सम्राट कनिष्क महान्
कनिष्क महान् का जन्म ७८ ई. और निधन १०१ या १०२ ई. में हुआ। कुषाण सम्राट कदफिस के पूर्वी भारतीय साम्राज्य के प्रान्तपति या क्षत्रप थे कनिष्क। वेम कदफिस की मृत्यु के बाद उसके क्षत्रपों में संघर्ष बढ़ गया, जिसमें कनिष्क विजयी रहे। इन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार उत्तर प्रदेश से किया। कनिष्क ने शक संवत् चलाया। इनका साम्राज्य पूर्व में बिहार से पश्चिम में खोरासान तक, उत्तर में खोतान और कश्मीर से दक्षिण में कोंकण तक विस्तृत था। अधिकतर भाग कनिष्क ने अपने बाहुबल से अर्जित किया था। सिंहासन पर बैठने के समय इनके राज्य में मात्र मध्येशिया के कुछ हिस्से, अफगानिस्तान और सिन्ध के छोटे से भाग ही थे। बाद में बंगाल के अतिरिक्त सारा उत्तर भारत, दक्षिण-पश्चिमी भारत के कुछ हिस्से, भारत के बाहर मध्येशिया के भाग आते थे। इनके राज्य की सीमायें चीन और ईरान राज्य की सीमायें छूती थीं। कनिष्क की सेना को चीनी सेनापति पनचाओ ने हराया और मध्येशिया के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया।
चीन के विरुद्ध जारी जंग में कनिष्क अपने विद्रोही सैनिकों और सरदारों द्वारा मार दिये गये, जो उनके युद्धों से ऊब चुके थे। इनकी राजधानी पुरुषपुर (पेशावर) थी। अन्य स्थानों पर इनके क्षमप (प्रान्तपति) शासन करते थे। उत्तर पश्चिम भारत में 'नल', 'खरमल्लान', कौशाम्बी में 'वनस्पर' और अयोध्या में धनदेव क्षमप रूप में शासन करते थे। संस्कृत भाषा और साहित्य की प्रगति का युग है कनिष्क-काला आधुनिक इतिहासकारों की दृष्टि में वसुमित्र, अश्वघोष, नागार्जुन, चरकसंहिताकार इनके दरबार की निधियाँ थे। महायान सम्प्रदाय के विभिन्न ग्रंथों की रचना कनिष्क के समय हुई। कश्मीर या जालन्धर में बौद्धों की चौथी सभा कनिष्क के समय हुई। महान बौद्ध शाखा महायान सम्प्रदाय का निर्माण इनके समय हुआ।
सम्राट अशोक ने हीनयान सम्प्रदाय में और कनिष्क ने महायान सम्प्रदाय में समर्पित एक दूसरे जैसा योगदान दिया। कनिष्क का साम्राज्य मध्येशिया तक विस्तृत था, जिसके चलते चीन, रोमन साम्राज्य और पश्चिमी एशिया के साथ इनके राजनीतिक एवं सांस्कृतिक सम्बन्ध थे। भारत की विदेशी व्यापार में भारी उन्नति इनके समय हुई। 'त्रिपिटकों' पर अनेक टीकायें लिखी गयीं इस समय। अश्वघोष ने 'सौन्दरानन्द' काव्य, 'बुद्ध चरितम्' और सारिपुत्र प्रकरण, कनिष्क के शासनकाल में लिखा। कनिष्क एक महान सम्राट थे।
(फणीन्द्र नाथ चतुर्वेदी के लेख)