ने कई पड़ोसी हिंदू राज्यों के खिलाफ सैन्य सफलता हासिल की, विशेष रूप से चंदेल राजा परमार्दी के खिलाफ। उन्होंने मुस्लिम घुरिद वंश के शासक मोहम्मद घुरी द्वारा किये गये आक्रमणों को भी खारिज कर दिया। ११९१ में तराइन की पहली लड़ाई में मुहम्मद घुरी को हराया था। उन्होने हमेशा राजपुतों का नाम उँचा किया है|

विरासत

वर्तमान भारत में पृथ्वीराज के शासनकाल के शिलालेखों के स्थान खोजें गये है| इतिहासकार आर.बी.सिंह के अनुसार, पृथ्वीराज का साम्राज्य अपने चरम पर पश्चिम में सतलज नदी से पूर्व में बेतवा नदी तक और उत्तर में हिमालय की तलहटी से लेकर दक्षिण में माउंट आबू की तलहटी तक फैला हुआ था। इसमें वर्तमान राजस्थान, दक्षिणी पंजाब, उत्तरी मध्य प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हिस्से शामिल थे। पृथ्वीराज के शासनकाल के केवल सात शिलालेख उपलब्ध हैं| इनमें से कोई भी स्वयं राजाद्वारा जारी नहीं किया गया था|

पृथ्वीराज कि मृत्यू

अधिकांश मध्ययुगीन स्रोतों में कहा गया है कि, पृथ्वीराज को चाहमना साम्राज्य की राजधानी अजमेर ले जाया गया, जहाँ मोहोम्मद ने उसे घुरिद जागीरदार के रूप में बहाल करने की योजना बनाई। कुछ समय बाद, पृथ्वीराज ने मोहोम्मद के खिलाफ विद्रोह कर दिया, और राजद्रोह के लिए मारा गया। यह मुद्राशास्त्रीय साक्ष्योंद्वारा पुष्टि की गयी है| कुछ 'घोड़े और चरवाह' शैली के सिक्के जिन में पृथ्वीराज और "मुहम्मद बिन सैन" दोनों के नाम है| यह सिक्के दिल्ली टकसाल से जारी किए गए थे, हाँलांकि एक और संभावना यह है कि, शुरू में घुरिद शासकोंने पूर्व चाहमान क्षेत्र में अपने सिक्के का अधिक प्रयोग करने के लिए चाहमान-शैली के सिक्कों का इस्तेमाल किया। पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद, मोहोम्मद ने अजमेर के सिंहासन पर चौहान राजकुमार गोविंदराज को स्थापित किया गया|

कुछ दंतकथायें

हालाँकि, यह कहा जाता है कि, ११९२ ईस्वी में, तराइन की दूसरी लड़ाई में घुरिदों ने पृथ्वीराज को हराया, पृथ्वीराज को कैद किया और उनको बंदी बनाकर लेके गये थे| यह खबर जब एक भारतीय कवी चांद बरदाई को मिली तब वह पृथ्वीराज को छुडाने वहाँ पोहोंचा| उसने कुछ ऐसी तरकीब लगायी कि एक तीरंदाजी खेल के दौरान पृथ्वीराज को प्रदर्शन दिखाने का मौका मिल गया| इस दौरान पृथ्वीराज कि आँखोपर पट्टी बंधी थी, सिर्फ आवाज सुनकर उसे अपने लक्ष का भेद लेना था| चांद ने मोहम्मद घुरी से प्रदर्शन के दौरान कुछ कहने कि विनंती की, पृथ्वीराज ने मोहम्मद घुरी कि आवाज सुनतेही अपना तीर उसकी ओर किया और देखते हि देखते वह तीर मोहम्मद घुरी के गले को चिरता हुआ उसके आसन में जा धसा| इस घटना का कोई ऐतिहासिक सबूत नही है| जबकी, इतिहास में मोहोम्मद घुरी कि मृत्यू पृथ्वीराज चौहान के मृत्यू के कई साल बाद हुई है|

आज भी तराइन में हुई मुघलों हार को भारत की इस्लामी विजय में एक ऐतिहासिक घटना के रूप में देखा जाता है| आज भी कई कथाएँ पृथ्विराज के हिम्मत और धाडस कि गुहार है|